एक सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि एकादशी के दिन श्राद्ध करना सही है या नहीं?
शास्त्रों में साफ तौर पर कहा गया है कि एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए। भगवान शंकर ने खुद पार्वती जी को बताया कि अगर कोई व्यक्ति एकादशी के दिन श्राद्ध करता है, तो श्राद्ध करने वाला, श्राद्ध खाने वाला और जिसके लिए श्राद्ध किया जा रहा है, तीनों नरक जाते हैं। इसलिए, अगर किसी को श्राद्ध करना है, तो द्वादशी के दिन करना चाहिए।
अगर किसी कारण से द्वादशी के दिन भी श्राद्ध नहीं कर सकते, तो एकादशी के दिन पितरों की पूजा करें और ब्राह्मण को फलाहार कराएं। चाहे वो ब्राह्मण एकादशी का व्रत कर रहा हो या नहीं, उसे फलाहार ही देना चाहिए, और खुद भी एकादशी का व्रत रखना चाहिए।
हालांकि, पुराणों में लिखा है कि श्राद्ध के दिन उपवास नहीं करना चाहिए:
“श्राद्धे जन्म दिने चैव संक्रान्त्यां राहुसूतके।
उपवासं न कुर्वीत यदीच्छेच्छ्रेयमात्मनः।”
फिर भी, अगर उस दिन एकादशी हो, तो उपवास ज़रूर करें, क्योंकि श्राद्ध एक नैमित्तिक कार्य है, जबकि उपवास नियमित होता है। पितरों के लिए अर्पित अन्न को सिर्फ सूंघें, और भगवान का ध्यान करें।
उपवास का सही मतलब है – सभी पापों से दूर रहना, भगवान के गुणों पर ध्यान लगाना, और सिर्फ अन्न नहीं, बल्कि सभी भोगों से दूरी बनाना।
नारदीय पुराण में भी कहा गया है कि एकादशी के दिन लोग उपवास कर भगवत भजन करते थे।
पहले, एकादशी का उपवास ना करना बड़ा अपराध माना जाता था। 8 साल से 80 साल तक के लोगों के लिए ये अनिवार्य था।
“अष्टवर्षाधिको मर्त्यो ह्यशीतिर्न हि पूर्यते।
जो भुक्ते मामके राष्ट्रे विष्णोरहनि पापकृत्।।”
इसके अलावा, देवल ऋषि भी कहते हैं कि एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य, शुद्धता, सत्य और मांसाहार से दूरी बनानी चाहिए। गुटखा, पान मसाला और बार-बार जल, दूध या चाय का सेवन भी व्रत को तोड़ सकता है, इसलिए इनसे बचें।
व्यास जी ने भी बताया है कि उपवास के दौरान फूल, गंध, और आभूषणों का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन दातुन करने से बचें।
विष्णु स्मृति में भी कहा गया है कि पाप कर्मों, झूठ, चोरी, और दूसरों से भोजन लेने से बचना चाहिए, खासकर प्रवास में भी।
एकादशी के दिन कांस्य, मांस, मसूर, और अन्य चीजें नहीं खानी चाहिए। साथ ही, असत्य भाषण से भी दूर रहना चाहिए।
कई लोग तिल से बने लड्डू, गजक या तिल का तेल इस्तेमाल करते हैं, लेकिन शास्त्रों में इसकी मनाही है। इस दिन हमें दिन में सोने के बजाय भगवत कीर्तन करना चाहिए।
इसलिए, अगर आप पितृपक्ष में एकादशी का व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रखें कि उस दिन श्राद्ध न करें, सिर्फ पितरों की पूजा करें, ब्राह्मण को फलाहार कराएं और खुद व्रत रखें।
शास्त्र क्या कहते हैं?
- श्राद्ध और एकादशी: शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए। अगर हम दोनों ही करते हैं, तो न तो पितरों को शांति मिलती है, न ही हमें। इसलिए, एकादशी के दिन पितरों को याद करके सिर्फ फलहार करना ही बेहतर होता है।
- उपवास का महत्व: एकादशी का उपवास बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से हमें कई पुण्य मिलते हैं।
- क्या खाएं, क्या न खाएं: एकादशी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। जैसे कि फल, सब्जियां, और दूध। मांस, मछली, अंडे, प्याज, लहसुन, और नशीले पदार्थों से बचना चाहिए।
- और क्या करें: इस दिन भजन-कीर्तन करना, भगवान की पूजा करना, और अच्छे विचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
क्यों रखें एकादशी का व्रत: एकादशी का व्रत रखने से हमारा मन शांत होता है, शरीर स्वस्थ रहता है, और हम आध्यात्मिक रूप से प्रगति करते हैं।
॥ एकादशी आरती ॥
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
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