“आदि – धर्म सनातन – धर्म” स्वामी सनातन श्री द्वारा लिखित एक अद्वितीय पुस्तक है, जो सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों, परंपराओं और आदर्शों पर आधारित है। यह ग्रंथ उन आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों का विश्लेषण करता है, जो भारतीय संस्कृति और धर्म के आधारभूत स्तंभ हैं।
स्वामी सनातन श्री ने इस पुस्तक में सनातन धर्म की प्राचीनता, उसके आद्यात्मिक सिद्धांतों और समाज के प्रति उसकी उपयोगिता को विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया है।
आदि – धर्म सनातन – धर्म पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ
- इस पुस्तक में स्वामी सनातन श्री ने सनातन धर्म की उत्पत्ति, उसके मूल सिद्धांतों और उसकी अद्वितीयता को स्पष्ट किया है। पुस्तक के अनुसार, सनातन धर्म की नींव अत्यंत प्राचीन और शाश्वत है, जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में रही है और समय-समय पर मानव समाज को मार्गदर्शन देती रही है।
- स्वामी सनातन श्री ने धर्म के चार प्रमुख स्तंभों – सत्य, अहिंसा, करुणा और तप का वर्णन करते हुए बताया है कि ये कैसे समाज के विकास और आत्मिक उन्नति में सहायक हैं। इन सिद्धांतों का पालन करने से व्यक्ति शांति और आनंद प्राप्त कर सकता है, और समाज में भी सामंजस्य और संतुलन बनाए रख सकता है।
- “आदि – धर्म सनातन – धर्म” पुस्तक वेदों और उपनिषदों के महत्व को भी रेखांकित करती है। स्वामी जी ने इनमें से चुनिंदा श्लोकों और ऋचाओं का उद्धरण देकर उनकी गूढ़ता और उनके संदेश को सरलता से समझाया है। पुस्तक में बताया गया है कि वेद और उपनिषद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि ये जीवन को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं।
- पुस्तक का एक महत्वपूर्ण भाग यह समझाने में है कि कैसे सनातन धर्म के सिद्धांत आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। स्वामी सनातन श्री ने यह दर्शाया है कि आधुनिक समस्याओं का समाधान सनातन धर्म के आदर्शों में निहित है। चाहे वह पर्यावरण का संतुलन हो, समाज में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता हो, या व्यक्तिगत आत्मविकास – सनातन धर्म का अनुसरण करना इन सब में सहायक हो सकता है।
- पुस्तक में जीवन के उद्देश्य, कर्म, मोक्ष और पुनर्जन्म की अवधारणा को स्पष्ट रूप से समझाया गया है। स्वामी सनातन श्री ने धर्म को केवल एक आस्था के रूप में न देख कर उसे जीवन जीने की कला और एक पूर्ण विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य और उसकी पूर्णता को समझ सकता है।