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अमरनाथ बाबा की गुफा के चौंकाने वाले रहस्य और अद्भुत दर्शन की कहानी

Amarnath Gufa Story

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गुफा का पौराणिक इतिहास , कश्मीर घाटी में राजा दश और ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। तब ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फ के शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का प्रमुख देवस्थान बन गया, क्योंकि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी।

अमरनाथ गुफा को पुरातत्व विभाग वाले 5 हजार वर्ष पुराना मानते हैं अर्थात महाभारत काल में यह गुफा थी। लेकिन उनका यह आकलन गलत हो सकता है, क्योंकि सवाल यह उठता है कि जब 5 हजार वर्ष पूर्व गुफा थी तो उसके पूर्व क्या गुफा नहीं थी? हिमालय के प्राचीन पहाड़ों को लाखों वर्ष पुराना माना जाता है। उनमें कोई गुफा बनाई गई होगी तो वह हिमयुग के दौरान ही बनाई गई होगी अर्थात आज से 12 से 13 हजार वर्ष पूर्व।

वैसे तो अमरनाथ की यात्रा महाभारत के काल से ही की जा रही है। बौद्ध काल में भी इस मार्ग पर यात्रा करने के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की ‘राजतरंगिनी तरंग द्वि‍तीय’ में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वीं) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ यात्रा करने का प्रचलन कितना पुराना है। बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है।
इस अमरनाथ गुफा कश्मीर के बर्फीले पहाड़ों के बीच स्थित है. अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा होती है. अमरनाथ गुफा को भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है. आइए जानते हैं अमरनाथ गुफा से जुड़े ऐसे 5 रहस्यों के बारे में जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे.

मान्यता है कि भगवान शिव ने अमरनाथ गुफा में ही मां पार्वती को अमरता का मंत्र सुनाया था. यही वजह है कि हिंदू धर्म में अमरनाथ गुफा का इतना अधिक महत्व माना जाता  है, हिंदू मान्यता के अनुसार, किसी को भी अमरकथा सुनने की इजाजत नहीं थी. इसलिए भगवान शिव ने मां पार्वती को कथा सुनाने से पहले सभी को त्याग दिया था ताकि कोई और अमरकथा ना सुन पाए, अमरनाथ गुफा से लगभग 96 किलोमीटर पर स्थित पहलगाम पहली ऐसी जगह है जहां भगवान शिव ने रुक कर आराम किया था. उन्होंने अपने बैल नंदी को भी इसी जगह छोड़ दिया था. नंदी बैल के बिना शिवलिंग को अधूरा माना जाता है इसके बाद शेषनाग झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सांपों को भी उतार दिया था. गणेश जी को उन्होंने महागुणस पहाड़ पर छोड़ दिया था. इसके बाद पंचतरणी नाम की जगह पर पहुंचकर भगवान शिव ने पांचों तत्वों को भी त्याग दिया था, माना जाता है कि जब भगवान शिव ने पार्वती को अमरता का मंत्र सुनाया था उस समय गुफा में उन दोनों के अलावा सिर्फ कबूतरों का एक जोड़ा मौजूद था. कथा सुनने के बाद कबूतर का जोड़ा अमर हो गया था. आज भी अमरनाथ गुफा में कबूतर का वो जोड़ा दिखाई देता है, अमरनाथ गुफा चारों तरफ से कच्ची बर्फ से ढकी होती है. लेकिन गुफा के अंदर मौजूद शिवलिंग पक्की बर्फ का होता है. यह शिवलिंग पक्की बर्फ से किस तरह बनता है, ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है

माना जाता है कि अमरनाथ गुफा की खोज बूटा मलिक नाम के एक मुस्लिम शख्स ने की थी. ये शख्स अपनी भेड़, बकरी को इस जगह चरा रहा था. उसी समय बूटा की मुलाकात एक साधु से हुई. साधु ने बूटा को कोयले से भरा एक बैग भेंट में दिया था. बूटा ने घर पहुंचकर जब बैग खोलकर देखा तो कोयले को सोने के सिक्कों में बदला हुआ पाया, इसे देखकर बूटा हैरान हो गया और साधु का धन्यवाद करने के लिए वो उस जगह दोबारा पहुंचा. वहां पहुंचने पर उसने साधु की जगह गुफा को पाया. उसी समय से ये गुफा एक तीर्थ स्थान में बदल गया.अमरनाथ गुफा में शिवलिंग के पास पानी बहता है. लेकिन अब तक इस बात पता नहीं लग पाया है कि पानी कहां से आता है, मान्यता है कि अमरनाथ गुफा 5000 साल पुरानी है. इस गुफा में मौजूद शिवलिंग को ‘स्वयंभू’ कहा जाता है क्योंकि इस शिवलिंग का निर्माण खुद से होता है, कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा करीबन 160 फुट लंबी और 100 फुट चौड़ी है, इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वज्ञान को ‘अमरकथा’ के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम ‘अमरनाथ’ पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जिस तरह कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था।
शुकदेव : जब भगवान शंकर इस अमृतज्ञान को भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक शुक (हरा कठफोड़वा या हरी कंठी वाला तोता) का बच्चा भी यह ज्ञान सुन रहा था। पार्वती कथा सुनने के बीच-बीच में हुंकारा भरती थी। पार्वतीजी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकारी भरना प्रारंभ कर दिया।

जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वे शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा।भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए।

गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
पवित्र युग ल कबूतर : श्री अमरनाथ की यात्रा के साथ ही कबूतरों की कथा भी जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे। महादेव ने उनको श्राप दे दिया कि तुम दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहो। तदुपरांत वे रुद्ररूपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया।

माना जाता है कि यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में इन्हीं दोनों कबूतरों के भी दर्शन होते हैं। यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।
पार्वतीजी भगवान सदाशिव से कहती हैं- ‘प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा सुनना चाहती हूं। मैं यह भी जानना चाहती हूं कि महादेव गुफा में स्थित होकर अमरेश क्यों और कैसे कहलाए?’

सदाशिव भोलेनाथ बोले, ‘देवी! आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, स्थावर (पर्वतादि) जंगल, (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, परंतु इंद्रादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे।’

इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मृत्यु से भयभीत देवता उनके पास आए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि ‘हमें मृत्यु बाधा करती है। आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे।’

‘मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा’, कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतारकर निचोड़ा और देवगणों से बोले, ‘यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है।’

उस चंद्रकला के निचोडऩे से पवित्र अमृत की धारा बह निकली और वही धारा बाद में अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े।

पावन गुफा में जो भस्म है, वे इसी अमृत बिंदु के कण हैं, जो पृथ्वी पर गिरे थे। सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्योछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए। देवगण सदाशिव को जलस्वरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारंबार नमस्कार करने लगे।

भोलेनाथ ने देवताओं से कहा, ‘हे देवताओं! तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।’

देवताओं को ऐसा वर देकर सदाशिव उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव ने अमृत रूप सोमकला को धारण कर देवताओं की मृत्यु का नाश किया, तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ।

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