हर साल दीवाली (Diwali) के ठीक अगले दिन, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को, भारतवर्ष में एक अनुपम त्योहार मनाया जाता है – गोवर्धन पूजा। इसे अन्नकूट महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) और प्रकृति (Nature) के प्रति हमारी कृतज्ञता (gratitude) व्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर है। वर्ष 2025 में, यह शुभ पर्व 22 अक्टूबर, बुधवार को मनाया जाएगा।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन ‘अन्नकूट महाप्रसाद’ का इतना विशेष महत्व क्यों है? आइए, इस दिव्य प्रसाद की कहानी, महत्व और इसे बनाने की परंपराओं को विस्तार से जानें।
अन्नकूट क्या है? (What is Annakut?)
‘अन्नकूट’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘अन्न’ जिसका अर्थ है अनाज या भोजन, और ‘कूट’ जिसका अर्थ है समूह या ढेर (mountain)। इस प्रकार, अन्नकूट का शाब्दिक अर्थ है ‘भोजन का पहाड़’।
यह सिर्फ एक व्यंजन (dish) नहीं, बल्कि विभिन्न प्रकार के शाकाहारी व्यंजनों (vegetarian dishes) का एक भव्य मिश्रण है, जिसमें ताजी सब्जियां, अनाज, दालें और मिष्ठान (sweets) शामिल होते हैं। यह प्रकृति की प्रचुरता (abundance) और परमात्मा के आशीर्वाद को दर्शाता है। कई स्थानों पर इसे 56 भोग (Chhappan Bhog) के रूप में भी चढ़ाया जाता है।
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की पौराणिक कथा (The Mythological Tale)
अन्नकूट महाप्रसाद का सीधा संबंध गोवर्धन लीला से है। यह कथा हमें द्वापर युग में ले जाती है:
एक समय, ब्रजवासी वर्षा के देवता इंद्र (Lord Indra) की पूजा किया करते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि इस पूजा से इंद्र में अहंकार (ego) बढ़ रहा है।
बाल कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि हमें उस गोवर्धन पर्वत और गौमाता (Mother Cow) की पूजा करनी चाहिए, जिनसे हमें भोजन, जल और जीवनयापन के साधन (means of livelihood) मिलते हैं।
इससे क्रुद्ध होकर, इंद्र ने ब्रज पर मूसलाधार वर्षा (torrential rains) शुरू कर दी, जिससे पूरा ब्रज डूबने लगा।
तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका उंगली (little finger) पर विशाल गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी ब्रजवासियों तथा पशुओं को उसके नीचे आश्रय (shelter) दिया।
सात दिनों तक ब्रजवासी पर्वत के नीचे रहे। सातवें दिन, जब इंद्र का क्रोध शांत हुआ, तो ब्रजवासियों ने अपनी सुरक्षा के लिए श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत का आभार (thankfulness) व्यक्त किया। इस दौरान, उन्होंने अपने घरों में उपलब्ध सभी प्रकार के अनाज,
सब्जियां और पकवान एक साथ मिलाकर श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत को भोग लगाया। यह भोग ही ‘अन्नकूट महाप्रसाद’ कहलाया।
यह कथा हमें सिखाती है कि हमें हमेशा प्रकृति, अन्न और अपने रक्षक (protector) के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।
गोवर्धन पूजा में अन्नकूट का विशेष महत्व (Special Significance of Annakut in Govardhan Puja)
अन्नकूट महाप्रसाद केवल भोग नहीं है, बल्कि इसके कई गहरे अर्थ हैं:
- कृतज्ञता का प्रतीक (Symbol of Gratitude) – यह उन सभी प्राकृतिक संसाधनों (natural resources) के लिए धन्यवाद देने का तरीका है जो हमें भोजन और जीवन प्रदान करते हैं। यह ‘अन्न ब्रह्म’ के सिद्धांत को पुष्ट करता है।
- सामुदायिक सद्भाव (Community Harmony) – अन्नकूट बनाने की प्रक्रिया में सभी प्रकार की सब्जियों और अनाज को एक साथ मिलाया जाता है। यह ब्रजवासियों की एकजुटता (unity) को दर्शाता है और हमें समुदाय में मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा देता है।
- प्रकृति के प्रति सम्मान – यह प्रसाद भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत (जो प्रकृति का प्रतीक है) को अर्पित किया जाता है, जो पर्यावरण संरक्षण (environmental protection) के महत्व को रेखांकित करता है।
- सेहत का खजाना (Treasure of Health) – अन्नकूट में कई तरह की मौसमी सब्जियां (seasonal vegetables) और अनाज शामिल होते हैं, जो इसे पोषण (nutrition) से भरपूर बनाते हैं। यह सर्दियों के आगमन पर शरीर को आवश्यक ऊर्जा (essential energy) प्रदान करता है।
अन्नकूट महाप्रसाद 2025 – शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)
गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) का पर्व 22 अक्टूबर 2025, बुधवार को मनाया जाएगा।
- प्रतिपदा तिथि का आरंभ – 21 अक्टूबर 2025, शाम 05:54 बजे
- प्रतिपदा तिथि की समाप्ति – 22 अक्टूबर 2025, रात 08:16 बजे
- गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – सुबह 06:26 बजे से 08:42 बजे तक (यह पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है।)
अन्नकूट बनाने की परंपरा (Tradition of Making Annakut)
अन्नकूट महाप्रसाद पारंपरिक रूप से मूंग दाल, बाजरा, चावल और कम से कम सात या उससे अधिक मौसमी सब्जियों (जैसे लौकी, कद्दू, बैंगन, आलू, गाजर, मटर आदि) को मिलाकर बनाया जाता है। इसे घी और पारंपरिक मसालों के साथ पकाया जाता है। इसके अलावा, पूड़ी, रोटी, हलवा, दही-रायता और विभिन्न मिष्ठान भी भोग में शामिल किए जाते हैं।
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