|| आषाढ़ चौमासी चौदस कथा PDF ||
प्राचीन काल की बात है। एक नगर में एक साहूकार रहता था। वह बहुत ही धर्मपरायण और दानी था। वह हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहता था। साहूकार की एक पत्नी थी, जो बहुत ही सुशील और पतिव्रता थी। उनके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, परंतु उनके कोई संतान नहीं थी, जिस कारण वे दोनों बहुत दुखी रहते थे।
एक दिन साहूकार की पत्नी ने भगवान शिव और माता पार्वती की चौमासी चौदस व्रत करने का संकल्प लिया। उसने अपने पति को भी इस व्रत का महत्व बताया। साहूकार ने भी अपनी पत्नी के साथ मिलकर यह व्रत करने का निश्चय किया।
आषाढ़ मास की चौदस तिथि को साहूकार और उसकी पत्नी ने विधिवत भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन किया। उन्होंने दिनभर निराहार रहकर व्रत किया और रात्रि में जागरण किया। उन्होंने सच्चे मन से भगवान से संतान प्राप्ति की कामना की।
उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने कहा, “हे भक्तो! हम तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। तुम्हारे घर एक तेजस्वी पुत्र का जन्म होगा।”
भगवान के वचन सुनकर साहूकार और उसकी पत्नी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने भगवान का आभार व्यक्त किया। कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और शुभ मुहूर्त में उसने एक सुंदर और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।
साहूकार और उसकी पत्नी का जीवन आनंद से भर गया। उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘धर्मदत्त’ रखा। धर्मदत्त बड़ा होकर बहुत ही विद्वान, धर्मात्मा और यशस्वी हुआ। उसने अपने माता-पिता का नाम रोशन किया।
यह ‘आषाढ़ चौमासी चौदस’ व्रत के प्रभाव से ही संभव हुआ। जो कोई भी सच्चे मन और श्रद्धा से इस व्रत को करता है, भगवान शिव और माता पार्वती उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि और मोक्ष के लिए फलदायी माना जाता है।
आषाढ़ चौमासी चौदस का दिन चातुर्मास (चार महीने) की शुरुआत का प्रतीक है, जिस दौरान भगवान विष्णु शयन मुद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि में शिव-पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है, और यह व्रत भक्तों को पापों से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है।
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