|| अट्टालसुन्दराष्टकम् ||
विक्रमपाण्ड्य उवाच
कल्याणाचलकोदण्डकान्तदोर्दण्डमण्डितम् ।
कबलीकृतसंसारं कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ १॥
कालकूटप्रभाजालकळङ्कीकृतकन्धरम् ।
कलाधरं कलामौळिं कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ २॥
कालकालं कलातीतं कलावन्तं च निष्कळम् ।
कमलापतिसंस्तुत्यं कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ ३॥
कान्तार्धं कमनीयाङ्गं करुणामृतसागरम् ।
कलिकल्मषदोषघ्नं कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ ४॥
कदम्बकाननाधीशं कांक्षितार्थसुरद्रुमम् ।
कामशासनमीशानं कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ ५॥
सृष्टानि मायया येन ब्रह्माण्डानि बहूनि च ।
रक्षितानि हतान्यन्ते कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ ६॥
स्वभक्तजनसंताप पापापद्मङ्गतत्परम् ।
कारणं सर्वजगतां कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ ७॥
कुलशेखरवंशोत्थभूपानां कुलदैवतम् ।
परिपूर्णं चिदानन्दं कलयेऽट्टालसुन्दरम् ॥ ८॥
अट्टालवीरश्रीशंभोरष्टकं वरमिष्टदम् ।
पठतां शृण्वतां सद्यस्तनोतु परमां श्रियम् ॥ ९॥
॥ इति श्रीहालास्यमाहात्म्ये विक्रमपाण्ड्यकृतं अट्टालसुन्दराष्टकम् ॥
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