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Bahula Chaturthi 2025 – बहुला चतुर्थी व्रत पर क्यों नहीं दोही जाती गाय? क्यों इस दिन होती है गाय और बछड़े की पूजा? जानें पौराणिक कथा

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क्या आप जानते हैं बहुला चतुर्थी पर क्यों नहीं दुही जाती गाय? क्यों इस दिन होती है गाय और बछड़े की विशेष पूजा? आइए जानते हैं इस पावन पर्व से जुड़ी अनूठी परंपराएं और गहरा पौराणिक महत्व।

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का एक विशेष स्थान है, और हर त्योहार अपने साथ कोई न कोई कहानी, परंपरा और गहरा अर्थ समेटे हुए होता है। इन्हीं में से एक है बहुला चतुर्थी, जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से गौ-माता और उनके बछड़े को समर्पित है, और इस दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन इस दिन एक बहुत ही अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है – गायों को नहीं दुहा जाता! आइए, हम बहुला चतुर्थी के महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथा पर विस्तार से चर्चा करें।

बहुला चतुर्थी 2025 – तिथि और शुभ मुहूर्त

साल 2025 में, बहुला चतुर्थी 12 अगस्त, मंगलवार को मनाई जाएगी।

  • चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 12 अगस्त 2025, 08:40 AM बजे
  • चतुर्थी तिथि समाप्त: 13 अगस्त 2025, 06:35 AM बजे

यह पर्व मुख्य रूप से पुत्र प्राप्ति, संतान के स्वास्थ्य और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है।

क्यों होती है गौ-माता और बछड़े की पूजा?

भारतीय परंपरा में गाय को ‘गौ-माता’ का दर्जा दिया गया है। उन्हें केवल एक पशु नहीं, बल्कि साक्षात् देवी का स्वरूप माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। बहुला चतुर्थी का दिन विशेष रूप से गाय और उनके बछड़े के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके संरक्षण का संकल्प लेने का दिन है।

इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए व्रत रखती हैं। गाय और बछड़े की पूजा करके वे अपनी संतान के लिए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गाय और उनके बछड़े की सेवा करने से भगवान कृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

बहुला चतुर्थी व्रत पर क्यों नहीं दुही जाती गाय?

यह बहुला चतुर्थी की सबसे अनूठी परंपरा है। इस दिन गौ-माता को दुहना वर्जित माना जाता है। इसके पीछे एक गहरा अर्थ छिपा है। यह दिन गाय और उनके बछड़े के स्वाभाविक संबंध का सम्मान करने का दिन है। दूध बछड़े का पहला अधिकार है, और इस दिन उन्हें उनका पूरा अधिकार दिया जाता है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि हमें प्रकृति और उसके जीवों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उनके अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।

कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो गाय दुही जाती है, उसका दूध अशुद्ध माना जाता है और उसका सेवन नहीं किया जाता है। इसलिए, अधिकांश घरों में इस दिन गाय को नहीं दुहा जाता और बछड़े को पूरा दूध पीने दिया जाता है।

बहुला चतुर्थी की पौराणिक कथा

बहुला चतुर्थी से जुड़ी एक बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक पौराणिक कथा है प्राचीन काल में, एक जंगल में एक गाय रहती थी जिसका नाम बहुला था। बहुला बहुत ही सीधी और धर्मपरायण गाय थी। एक दिन, बहुला अपने बछड़े के लिए चारा चर रही थी, तभी उसे एक भूखा शेर मिल गया। शेर ने बहुला को अपना आहार बनाने का निश्चय किया।

बहुला ने शेर से प्रार्थना की और कहा, “हे वनराज! मेरा बछड़ा भूखा है और घर पर मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। कृपया मुझे थोड़ी देर के लिए जाने दें, ताकि मैं उसे दूध पिला सकूं। मैं वचन देती हूं कि मैं दूध पिलाकर तुरंत लौट आऊंगी और आप मुझे अपना आहार बना लेना।”

शेर ने पहले तो बहुला की बात पर विश्वास नहीं किया, लेकिन बहुला की धर्मपरायणता और सत्यनिष्ठा को देखकर वह पिघल गया। उसने बहुला को जाने की अनुमति दे दी। बहुला तेजी से अपने बछड़े के पास गई, उसे भरपेट दूध पिलाया और अपनी मां की ममता पूरी की। उसने अपने बछड़े से कहा कि वह अब शेर के पास जा रही है और उसे अपना वचन निभाना है।

बछड़ा अपनी मां को रोकने लगा, लेकिन बहुला ने उसे समझाया कि सत्य का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। बहुला ने भगवान का स्मरण किया और वापस शेर के पास लौट आई। शेर बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर चकित रह गया।

जब बहुला शेर के सामने खड़ी हुई, तो भगवान कृष्ण स्वयं वहां प्रकट हो गए। उन्होंने बहुला की सत्यनिष्ठा और त्याग को देखकर शेर से कहा, “हे शेर! यह गाय अत्यंत धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ है। इसने अपने वचन का पालन किया है। ऐसी गाय को मारना घोर पाप होगा। तुम इसे छोड़ दो।”

भगवान कृष्ण के कहने पर शेर ने बहुला को छोड़ दिया। तब से, भगवान कृष्ण ने बहुला को आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस दिन गौ-माता और उनके बछड़े की पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इसी कारण, इस चतुर्थी को बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाने लगा।

बहुला चतुर्थी व्रत और पूजा विधि

बहुला चतुर्थी के दिन व्रत रखने और पूजा करने का अपना विशेष महत्व है।

  • बहुला चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • व्रत का संकल्प लें और मन में अपनी मनोकामना दोहराएं।
  • पूजा स्थान को साफ करें। यदि संभव हो, तो गाय और बछड़े की वास्तविक पूजा करें। यदि यह संभव न हो, तो उनकी प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • सबसे पहले गाय और बछड़े पर गंगाजल छिड़कें। उन्हें कुमकुम, चंदन और अक्षत लगाएं। फूल और दूर्वा अर्पित करें। धूप और दीप प्रज्वलित करें। उन्हें गेहूं से बनी रोटियां और अंकुरित गेहूं के दाने गुड़ के साथ खिलाएं। गौ-माता और बछड़े की आरती करें।
  • इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है। उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं, वस्त्र पहनाएं और भोग लगाएं।
  • बहुला चतुर्थी की पौराणिक कथा का पाठ करें या श्रवण करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “श्री कृष्णाय नमः” मंत्र का जाप करें।
  • पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं या गरीबों को दान दें।
  • संध्याकाल में चंद्रमा को अर्घ्य देकर और भगवान कृष्ण की पूजा के बाद व्रत का पारण करें। इस दिन गाय के दूध का सेवन नहीं किया जाता है, इसलिए आप फलों, सब्जियों या अन्य दूध रहित खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं।

बहुला चतुर्थी का महत्व

बहुला चतुर्थी का पर्व कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • यह व्रत संतानहीन दंपतियों के लिए पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। जो महिलाएं व्रत रखती हैं, उन्हें संतान के दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
  • यह पर्व हमें गौ-माता के प्रति आदर और उनके संरक्षण का संदेश देता है। यह बताता है कि गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है।
  • बहुला की पौराणिक कथा हमें सत्यनिष्ठा, वचनबद्धता और करुणा का महत्व सिखाती है।
  • इस दिन पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

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