बजरंग बाण को स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक विशेष संकट के निवारण के लिए रचा था। किंवदंतियों के अनुसार, जब तुलसीदास जी पर किसी ने अभिचारिक प्रयोग (जादू-टोना) किया, जिससे उनके शरीर में असहनीय पीड़ा और फोड़े हो गए, तब उन्होंने हनुमान जी को पुकारने के लिए इस स्तोत्र की रचना की।
यह स्तोत्र, हनुमान जी को उनकी शक्ति और राम-भक्ति की दुहाई देकर, भक्त के कष्टों को तुरंत दूर करने का आग्रह करता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसकी तीव्र और तत्काल फल देने की शक्ति, जिसके कारण इसे “बाण” (तीर) की संज्ञा दी गई है।
बजरंग बाण पाठ की सही विधि और नियम
बजरंग बाण का पाठ अत्यधिक प्रभावशाली होने के साथ-साथ कुछ विशेष नियमों का पालन भी मांगता है:
- पाठ शुरू करने से पहले भगवान हनुमान के सामने अपनी समस्या (संकट) का स्पष्ट संकल्प लें।
- पाठ हमेशा एकांत और स्वच्छ स्थान पर करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- लाल आसन पर बैठकर, हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पाठ करना सर्वोत्तम माना जाता है।
- आमतौर पर, इसका पाठ 11, 21, या 41 बार किया जाता है। संकल्प पूरा होने तक प्रतिदिन निश्चित संख्या में पाठ करें।
- पाठ के दौरान धूप (विशेषकर गुग्गुल) जलाना और हनुमान जी को गुड़ या गुड़-चने का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
