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Balram Jayanti (14 अगस्त 2025) – बलराम जयंती क्यों है खेती, धर्म और बल का प्रतीक पर्व? जानें पूजन विधि, कथा और रहस्य

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हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाने वाली बलराम जयंती, जिसे हल षष्ठी और ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई, बलराम जी को समर्पित है, जो कृषि, धर्म और बल के अद्वितीय प्रतीक हैं। 2025 में, बलराम जयंती 14 अगस्त, बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी। इस ब्लॉग में हम बलराम जयंती के महत्व, पूजन विधि, पौराणिक कथा और इससे जुड़े रहस्यों को गहराई से समझेंगे।

बलराम जयंती का महत्व

बलराम जी का व्यक्तित्व कई मायनों में अनूठा है। वे न केवल भगवान विष्णु के शेषावतार माने जाते हैं, बल्कि उन्हें कृषि के देवता, धर्म के रक्षक और असीम बल के स्वामी के रूप में भी पूजा जाता है।

  • खेती का प्रतीक – बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल है, जो कृषि और श्रम का प्रतीक है। उन्हें ‘हलधर’ भी कहा जाता है। किसानों के लिए बलराम जयंती का विशेष महत्व है क्योंकि यह अच्छी फसल और कृषि समृद्धि की कामना का पर्व है। इस दिन किसान बलराम जी की पूजा कर अपनी फसलों की रक्षा और उपज में वृद्धि की प्रार्थना करते हैं।
  • धर्म का प्रतीक – बलराम जी ने धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई राक्षसों का संहार किया और धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे। उनकी उपस्थिति स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के लिए एक संबल थी।
  • बल का प्रतीक – बलराम जी अपने असीम बल के लिए विख्यात हैं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया और दुश्मनों को परास्त किया। उनका बल शारीरिक शक्ति के साथ-साथ मानसिक दृढ़ता और आत्म-नियंत्रण का भी प्रतीक है।

बलराम जयंती 2025 – पूजन विधि

बलराम जयंती पर महिलाएं अपनी संतान के सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। पूजन विधि इस प्रकार है:

  • जयंती के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
  • पूजा के लिए एक साफ स्थान चुनें। यहां बलराम जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। आप चाहें तो एक प्रतीक के रूप में हल भी रख सकते हैं।
  • कुछ स्थानों पर, पूजा के लिए एक छोटा मिट्टी का हल बनाया जाता है। प्रतीकात्मक रूप से जौ, गेहूं या अन्य अनाज बोए जाते हैं, जो नई फसल और समृद्धि का प्रतीक होते हैं।
  • पूजन सामग्री में हल, मूसल (बलराम जी के अन्य शस्त्र), दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, पंचामृत, फूल, फल, धूप, दीप, रोली, चंदन, अक्षत, नारियल, और अनाज शामिल करें।
  • विधि-विधान से बलराम जी की पूजा करें। उनके मंत्रों का जाप करें, जैसे “ॐ नमो भगवते बलभद्राय नमः” या “ॐ बलरामाय नमः”।
  • बलराम जयंती की पौराणिक कथा का श्रवण करें या सुनाएं।
  • अंत में भगवान बलराम जी की आरती करें।
  • व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन हल से जुते हुए अनाज या सब्जियों का सेवन नहीं करती हैं। वे केवल उन फलों और सब्जियों का सेवन करती हैं जो बिना हल चलाए उगते हैं। व्रत का पारण शाम को पूजा के बाद किया जाता है।
  • पूजा में विशेष रूप से गाय के दूध और दही का उपयोग किया जाता है। भैंस का दूध और दही वर्जित माना जाता है।

बलराम जयंती की पौराणिक कथा

बलराम जी का जन्म देवकी और वासुदेव के सातवें गर्भ से हुआ था। कंस के भय से देवकी के पहले छह पुत्रों की हत्या कर दी गई थी। जब सातवां गर्भ आया, तो भगवान विष्णु के निर्देश पर योगमाया ने देवकी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। इस प्रकार, बलराम जी का जन्म रोहिणी के पुत्र के रूप में हुआ और वे ब्रज में नंद बाबा और यशोदा मैया के साथ पले-बढ़े।

बलराम जी बचपन से ही अत्यंत बलशाली थे। उन्होंने कई बाल लीलाएं कीं और अपने बड़े भाई कृष्ण के साथ मिलकर कई राक्षसों का संहार किया। उनका मुख्य शस्त्र हल था, जिसका उपयोग उन्होंने केवल युद्ध में ही नहीं, बल्कि कई चमत्कारिक कार्यों के लिए भी किया।

एक बार, जब यमुना नदी अपना मार्ग नहीं बदल रही थी, तो बलराम जी ने अपने हल से उसे खींचकर अपना मार्ग बदलने पर मजबूर कर दिया था। बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था, जो राजा काकुद्मी की पुत्री थीं। वे धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और सरल स्वभाव के थे।

बलराम जयंती से जुड़े रहस्य

  • बलराम जी को भगवान विष्णु के शेषनाग का अवतार माना जाता है। शेषनाग भगवान विष्णु के शैया और छत्र दोनों हैं, जो उनके सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान स्वरूप का प्रतीक है। बलराम जी का बल और उनकी धैर्यवान प्रकृति इसी शेषनाग स्वरूप से जुड़ी है।
  • बलराम जयंती कृषि के महत्व को उजागर करती है। यह हमें सिखाती है कि अन्न ही जीवन का आधार है और किसानों का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। यह पर्व प्रकृति और मनुष्य के अटूट संबंध का भी प्रतीक है।
  • भगवान कृष्ण और बलराम जी का संबंध भाईचारे, प्रेम और सहयोग का एक आदर्श उदाहरण है। यह पर्व हमें परिवार और समाज में सद्भाव बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
  • बलराम जी का जीवन सादगी और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। वे भले ही असीम बलशाली थे, लेकिन उन्होंने कभी अपने बल का दुरुपयोग नहीं किया। यह हमें सिखाता है कि शक्ति का उपयोग सदैव धर्म और न्याय के लिए होना चाहिए।

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