दुर्गा क्षमा प्रार्थना एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो दुर्गा सप्तशती के पाठ के उपरांत देवी भगवती से जाने-अनजाने में हुए अपराधों के लिए क्षमा याचना हेतु किया जाता है। इस प्रार्थना के माध्यम से साधक अपनी त्रुटियों के प्रति विनम्रता प्रदर्शित करते हुए देवी से कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।
इस प्रार्थना में साधक स्वीकार करता है कि उससे दिन-रात सहस्रों अपराध होते रहते हैं और वह आवाहन, विसर्जन या पूजा की विधि ठीक से नहीं जानता। वह देवी से आग्रह करता है कि मंत्र, क्रिया और भक्ति की कमी के बावजूद, उसकी पूजा को पूर्ण मानकर स्वीकार करें। साधक यह भी कहता है कि सैकड़ों अपराध करने के बाद भी यदि कोई ‘जगदम्ब’ कहकर पुकारता है, तो उसे वह गति प्राप्त होती है जो ब्रह्मादि देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। अंत में, वह अज्ञान, विस्मृति या भ्रांति के कारण हुई न्यूनताओं के लिए क्षमा मांगते हुए देवी से प्रसन्न होने की प्रार्थना करता है।
इस प्रकार, दुर्गा क्षमा प्रार्थना भक्तों को अपनी गलतियों के प्रति सजग होकर, विनम्रता और समर्पण के साथ देवी की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करती है।
दुर्गा क्षमा प्रार्थना मंत्र – Durga Kshama Prarthana Mantra
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत।
यां गतिं सम्वाप्नोते न तां बह्मादयः सुराः॥
सापराधो स्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योहं यथेच्छसि तथा कुरु॥
अक्षानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम् ॥
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रेहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतमं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥
॥ श्री दुर्गार्पणं अस्तु ॥