॥ दुर्गे दुर्घट भारी – देवीची आरती ॥
दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी ।
अनाथ नाथे अंबे करुणा विस्तारी ॥
वारी वारी जन्ममरणाते वारी ।
हारी पडलो आता संकट नीवारी ॥
जय देवी जय देवी महिषासुरमथिनी ।
सुरवरईश्वरवरदे तारक संजिवनी ॥
त्रिभुवनी भुवनी पाहता तुज ऐसी नाही ।
चारी श्रमले परंतु न बोलवे काही ॥
साही विवाद करिता पडिले प्रवाही ।
ते तूम भक्तांलागी पावसि लवलाही ॥
जय देवी जय देवी महिषासुरमथिनी..
प्रसन्नवदने प्रसन्न होसी निजदासा ।
क्लेशापासुनि सोडी तोडी भवपाशा ॥
अंबे तुजवाचून कोण पुरविल आशा ।
नरहरि तल्लीन झाला पदपंकजलेशा ॥
जय देवी जय देवी महिषासुरमथिनी..
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