श्री गर्ग संहिता एक महत्वपूर्ण पौराणिक ग्रंथ है जो भगवान कृष्ण और राधा के लीलाओं, उनके प्रेम, और उनसे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है। यह संहिता महर्षि गर्ग द्वारा संकलित की गई मानी जाती है, जो यादवों के कुलगुरु थे और भगवान कृष्ण के जीवन से गहराई से जुड़े थे।
श्री गर्ग संहिता ग्रंथ की विषय-वस्तु
श्री गर्ग संहिता मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डालती है:
- इस ग्रंथ में राधा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम, उनकी बाल लीलाएं, गोवर्धन लीला, रास लीला और अन्य अनेक मनोहारी प्रसंगों का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण वर्णन मिलता है। यह राधा को भगवान कृष्ण की अभिन्न शक्ति और सर्वोच्च प्रेम स्वरूप के रूप में प्रस्तुत करता है।
- महर्षि गर्ग यदुवंश के कुलगुरु थे, इसलिए इस संहिता में यदुवंश के विस्तार, प्रमुख राजाओं और उनकी गाथाओं का भी उल्लेख मिलता है।
- गर्ग संहिता केवल कथाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह भक्ति के विभिन्न आयामों, ज्ञान के महत्व और वैराग्य की भावना को भी उजागर करती है। यह बताती है कि कैसे भक्ति के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है।
गर्ग संहिता का महत्व
श्री गर्ग संहिता का हिंदू धर्म और विशेष रूप से वैष्णव संप्रदाय में अत्यधिक महत्व है। इसे कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह ग्रंथ राधा-कृष्ण के प्रेम को सर्वोच्च स्थान देता है और इसे दिव्य प्रेम का प्रतीक मानता है। यह प्रेम भक्ति के साधकों के लिए प्रेरणा का एक महान स्रोत है।
गर्ग संहिता भगवान कृष्ण के जीवन और यदुवंश से संबंधित कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भ प्रदान करती है, जो अन्य पुराणों और ग्रंथों में भी पाए जाते हैं। इस संहिता की भाषा अत्यंत सरस, सरल और भावपूर्ण है। इसमें वर्णित प्रसंगों का काव्यमय वर्णन पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह ग्रंथ भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के सिद्धांतों को समझाकर आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले व्यक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक का कार्य करता है।
गर्ग संहिता के प्रमुख खंड – Garg Samhita Gita Press Download
गर्ग संहिता के निम्नलिखित खण्ड (अध्याय) हैं:
- गोलोक खण्ड
- श्रीवृन्दावन खण्ड
- गिरिराज खण्ड
- माधुर्य खण्ड
- श्रीमथुरा खण्ड
- द्वारका खण्ड
- विश्वजीत खण्ड
- श्रीबलभद्र खण्ड
- श्रीविज्ञान खण्ड
- अश्वमेध खण्ड
गर्ग संहिता विषय सूची (Garg Samhita)
- गोलोक खण्ड
- नारदजी के द्वारा अवतार-भेद का निरूपण
- ब्रह्मादि देवों द्वारा गोलोक धाम का दर्शन
- भगवान् के भूतल पर अवतीर्ण होने का उद्योग
- गोपी भाव की प्राप्ति में कारण भूत पूर्व प्राप्त वरदानों का विवरण
- अवतार व्यवस्था का वर्णन
- कालनेमि के अंश से उत्पन्न कंस के बल का वर्णन
- कंस की दिग्विजय
- सुचन्द्र और कलावती का वृषभानु तथा कीर्ति के रूप में अवतरण
- वसुदेवजी के विवाह का प्रसङ्ग
- वलभद्रजी का अवतार व्यासदेव द्वारा उनका स्तवन
- श्रीकृष्ण का प्राकट्य
- श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, देवताओं का आगमन
- पूतनाका उद्धार
- शकटासुर और तृणावर्तका उद्धार
- यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण के मुख में ब्रह्माण्ड का दर्शन तथा श्रीकृष्ण और बलरामका नाम-करण संस्कार
- श्रीराधा और श्रीकृष्ण के विवाह का वर्णन
- श्रीकृष्ण की बाल लीला में दधि चोरी का वर्णन
- मृद्धक्षण लीला तथा मुख में ब्रह्माण्ड का दर्शन
- उलूखल-बन्धन तथा यमलार्जुन – उद्धार
- दुर्वासा के द्वारा भगवान् की माया का दर्शन तथा श्रीनन्दनन्दन स्तोत्र
- रास-विहार तथा आसुरिमुनिका उपाख्यान
- शिव और आसुरि का गोपी रूप से रासमण्डल में श्रीकृष्ण का दर्शन तथा स्तवन
- विरजा तथा श्रीदामाका प्रसङ्ग
- श्रीवृन्दावन खण्ड
- महावन से वृन्दावन चलने का उद्योग
- गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति का वर्णन
- श्रीयमुनाजी का गोलोक से अवतरण
- वत्सासुर का उद्धार
- वकासुर का उद्धार
- अघासुर का उद्धार
- ब्रह्माजी के द्वारा गौओं, गोवत्सों एवं गोप-बालकों का हरण
- ब्रह्माजी का श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी स्वरूप का दर्शन
- ब्रह्माजी के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति
- यशोदा की चिन्ता श्रीबलराम तथा श्रीकृष्ण का गोचारण
- धेनुकासुर – उद्धार
- श्रीकृष्ण द्वारा कालिय दमन तथा दावानल-पान
- शेषजी का उपाख्यान
- गरुड के भय से कालिय का यमुना जल में निवास
- श्रीराधा-कृष्णका प्रेमप्रसङ्ग
- तुलसी माहात्म्य और श्रीराधा द्वारा तुलसी- सेवन
- श्रीकृष्ण का गोपदेवी रूप धारण
- श्रीकृष्ण के द्वारा गोपदेवी रूप से श्रीराधा के प्रेम की परीक्षा तथा श्रीराधा को श्रीकृष्ण का दर्शन
- रासलीला का वर्णन
- श्रीराधा और श्रीकृष्ण का परस्पर शृङ्गार-धारण तथा रासक्रीड़ा
- श्रीकृष्ण का प्रकट होकर गोपियों को नारायण-स्वरूप के दर्शन कराना तथा यमुना विहार
- श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना
- श्रीकृष्ण के द्वारा शङ्खचूड का उद्धार