गृहस्थ धर्म की पूर्णता पुस्तक भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन के महत्व और आदर्शों को प्रस्तुत करने वाला एक विशेष ग्रंथ है। इसके लेखक/लेखिका राजेश्वरी शंकर ने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों, मूल्यों, और आध्यात्मिक पहलुओं का सुंदर वर्णन किया है। यह पुस्तक गृहस्थ जीवन को केवल भौतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन मानने के बजाय इसे एक पवित्र आध्यात्मिक साधना के रूप में प्रस्तुत करती है।
गृहस्थ धर्म की पूर्णता पुस्तक की विशेषताएँ
- पुस्तक में गृहस्थ धर्म का वास्तविक अर्थ समझाया गया है। यह बताती है कि गृहस्थ जीवन केवल परिवार का पालन-पोषण करना नहीं है, बल्कि समाज और धर्म के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाना है।
- इसमें गृहस्थ जीवन को धार्मिकता और आध्यात्मिकता के साथ संतुलित करने के उपाय सुझाए गए हैं। पुस्तक यह बताती है कि कैसे एक गृहस्थ व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।
- पति-पत्नी के संबंधों, उनके आपसी सहयोग, और उनके माध्यम से परिवार व समाज के निर्माण की प्रक्रिया को सरल और प्रेरणादायक ढंग से समझाया गया है।
- “गृहस्थ धर्म की पूर्णता” में यह बताया गया है कि गृहस्थ केवल अपने परिवार तक सीमित नहीं है। उसे समाज, पर्यावरण, और मानवता के प्रति भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।
- पुस्तक में प्राचीन भारतीय गृहस्थ परंपरा को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत किया गया है। यह बताती है कि किस प्रकार आधुनिक जीवनशैली में भी गृहस्थ धर्म के मूल्यों को अपनाया जा सकता है।