|| हरतालिकेची आरती ||
जय देवी हरितालिके। सखी पार्वती अंबिके ॥
आरती ओवाळीते। ज्ञानदीप कळिके ॥
जय देवी हरितालिके॥
हर अर्धांगी वससी। जासी यज्ञा माहेरासी॥
तेथे अपमान पावसी। यज्ञकुंडी गुप्त होसी॥
जय देवी हरितालिके॥
रिघसी हिमाद्रिच्या पोटी। कन्या होसी तूं गोमटी॥
उग्र तपश्चर्या मोठी। आचरसी उठाउठी॥
जय देवी हरितालिके॥
तपपंचाग्निसाधने। धुम्रपाने अघोवदने। .
केली बहु उपोषणे॥ शुंभ भ्रताराकारणें॥
जय देवी हरितालिके॥
लीला दाखविसी दृष्टी। हे व्रत करिसी लोकांसाठी॥
पुन्हा वरिसी धूर्जटी। मज रक्षावे संकटी॥
जय देवी हरितालिके॥
काय वर्णू तव गुण। अल्पमती नारायण॥
माते दाखवी चरण। चुकवावे जन्म मरण॥
जय देवी हरितालिके॥
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