पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित एक रहस्यमयी और अत्यंत पवित्र हिंदू मंदिर हाल ही में इंटरनेट पर चर्चा का विषय बन गया है। यह है हिंगलाज शक्तिपीठ, जिसे हिंगलाज माता, हिंगुला देवी या नानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे राजनीतिक तनाव और बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को लेकर हो रहे आंदोलनों के बीच, इस मंदिर का उल्लेख असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा किए जाने के बाद यह स्थान एक बार फिर सुर्खियों में है।
हिंगलाज शक्तिपीठ – एक पवित्र स्थल
मंदिर के सबसे वरिष्ठ पुजारी, महाराज गोपाल, का कहना है, “यह हिंदू धर्म की सबसे पवित्र जगह है. जो भी मंदिर में आकर पूजा करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं.” विकिपीडिया के अनुसार, इस मंदिर को हिंगलाज देवी, हिंगुला देवी, और नानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. आइए इस चर्चित मंदिर के बारे में और जानकारी प्राप्त करें.
मंदिर कहाँ है और इसकी खासियत क्या है?
यह मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगोल नेशनल पार्क में है. हिंगलाज मंदिर पाकिस्तान में मौजूद तीन शक्तिपीठों में से एक है; अन्य दो शक्तिपीठ शिवाहरकराय और शारदा पीठ हैं. हर साल वसंत ऋतु में यहां पाकिस्तान का एक बड़ा हिंदू त्योहार हिंगलाज यात्रा मनाया जाता है. इस आयोजन में 1 लाख से भी ज़्यादा श्रद्धालु शामिल होते हैं. श्रद्धालु सैकड़ों सीढ़ियां चढ़कर इस प्राचीन मंदिर तक पहुंचते हैं, जो हिंगोल नदी के किनारे बसा है. लोग वहां पहुंचकर नारियल और गुलाब की पंखुड़ियां चढ़ाते हैं, और इस दौरान भक्त हिंगलाज माता के दर्शन कर पाते हैं.
हिंगलाज मंदिर का इतिहास
शिव पुराण के अनुसार, दक्ष प्रजापति अपनी बेटी सती के लिए एक उपयुक्त वर ढूंढ रहे थे. लेकिन सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव को अपने पति के रूप में चुना. इससे दक्ष अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने एक बड़ा यज्ञ करवाया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया.
इस अपमान और क्रोध से परेशान होकर, सती ने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लिया. जब भगवान शिव को यह पता चला, तो वे सती के वियोग में दुखी होकर उनकी मृत देह को पूरे ब्रह्मांड में लेकर घूमते रहे. अंत में भगवान विष्णु बीच में आए और सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 108 टुकड़ों में विभाजित कर दिया.
इन टुकड़ों में से 52 धरती पर गिरे, और बाकी अन्य ग्रहों पर बिखर गए. जहां-जहां ये अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बने, जो आज माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों के मंदिर हैं. जानकारी के अनुसार, हिंगलाज मंदिर जिस स्थान पर है, वहां माता सती का सिर गिरा था.
बलूचिस्तान के लोग करते हैं देखभाल
बलूचिस्तान प्रांत में मौजूद माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज मंदिर की देखरेख वहां के स्थानीय बलूच लोग करते हैं. यहां के लोग इसे बेहद चमत्कारी मानते हैं. खूबसूरत पहाड़ियों में स्थित यह गुफा मंदिर इतने बड़े क्षेत्र में बना है कि हर कोई देखने वाला बस हैरान रह जाता है. वैसे यह मंदिर आदिकाल से है, लेकिन इतिहास के मुताबिक मंदिर 2000 साल पहले से यहीं स्थापित है. यहां पिंडी रूप में एक शिला पर देवी का स्वरूप उभरा हुआ है, जिनके दर्शन के लिए भक्त यहां आते हैं. नवरात्रि के दौरान तो यहां नौ दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना होती है.
खुली गुफा में है मंदिर
हिंगलाज माता का मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जहां एक गुफा बनी है. मंदिर में कोई दरवाज़ा नहीं है; इसकी परिक्रमा करने के लिए तीर्थयात्री गुफा के एक रास्ते से आते हैं और दूसरी से निकल जाते हैं. यहां के रक्षक के रूप में भगवान भोलेनाथ भीमलोचन भैरव के रूप में स्थापित हैं. माता के मंदिर के अलावा यहां श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा, ब्रह्मकुंड और तीरकुंड जैसे प्रसिद्ध तीर्थ भी हैं.
मंदिर कैसे जाते हैं भक्त?
लापरवाही के कारण यहां जाने की सुविधा कुछ खास नहीं है. यही वजह है कि इस मंदिर तक पहुंचने में भक्तों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यहां केवल समूहों में ही जा सकते हैं, क्योंकि मार्ग अलग-थलग है और सही रास्ता भी नहीं है. डकैतों द्वारा लूटे जाने का डर भी यहां भक्तों को रहता है, इसलिए कोई भी मंदिर अकेले नहीं जा सकता.
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