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Dhumavati Jayanti 2025: क्यों होती है इस दिन विधवा स्वरूप की देवी की पूजा? जानिए देवी धूमावती की महिमा, स्वरूप और सिद्धि की विधि

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हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूमावती जयंती मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह पावन पर्व 3 जून, मंगलवार को मनाया जाएगा। दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या देवी धूमावती का स्वरूप अत्यंत रहस्यमय और विचित्र है। वे विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं और उनकी उपासना से जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने तथा समस्त प्रकार के संकटों से मुक्ति पाने का मार्ग प्रशस्त होता है।

धूमावती जयंती 2025 का शुभ मुहूर्त

  • ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि
  • अष्टमी तिथि का प्रारंभ: 2 जून 2025 को रात्रि 09:10 बजे (IST)
  • अष्टमी तिथि का समापन: 3 जून 2025 को रात्रि 11:35 बजे (IST)
  • पूजा मुहूर्त: 3 जून 2025 को सुबह 05:45 बजे से 07:55 बजे तक (IST) (अवधि: 2 घंटे 10 मिनट)

कौन हैं देवी धूमावती?

देवी धूमावती को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। वे भगवान शिव के “धुमेश्वर रुद्र” की शक्ति हैं। उनका स्वरूप अन्य देवियों से भिन्न, गंभीर और रौद्र है। वे एक वृद्ध विधवा स्त्री के रूप में चित्रित की जाती हैं, जो श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं, खुले केशों वाली हैं, और एक कौवे पर सवार हैं। उनके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में सूप होता है। उन्हें दुर्भाग्य, दरिद्रता और निराशा की देवी भी माना जाता है, लेकिन वे अपने भक्तों पर कृपा बरसाने वाली हैं और समस्त बाधाओं तथा संकटों का नाश करती हैं।

क्यों होती है विधवा स्वरूप की देवी की पूजा?

देवी धूमावती के विधवा स्वरूप के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार माता सती को बहुत तेज भूख लगी। उन्होंने भगवान शिव से भोजन के लिए कहा, लेकिन शिवजी ने तत्काल व्यवस्था करने में असमर्थता जताई। तब सती ने अपनी भूख शांत करने के लिए भगवान शिव को ही निगल लिया। शिवजी के कंठ में विष होने के कारण उन्हें निगलने पर देवी की देह से धुआं निकलने लगा और उनका स्वरूप विकृत एवं श्रृंगार विहीन हो गया। भगवान शिव ने क्रोध में आकर देवी को वृद्ध विधवा होने का श्राप दिया और कहा कि तुम्हारे इस रूप को दुनिया ‘धूमावती देवी’ के नाम से जानेगी। इसी कारण उन्हें विधवा माना जाता है और इसी स्वरूप में उनकी पूजा की जाती है।

एक अन्य कथा के अनुसार, माता सती ने जब हवन कुंड में अपनी देह त्याग की, तो उनके शरीर से ज्वाला के साथ काला धुआं निकला। इसी काले धुएं से मां धूमावती का जन्म हुआ, इसीलिए वे ‘धूमावती’ कहलाईं।

सुहागिन महिलाओं के लिए क्यों वर्जित है धूमावती पूजा?

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, सुहागिन महिलाओं के लिए देवी धूमावती की पूजा वर्जित मानी जाती है। उन्हें दूर से ही देवी के दर्शन कर आशीर्वाद लेने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि माता धूमावती का स्वरूप विधवा होने के कारण सुहागिनों के लिए उनकी पूजा अशुभ हो सकती है। हालांकि, दर्शन मात्र से संतान और सुहाग दोनों की रक्षा होती है।

देवी धूमावती का स्वरूप

इनका रंग काला या गहरा नीला होता है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। उनके बाल बिखरे हुए होते हैं। वे कौवे पर सवार रहती हैं। उनका स्वरूप वृद्ध स्त्री का होता है। एक हाथ में सूप और दूसरे में तलवार लिए होती हैं। कभी-कभी वे भयभीत करने वाली मुद्रा में भी दिखाई देती हैं।

देवी धूमावती की महिमा और लाभ

देवी धूमावती की विधिवत पूजा-अर्चना करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:

  • देवी धूमावती की कृपा से आर्थिक संकट समाप्त होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। घनघोर दरिद्र को भी सुख-सम्पदा प्राप्त होती है।
  • इनकी आराधना से पापियों और शत्रुओं का नाश होता है। युद्ध में विजय की प्राप्ति होती है।
  • माता अपनी कृपा से समस्त प्रकार के दुष्कर रोगों का नाश करती हैं।
  • व्यक्ति के जीवन से विपत्ति, रोग आदि के संकट दूर हो जाते हैं।
  • देवी धूमावती केतु ग्रह को प्रभावित करती हैं। अतः केतु जनित बाधाओं के शमन हेतु भी माता धूमावती का पूजन किया जाता है।
  • तंत्र साधना में उच्चाटन और मारण क्रियाओं के लिए देवी धूमावती की पूजा की जाती है। ऋषि दुर्वासा, भृगु ऋषि व परशुराम ने विशेष शक्तियां पाने के लिए देवी धूमावती की ही आराधना की थी।

देवी धूमावती की सिद्धि की विधि (पूजा विधि)

धूमावती जयंती के दिन देवी की पूजा विशेष रूप से गुप्त साधक, तांत्रिक, ऋषि और योगी करते हैं ताकि वे अध्यात्म की ऊंचाइयों तक पहुंच सकें। सामान्य गृहस्थ भी नियमों का पालन करते हुए पूजा कर सकते हैं।

  • धूमावती जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रियाओं से निपटकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को साफ-सुथरा करके गाय के गोबर से लीप पोतकर आटे से चौक बनाएं।
  • देवी धूमावती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। यदि मूर्ति उपलब्ध न हो तो मन में देवी के स्वरूप का ध्यान करके भी पूजा कर सकते हैं।
  • माता धूमावती की पूजा पश्चिम दिशा में मुख करके की जाती है।
  • देवी धूमावती को मीठा नहीं बल्कि नमकीन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। तिल मिश्रित घी से भी होम किया जाता है।
  • पूजा में किसी भी प्रकार की रंगीन वस्तु या वस्त्र का उपयोग नहीं किया जाता। घी का दीपक प्रज्वलित करें।
  • देवी धूमावती के मंत्रों का जाप करें। कुछ प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं: ॐ धूं धूं धूमावत्यै स्वाहा।, ॐ धूमावत्यै विद्महे, संहारिण्यै धीमहि, तन्नो धूमा प्रचोदयात्।
  • मंत्र जाप के बाद देवी की आरती करें। पूजा के बाद दान-दक्षिणा करें।
  • तांत्रिक साधना करने वाले साधक एकांत में रहकर और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए यह पूजा करते हैं।
  • पूजा के दिनों में सात्विक भोजन ग्रहण करें और तामसिक वस्तुओं से दूर रहें।

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