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Indrakshi Shaktipeeth – जब श्रीलंका में प्रकट हुई इंद्राक्षी, जानिए छिपा हुआ रहस्य, क्यों माना जाता है इसे संकटहारी?

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श्रीलंका के जाफना में स्थित इंद्राक्षी शक्तिपीठ के रहस्य और महत्व को जानें। यह क्यों माना जाता है कि यहाँ माता सती के पायल गिरे थे और कैसे भगवान राम और रावण दोनों ने यहाँ पूजा कर विजय प्राप्त की थी।

हिंदू धर्म में, 51 शक्तिपीठों (Shakti Peethas) का विशेष महत्व है। ये वे पवित्र स्थान हैं जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। हर शक्तिपीठ की अपनी एक अनूठी कहानी और रहस्यमयी शक्ति है। ऐसा ही एक रहस्यमयी शक्तिपीठ श्रीलंका (Sri Lanka) में स्थित है, जिसे इंद्राक्षी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों से भी जुड़ा हुआ है।

चलिए, हम इस छिपे हुए रहस्य (hidden mystery) को उजागर करते हैं और जानते हैं कि क्यों इंद्राक्षी देवी को संकटहारी (remover of troubles) माना जाता है।

माता सती के पायल और शक्तिपीठ का जन्म

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तो सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। इन टुकड़ों में से, सती माता के पायल (anklets) श्रीलंका के जाफना (Jaffna) प्रायद्वीप में, नैनातिवु द्वीप पर गिरे। यह स्थान आज इंद्राक्षी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है, जिसे नैनातिवु नागपूषणी अम्मान मंदिर (Nainativu Nagapooshani Amman Temple) भी कहते हैं।

यहां शक्ति देवी इंद्राक्षी और उनके भैरव (Lord Bhairava) राक्षसेश्वर के रूप में विराजमान हैं। यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी की उपस्थिति इतनी शक्तिशाली है कि वह भक्तों के सभी कष्टों को हर लेती हैं।

रामायण से जुड़ा हुआ गहरा संबंध

इंद्राक्षी शक्तिपीठ की सबसे दिलचस्प कहानी भगवान राम और रावण से जुड़ी है।

  • भगवान राम की पूजा – रावण से युद्ध करने से पहले, भगवान राम ने इसी स्थान पर देवी इंद्राक्षी की पूजा की थी। उन्होंने माता से युद्ध में विजय (victory) का आशीर्वाद माँगा। मान्यता है कि इस पूजा के बाद ही भगवान राम को लंका पर विजय प्राप्त करने की शक्ति मिली। यह दर्शाता है कि देवी की कृपा से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
  • रावण का समर्पण – रावण, जो स्वयं शिव और शक्ति का महान उपासक था, उसने भी युद्ध से पहले इसी शक्तिपीठ में शक्ति पूजा की थी। हालाँकि, उसकी पूजा का उद्देश्य विजय नहीं, बल्कि अपनी शक्ति को बनाए रखना था। यह कहानी यह साबित करती है कि देवी की शक्ति से कोई भी अछूता नहीं है, भले ही वह धर्म के मार्ग पर न हो।

इन दोनों घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि इंद्राक्षी देवी अपने भक्तों के संकल्प को पूरा करने में मदद करती हैं, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक। इसीलिए उन्हें “संकटहारी” कहा जाता है, क्योंकि वे हर प्रकार के संकट को दूर करने की शक्ति रखती हैं।

इंद्राक्षी देवी का नाम और उनका महत्व

इंद्राक्षी का अर्थ “इंद्र की आँखों वाली” (one with the eyes of Indra) है। इसके पीछे एक और पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि देवों के राजा इंद्र ने एक बार एक ऋषि की पत्नी का अपमान किया था, जिसके बाद उन्हें श्राप मिला और उनके शरीर पर हजारों योनियों के निशान बन गए। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए इंद्र ने इसी स्थान पर देवी पार्वती की आराधना की। देवी ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनके शरीर के सभी निशानों को आँखों में बदल दिया, जिसके बाद इंद्र “सहस्राक्ष” (हजार आँखों वाले) कहलाए।

इस घटना के बाद, देवी को इंद्राक्षी (Indrakshi) कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है “जिन्होंने इंद्र को उनकी आँखें दीं।” यह कथा बताती है कि इंद्राक्षी देवी न केवल संकटों का निवारण करती हैं, बल्कि वे भक्तों को नई दृष्टि (new vision) और चेतना भी प्रदान करती हैं। उनकी पूजा से शारीरिक रोगों और मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

पूजा और साधना का महत्व

इंद्राक्षी शक्तिपीठ में पूजा का विशेष महत्व है। यहाँ के भक्त मानते हैं कि देवी की पूजा से:

  • इंद्राक्षी स्तोत्र (Indrakshi Stotra) का पाठ करने से गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को आरोग्य (good health) का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे वह नौकरी हो, व्यवसाय हो या कोई अन्य संघर्ष, देवी की कृपा से सफलता मिलती है।
  • यहाँ की शांत और पवित्र ऊर्जा से मन को शांति मिलती है और व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति (spiritual growth) की ओर बढ़ता है।

यह मंदिर दक्षिण भारत और श्रीलंका के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल (pilgrimage site) है।

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