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क्या है ‘इरुमुदी’ का रहस्य? सबरीमाला की ‘मण्डला पूजा’ में क्यों चढ़ाया जाता है भगवान अयप्पा को यह पवित्र पोटली?

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भारत की आध्यात्मिक भूमि पर कई ऐसे तीर्थस्थल हैं, जिनकी अपनी अनूठी परंपराएं और रहस्य हैं। इन्हीं में से एक है केरल (Kerala) के घने जंगलों के बीच शबरी पर्वत पर स्थित भगवान अयप्पा (Lord Ayyappa) का विश्व प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर। हर साल लाखों श्रद्धालु, 41 दिनों का कठोर मंडल व्रतम (Mandala Vratham) पूरा करके, सिर पर एक विशेष पवित्र पोटली लेकर यहाँ पहुंचते हैं। इस पोटली को ही ‘इरुमुदी’ (Irumudi) कहा जाता है। आइए, इस विशेष ब्लॉग में हम ‘इरुमुदी’ के गहरे आध्यात्मिक रहस्य और मण्डला पूजा (Mandala Puja) में इसके महत्व को विस्तार से समझते हैं।

इरुमुदी: केवल एक पोटली नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा का सार

‘इरुमुदी’ एक संस्कृत शब्द नहीं है, बल्कि दो तमिल शब्दों से मिलकर बना है:

  • ‘इरु’ (Iru) – जिसका अर्थ है ‘दो’ या ‘दोनों’।
  • ‘मुदी’ (Mudi) – जिसका अर्थ है ‘गठरी’ या ‘पोटली’।

इस प्रकार, इरुमुदी एक ऐसी पोटली है जिसके मुख्य रूप से दो भाग होते हैं, और यह भगवान अयप्पा के भक्त की 41 दिवसीय कठोर तपस्या, जिसे ‘मंडल व्रतम’ कहा जाता है, का भौतिक प्रतीक (physical symbol) है।

इरुमुदी के दो भाग – जीवात्मा और परमात्मा का मिलन

इरुमुदी के इन दो भागों में अलग-अलग सामग्री रखी जाती है, जो भक्ति मार्ग के गहन दर्शन को दर्शाती हैं:

मुन्मुदी (Munmudi – सामने वाला भाग)

  • सामग्री – इसमें भगवान अयप्पा के अभिषेक (Abhishekam) के लिए मुख्य रूप से घी से भरा नारियल (Thengai) रखा जाता है। घी जीवात्मा (Individual Soul) का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे भक्त 41 दिन की शुद्धिकरण प्रक्रिया के बाद परमात्मा (Supreme Soul – भगवान अयप्पा) को अर्पित करता है।
  • महत्व – यह भाग भक्त के आत्मसमर्पण, शुद्धिकरण और भगवान के प्रति प्रेम को दर्शाता है।

पिन्मुदी (Pinmudi – पिछला भाग)

  • सामग्री – इसमें वह वस्तुएँ रखी जाती हैं जो भक्त की सबरीमाला तक की यात्रा के लिए आवश्यक हैं, जैसे: सूखा प्रसाद, कपूर, अगरबत्ती, हल्दी, विभूति, कुछ पैसे, और यात्रा के दौरान खाने की सूखी वस्तुएँ।
  • महत्व – यह भाग यात्रा के लिए आवश्यक सांसारिक आवश्यकताओं (worldly necessities) का प्रतिनिधित्व करता है।इरुमुदी को सिर पर रखकर यात्रा करना इस बात का प्रतीक है कि भक्त अपने कर्मों का फल (कर्मफल) और अपनी आत्मा (घी से भरा नारियल) को सीधे भगवान अयप्पा को समर्पित करने जा रहा है।

‘इरुमुदी’ का रहस्य – क्यों है यह अनिवार्य?

सबरीमाला की यात्रा को एक सामान्य तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दीक्षा (spiritual initiation) माना जाता है। इरुमुदी को सिर पर धारण करने के कई गहरे और रहस्यमय कारण हैं:

  • कर्मों की गठरी – भक्त इरुमुदी को अपने सिर पर रखकर यह स्वीकार करता है कि वह अपने सभी अच्छे और बुरे कर्मों (Past Karma) की पोटली लेकर भगवान के चरणों में आया है, और अब वह इन कर्मों के बंधन से मुक्ति चाहता है।
  • 18 सीढ़ियों की पात्रता – सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिए 18 पवित्र सीढ़ियाँ (18 Holy Steps) हैं। इन सीढ़ियों पर केवल वही भक्त चढ़ सकते हैं, जिन्होंने 41 दिन का कठोर ‘मंडल व्रतम’ किया हो और सिर पर इरुमुदी धारण की हो। यह एक प्रकार से “पात्रता परीक्षा” (Eligibility Test) है।
  • ब्रह्मचर्य का प्रतीक – भगवान अयप्पा को ‘नित्य ब्रह्मचारी’ (Ever-Celibate) माना जाता है। 41 दिन का व्रत और इरुमुदी धारण करना, भक्त के ब्रह्मचर्य, आत्म-संयम (Self-Control) और तपस्या का चरम प्रतीक है।

मण्डला पूजा में इरुमुदी का अर्पण

मण्डला पूजा (Mandala Puja) वह मुख्य अनुष्ठान है, जिसके दौरान इरुमुदी को भगवान अयप्पा को चढ़ाया जाता है।
यह पूजा 41 दिन तक चलने वाले मंडल व्रतम के समापन का प्रतीक होती है, जो मलयालम महीने वृश्चिकम् (नवंबर-दिसंबर) में शुरू होती है और लगभग 41 दिनों के बाद धनु (दिसंबर-जनवरी) में समाप्त होती है।

कैसे चढ़ाया जाता है?

  • पंपा नदी में स्नान – सबरीमाला मंदिर पहुंचने से पहले, भक्त पंपा नदी में स्नान करके खुद को शुद्ध करते हैं।
  • शपथ पूरी – 41 दिनों के व्रत को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद भक्त इरुमुदी को मंदिर के मुख्य पुजारी (Tantri) को सौंपते हैं।
  • घी से अभिषेक – इरुमुदी से निकाले गए घी से भरे नारियल को तोड़कर, उस घी से भगवान अयप्पा की मूर्ति का विशेष ‘नेय्याभिषेकम’ (Neyyabhishekam – अभिषेक) किया जाता है। जैसा कि पहले बताया गया है, यह जीवात्मा के परमात्मा से मिलने का क्षण है।
  • नारियल की अग्नि में आहुति – घी निकालने के बाद नारियल का खोल (husk) ‘जादम’ या ‘मृत शरीर’ का प्रतिनिधित्व करता है। इसे मंदिर के सामने विशाल अग्नि-कुंड (आझी/Aazhi) में समर्पित कर दिया जाता है। इसका अर्थ है कि शुद्ध आत्मा (घी) को भगवान को अर्पित करने के बाद, मृत शरीर और सांसारिक मोह को अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है, ताकि आत्मा मोक्ष (Moksha) की ओर बढ़ सके।

आध्यात्मिक अर्थ

इरुमुदी का संपूर्ण अनुष्ठान यह सिखाता है: – “तत्वमसि” (Tat Tvam Asi) – “वह तुम ही हो”

यह सबरीमाला दर्शन का मूल मंत्र है। इरुमुदी के माध्यम से भक्त केवल प्रसाद नहीं चढ़ाता, बल्कि 41 दिनों के अनुशासन से शुद्ध की गई अपनी आत्मा (घी) को भगवान को समर्पित करता है। यह भक्ति का वह सर्वोच्च स्तर है, जहाँ भक्त और भगवान के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है।

यह यात्रा हमें सिखाती है कि मोक्ष पाने के लिए बाहरी वस्तुओं की नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की शुद्धता (purity) और आत्म-समर्पण की आवश्यकता होती है।

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