जय जय जगत्महरणा दिनकर सुखकिराणा ।
उदयाचल जगभासक दिनमणि शुभस्मरणा ॥
पद्मासन सुखमुर्ती सुहास्यवरवदना ।
पद्मकरा वरदप्रभ भास्वत सुखसदना ॥ १ ॥
जय देव जय देव जय भास्कर सूर्या ।
विधिहरिशंकररूपा जय सुरवरवर्या ॥ ध्रु० ॥
कनकाकृतिरथ एकचक्रांकित तरणी ।
सप्ताननाश्वभूषित रथि ता बैसोनी ॥
योजनसह्स्त्र द्वे द्वे शतयोजन दोनी ।
निमिषार्धे जग क्रमिसी अद्भुत तव करणी ॥ जय० ॥ २ ॥
जगदुद्भवस्थितिप्रलय-करणाद्यरूपा ।
ब्रह्म परात्पर पूर्ण तूम अद्वय तद्रूपा ॥
तत्त्वपदव्यतिरिक्ता अखंड सुखरूपा ।
अनन्य तव पद मौनी वंदित चिपा ॥ जय० ॥ ३ ॥
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