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ज्येष्ठ गौरी विसर्जन 2025 – जानें पूजन विधि, तिथि और महत्व

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भारत, विविधताओं का देश, जहां हर त्योहार एक नई कहानी कहता है और हमारी संस्कृति की समृद्ध विरासत को दर्शाता है। इन्हीं त्योहारों में से एक है “ज्येष्ठ गौरी विसर्जन”। यह उत्सव, विशेष रूप से महाराष्ट्र में, गणेश चतुर्थी के दौरान बड़े ही उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। (celebrated with great enthusiasm and devotion) यह देवी गौरी, जिन्हें माता पार्वती का ही एक रूप माना जाता है, को समर्पित तीन दिवसीय पर्व है, जिसका समापन विसर्जन के साथ होता है।

इस ब्लॉग में हम ज्येष्ठ गौरी विसर्जन 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके अनूठे महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे। यह लेख उन सभी भक्तों के लिए है जो इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहते हैं।

ज्येष्ठ गौरी विसर्जन 2025 – तिथि और शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ गौरी का यह पर्व तीन दिनों तक चलता है:

  • पहला दिन – आवाहन (स्थापना): इस दिन माता गौरी का घर में स्वागत किया जाता है।
  • दूसरा दिन – पूजन: यह दिन विशेष रूप से माता की पूजा और आराधना के लिए समर्पित होता है।
  • तीसरा दिन – विसर्जन: इस दिन माता को विदाई दी जाती है।

2025 में ज्येष्ठ गौरी विसर्जन की तिथि और समय इस प्रकार हैं:

  • ज्येष्ठ गौरी आवाहन: रविवार, 31 अगस्त 2025
  • ज्येष्ठ गौरी पूजा: सोमवार, 01 सितंबर 2025
  • ज्येष्ठ गौरी विसर्जन: मंगलवार, 02 सितंबर 2025
  • विसर्जन का शुभ मुहूर्त: मंगलवार, 2 सितंबर 2025 को सुबह 06:00 बजे से शाम 06:41 बजे तक।

यह पर्व गणेश उत्सव के बीच में आता है, जब चारों ओर भक्ति और उल्लास का माहौल होता है।

ज्येष्ठ गौरी पूजा का महत्व

ज्येष्ठ गौरी को देवी पार्वती का रूप माना जाता है, जो भगवान गणेश की माता हैं। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य सुखी वैवाहिक जीवन (blissful married life), सौभाग्य (good fortune) और संतान की समृद्धि के लिए माता का आशीर्वाद प्राप्त करना है। ऐसी मान्यता है कि माता गौरी अपने भक्तों के घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य लाती हैं और सभी परेशानियों को दूर करती हैं।

यह त्योहार मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए माता की पूजा करती हैं। कुछ परिवारों में यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है।

ज्येष्ठ गौरी विसर्जन की अनूठी पूजन विधि

ज्येष्ठ गौरी विसर्जन का दिन तीन दिवसीय उत्सव का अंतिम चरण होता है। यह दिन माता को सम्मानपूर्वक विदाई देने और उनसे अगले वर्ष फिर से आने का अनुरोध करने का होता है।

विसर्जन की विधि इस प्रकार है:

प्रातःकालीन पूजा और नैवेद्य

  • विसर्जन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • अंतिम बार माता गौरी की विधिवत पूजा करें।
  • माता को विशेष नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। कई घरों में इस दिन 16 तरह के पकवान (16 types of dishes) बनाए जाते हैं, जैसे पूरनपोली, मीठी पूड़ी, खीर और विभिन्न प्रकार की सब्जियां।
  • माता को हलवा-पूरी और मिठाई का भोग लगाएं।

आरती और विदाई गीत

  • पूजा के बाद कपूर से माता की आरती करें।
  • परिवार की महिलाएं मिलकर पारंपरिक विदाई गीत गाती हैं, जिनमें माता के आगमन और विदाई का वर्णन होता है। यह गीत माता को धन्यवाद देने और उन्हें अगले वर्ष फिर से आने का निमंत्रण देने का एक भावुक तरीका है। (an emotional way of saying thanks)

विसर्जन की तैयारी

  • आरती के बाद माता की मूर्ति से आभूषण और श्रृंगार की सामग्री उतार ली जाती है।
  • परिवार के पुरुष सदस्य श्रद्धापूर्वक माता की मूर्ति को विसर्जन के लिए ले जाते हैं।
  • विसर्जन जुलूस के दौरान भजन-कीर्तन और पारंपरिक संगीत बजाया जाता है, जिससे माहौल भक्तिमय हो जाता है।

शांतिपूर्ण विसर्जन

  • माता की मूर्ति को किसी पवित्र नदी, तालाब या झील में शांतिपूर्वक विसर्जित किया जाता है।
  • आजकल पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कई लोग घर में ही एक बड़े बर्तन में जल भरकर विसर्जन करते हैं और बाद में उस जल को पेड़-पौधों में डाल देते हैं। यह एक eco-friendly विकल्प है।
  • विसर्जन के समय माता से अपनी पूजा स्वीकार करने और जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा याचना करें।

प्रसाद वितरण और पारण

  • विसर्जन के बाद, घर लौटकर प्रसाद वितरित करें।
  • इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना और दान देना शुभ माना जाता है।
  • पूजा के बाद व्रत का पारण (breaking the fast) करें।

क्यों है यह पर्व इतना महत्वपूर्ण?

ज्येष्ठ गौरी विसर्जन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह परिवार के सदस्यों को एक साथ लाने वाला एक सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है। यह त्यौहार महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उन्हें अपने परिवार की भलाई के लिए प्रार्थना करने और अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त करने का एक मंच देता है। (a platform to express their religious faith)

यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि जिस प्रकार हम खुशी और उल्लास के साथ अपने प्रियजनों का स्वागत करते हैं, उसी प्रकार हमें उन्हें सम्मान और प्यार के साथ विदाई भी देनी चाहिए, यह जानते हुए कि वे अगले साल फिर आएंगे।

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