॥ आरती ॥
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं॥
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं
जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए,
पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए।
सुर वन्दन करने आए-हां आए,
श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं।
हस्तिनापुरी की उस पावन, धरती को नमते हैं
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं
वैशाख सुदी एकम में-एकम में,
जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे।
सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर,
सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर।
जन्मकल्याणक से पावन,उस गिरि को जजते हैं
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं
फिर बारह भावना भाई-हां भाई,
वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई।
लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए,
वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं।
उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को,शत-शत नमते हैं
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं
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