मासिक कार्तिगाई व्रत कथा PDF हिन्दी
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मासिक कार्तिगाई व्रत कथा हिन्दी Lyrics
|| कार्तिगाई व्रत कथा ||
कार्तिगाई दीपम का त्योहार दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव की पूजा को समर्पित है और दीपों के प्रज्वलन द्वारा अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
कार्तिगाई दीपम की कथा भगवान मुरुगन (जिन्हें कार्तिकेय भी कहा जाता है) के जन्म से जुड़ी है, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच एक भीषण युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में देवता हार रहे थे और उन्होंने भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई।
भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख से एक प्रचंड अग्नि उत्पन्न की, जो इतनी तीव्र थी कि सभी देवता और असुर भी उससे भयभीत हो गए। इस अग्नि से एक अद्भुत प्रकाश उत्पन्न हुआ, जिसने भगवान मुरुगन का रूप धारण किया। भगवान मुरुगन ने असुरों को पराजित किया और देवताओं को विजय दिलाई।
कार्तिगाई दीपम के दिन, तिरुवन्नामलई के अन्नामलाई पहाड़ पर एक विशाल दीप जलाया जाता है, जो भगवान शिव की ज्योति का प्रतीक है। इस पर्व पर भक्त अपने घरों और मंदिरों में दीप जलाते हैं और भगवान शिव और भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं। यह पर्व यह संदेश देता है कि सत्य और धर्म की सदा विजय होती है और अंधकार पर प्रकाश की जीत होती है।
कार्तिकेय, जिन्हें कार्तिगाई के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में युद्ध के देवता हैं। उन्हें भगवान शिव और पार्वती के पुत्र के रूप में जाना जाता है। कार्तिकेय को स्कंद या मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें युद्ध में बुद्धि और कौशल का देवता माना जाता है।
कार्तिकेय से जुड़े कई लोकप्रिय कहानियां हैं। एक कहानी में, कार्तिकेय का तारकासुर नामक राक्षस से युद्ध होता है। तारकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसे किसी ऐसे व्यक्ति के हाथों से ही मृत्यु होगी जो अभी पैदा नहीं हुआ था और न ही माता का दूध पिया था। कार्तिकेय ने तारकासुर को युद्ध में हरा दिया और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई।
|| कार्तिगाई पूजा विधि ||
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नानादि से निवृत्त हों।
- सूर्य देव को जल अर्पित करें और व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करें।
- पूजा घर की सफाई करें और पूजा की तैयारी करें।
- चौकी पर कपड़ा बिछाकर महादेव, मां पार्वती और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर पंचोपचार से पूजा करें।
- भगवान शिव का अभिषेक दूध, दही, घी, शहद और पंचामृत से करें।
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