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नवरात्रि 2025 में शैलपुत्री पूजा विधि, कथा और शुभ मुहूर्त की पूरी जानकारी (Navratri Shailputri Puja, Date, Method, Story and Auspicious Time)

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नवरात्रि का पावन पर्व, जो पूरे नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की आराधना का उत्सव है, जल्द ही आने वाला है। यह नौ दिनों का त्योहार (festival) आध्यात्मिक ऊर्जा, भक्ति और खुशी से भरा होता है। नवरात्रि के पहले दिन, मां दुर्गा के पहले स्वरूप, देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। आइए, जानते हैं 2025 की नवरात्रि में शैलपुत्री पूजा की तिथि, विधि, कथा और शुभ मुहूर्त से जुड़ी पूरी जानकारी।

शैलपुत्री कौन हैं? (Who is Shailputri?)

‘शैल’ का अर्थ है ‘पहाड़’ और ‘पुत्री’ का अर्थ है ‘पुत्री’, यानी ‘पहाड़ों की पुत्री’। देवी शैलपुत्री हिमालय (Himalaya) की पुत्री हैं। वह अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं। भगवान शिव से विवाह करने के बाद, जब उन्होंने अपने पिता के यज्ञ में शिव का अपमान होते देखा, तो उन्होंने आत्मदाह कर लिया। बाद में, उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर में हुआ और वे शैलपुत्री के नाम से जानी गईं।

उनका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वे नंदी बैल पर सवार रहती हैं और उनकी पूजा से भक्तों को स्थिरता और शक्ति मिलती है।

नवरात्रि 2025 में शैलपुत्री पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त (Navratri 2025 Shailputri Puja Date and Auspicious Time)

2025 में आश्विन नवरात्रि की शुरुआत सोमवार, सितम्बर 22, 2025 को से होगी। शैलपुत्री की पूजा इसी दिन की जाएगी।

  • आश्विन नवरात्रि का पहला दिन, सोमवार, सितम्बर 22, 2025
  • प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 22, 2025 को 01:23 AM बजे
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त – सितम्बर 23, 2025 को 02:55 AM बजे

शैलपुत्री पूजा की विधि (Method of Shailputri Puja)

शैलपुत्री पूजा के लिए एक सरल और विधिपूर्ण तरीका है:

  • नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • एक शुभ स्थान पर कलश स्थापित करें। कलश में जल भरें और उसमें थोड़ा गंगाजल, सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें। कलश के ऊपर एक नारियल रखें, जिसे लाल कपड़े से लपेटा गया हो।
  • एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा रखें।
  • पूजा के लिए जरूरी सामग्री जुटा लें – फूल, फल (केले, सेब), मिठाई, धूप, दीप, अक्षत, रोली, कुमकुम और श्रृंगार का सामान।
  • सबसे पहले मां का ध्यान करें और मंत्रों का जाप करें। “वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।” , “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।”
  • मां को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं।
  • पूजा के बाद शैलपुत्री माता की कथा सुनें और फिर आरती करें। आरती के बाद प्रसाद बांटें।

मां शैलपुत्री की कथा (The Story of Maa Shailputri)

पौराणिक कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती (जो उस समय देवी शैलपुत्री का पूर्व रूप थीं) अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए उत्सुक थीं। शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण के जाना उचित नहीं, लेकिन सती नहीं मानीं।

जब वे वहां पहुंचीं, तो दक्ष ने उनके सामने ही शिव का अपमान किया। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण, सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

जब शिव को यह बात पता चली, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद, सती ने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और वे शैलपुत्री कहलाईं। इस जन्म में भी उन्होंने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया।

शैलपुत्री पूजा का महत्व (Importance of Shailputri Puja)

मां शैलपुत्री की पूजा करने से कई लाभ मिलते हैं:

  • स्थिरता और दृढ़ता – यह पूजा जीवन में स्थिरता (stability) और दृढ़ता लाती है।
  • सफलता – यह भक्तों को जीवन में सफलता (success) प्राप्त करने में मदद करती है।
  • रोगों से मुक्ति – इस पूजा से भक्त सभी प्रकार के रोगों और कष्टों से मुक्त होते हैं।
  • मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं – सच्ची भक्ति से की गई पूजा से सभी मनोकामनाएं (desires) पूर्ण होती हैं।

शैलपुत्री पूजा नवरात्रि के पहले दिन की शुरुआत होती है, जो आध्यात्मिक यात्रा (spiritual journey) का प्रतीक है। इस दिन की पूजा से पूरे नौ दिनों की पूजा का आधार मजबूत होता है। इस नवरात्रि, मां शैलपुत्री की पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति से करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुखमय बनाएं। जय माता दी! (Jai Mata Di!)

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