।। पंगुनी उथिराम कथा ।।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब उथिराम नक्षत्र पूर्णिमा के साथ आता है, तो तमिल भाषी हिंदूओं द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार इन क्षेत्रों में काफी महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान मुरुगन (सुब्रमण्यम) के साथ भगवान इंद्र की बेटी देवसेना या देवनाई का विवाह हुआ था। इसीलिए इस दिन को काफी महत्ता दी गई है। पंगुनी उथिरम भगवान मुरुगन की शादी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि देवनाई को भगवान इंद्र के सफेद हाथी इरावत ने पाला था। ऐसी ही और भी कहानियां इस त्योहार को लेकर प्रसिद्ध हैं।
पंगुनी उथीराम के पर्व को महालक्ष्मी जयंती के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन देवी महालक्ष्मी ने महासागर के पौराणिक मंथन के दौरान पृथ्वी पर अवतार लिया था। जयंतिपुरा महात्मय में भी भगवान मुरुगन की पत्नी वल्ली और देवनाई के विवाह के बारे में बताया गया है।
इसे लेकर जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार दीवानई और वल्ली बहनें थीं, जो भगवान मुरुगन से विवाह करना चाहती थी। उनकी परवरिश अमृता वल्ली और सुंदरवल्ली नाम की बहनों के रूप में हुई। बाद में वह देवसेना और वल्ली के रूप में पहचानी गई। इसके बाद, उन्हें दो अलग-अलग लोगों ने गोद लिया और वह एक-दूसरे से अलग हो गई।
एक बेटी को भगवान इंद्र ने गोद लिया था, और दूसरी को एक आदिवासी राजा ने पाला था। जब भगवान मुरुगन ने राक्षसों का वध किया, तो इससे खुश होकर भगवान इंद्र ने अपनी बेटी देवनाई की मुरुगन भगवान से शादी करा दी। बाद में भगवान गणपति की मदद से वल्ली से भी शादी कर ली और उसे थिरुथानी चले गए।
एक कथा के अनुसार इस दिन को भगवान शिव और पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। इसे तिरुपति तिरुमाला तीर्थ में भगवान अय्यप्पन की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
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