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पूर्णिमा श्राद्ध 2025 – पितरों को तृप्त करने का सबसे श्रेष्ठ दिन (Purnima Shraddha – The Best Day to Satisfy Ancestors)

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सनातन धर्म में श्राद्ध (Shraddha) का विशेष महत्व है। यह वह समय होता है जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों (departed ancestors) को याद करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के 16 दिन पितरों को समर्पित होते हैं, लेकिन इन सब में पूर्णिमा श्राद्ध (Purnima Shraddha) का एक अद्वितीय स्थान है। 2025 में, पूर्णिमा श्राद्ध का यह पावन दिन हमारे पितरों को तृप्त करने का सबसे श्रेष्ठ अवसर लेकर आ रहा है। आइए, इस दिन के महत्व, विधि और कुछ खास बातों को विस्तार से जानें।

क्या है पूर्णिमा श्राद्ध? (What is Purnima Shraddha?)

पूर्णिमा श्राद्ध उन लोगों के लिए किया जाता है जिनका निधन किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। चाहे वह शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा हो या कृष्ण पक्ष की। इस विशेष दिन पर श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष (salvation) प्राप्त होता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। यह श्राद्ध पितृ पक्ष के पहले दिन, यानी प्रतिपदा श्राद्ध के साथ भी पड़ सकता है, लेकिन इसका महत्व अलग और विशेष होता है।

पूर्णिमा श्राद्ध 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and Auspicious Time for Purnima Shraddha 2025)

पूर्णिमा श्राद्ध 2025 की तिथि रविवार, 7 सितंबर, 2025 को पड़ रही है।

  • पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 7 सितंबर 2025, 01:41 AM बजे
  • पूर्णिमा तिथि का समापन: 7 सितंबर 2025, 11:38 PM बजे
  • कुतुप मुहूर्त (Kutup Muhurat): 11:54 AM से 12:44 PM तक
  • रोहिणी मुहूर्त (Rohini Muhurat): 12:44 PM से 01:34 PM तक
  • अपराह्न काल (Aparahan Kaal): 01:34 PM से 04:05 PM तक

श्राद्ध कर्म के लिए दोपहर का समय सबसे उत्तम माना जाता है, जिसे अपराह्न काल (afternoon time) भी कहते हैं। इस दौरान श्राद्ध करने से पितरों को शीघ्र तृप्ति मिलती है।

पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व (Importance of Purnima Shraddha)

पूर्णिमा श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक गहरी भावना का प्रतीक है। यह हमें अपने पूर्वजों के बलिदानों और योगदानों को याद दिलाता है।

  • पितरों को मोक्ष – इस दिन श्राद्ध करने से पितरों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
  • वंश वृद्धि और सुख-समृद्धि – पितरों के आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और वंश में वृद्धि होती है।
  • पितृ दोष से मुक्ति – यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष हो तो पूर्णिमा श्राद्ध करने से इसके नकारात्मक प्रभाव (negative effects) कम होते हैं।
  • पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता – यह दिन हमें सिखाता है कि हम अपने पूर्वजों के प्रति कितने ऋणी हैं और हमें उनके प्रति सम्मान दिखाना चाहिए।

पूर्णिमा श्राद्ध की विधि (Rituals for Purnima Shraddha)

पूर्णिमा श्राद्ध को सही विधि से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • श्राद्ध कर्म से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल, तिल और कुश से तर्पण करें। यह क्रिया पितरों को जल अर्पित करने के लिए होती है।
  • आटे, जौ, तिल और चावल से पिंड बनाएं। इन पिंडों को पितरों का प्रतीक माना जाता है। इन्हें कुश के ऊपर रखकर पितरों को अर्पित करें।
  • एक या तीन ब्राह्मणों को (संख्या विषम होनी चाहिए) भोजन कराएं। भोजन में खीर, पूड़ी, और पितरों को पसंद आने वाले अन्य व्यंजन शामिल करें। भोजन के बाद दक्षिणा और वस्त्र दान करें।
  • श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कौए, गाय और कुत्तों को भोजन कराना भी है। माना जाता है कि कौए पितरों के दूत होते हैं।

सावधानियां (Precautions)

  • श्राद्ध कर्म के दौरान तामसिक भोजन (non-vegetarian food) से दूर रहें।
  • पवित्रता बनाए रखें और क्रोध से बचें।
  • महिलाओं को श्राद्ध के दौरान सिर ढकना चाहिए।
  • घर में शांतिपूर्ण माहौल बनाएं।

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