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राम-वनगमन (Ram-Vangaman)

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राम-वनगमन भारतीय पौराणिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे श्री जैन जवाहर मित्रमंडल द्वारा प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक भगवान श्रीराम के जीवन की उस अद्वितीय घटना पर आधारित है, जिसमें उन्होंने पिता दशरथ की आज्ञा का पालन करते हुए 14 वर्षों के लिए वनवास स्वीकार किया। इस पुस्तक में रामायण की इस घटना को विस्तार से और गहन दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।

राम-वनगमन पुस्तक की विशेषताएँ

  1. श्रीराम का त्याग और आदर्श – “राम-वनगमन” भगवान श्रीराम के महान त्याग, धैर्य और कर्तव्यपरायणता को रेखांकित करती है। इसमें बताया गया है कि कैसे उन्होंने परिवार और राज्य की सुख-सुविधाओं को छोड़कर धर्म और सत्य के मार्ग का अनुसरण किया।
  2. अयोध्या से वन तक की यात्रा – इस ग्रंथ में श्रीराम, माता सीता, और भाई लक्ष्मण की अयोध्या से वन तक की यात्रा का वर्णन किया गया है। साथ ही, उनकी यात्रा के दौरान घटित घटनाओं, जैसे केवट प्रसंग और वनवास के प्रारंभिक दिनों का सजीव चित्रण किया गया है।
  3. संस्कार और शिक्षाएं – पुस्तक में रामायण के इस भाग के माध्यम से भारतीय संस्कृति, आदर्शों, और जीवन मूल्यों को समझाने का प्रयास किया गया है। यह बताती है कि कैसे राम का वनगमन त्याग, सहनशीलता, और धर्म का प्रतीक है।
  4. सरल और प्रभावशाली भाषा – “राम-वनगमन” की भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है, जो इसे पाठकों के लिए सहज और रुचिकर बनाती है। यह पुस्तक सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए उपयुक्त है।
  5. भारतीय परंपरा का वर्णन – यह ग्रंथ भारतीय परंपरा और मूल्यों की महिमा का वर्णन करता है। इसमें श्रीराम के चरित्र और उनके जीवन के आदर्शों का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।

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