श्रावण पूर्णिमा का व्रत भगवान सत्यनारायण को समर्पित होता है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा का पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है।
श्रावण पूर्णिमा व्रत कथा (Shravan Purnima Vrat Katha PDF)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में तुंगध्वज नाम का एक राजा राज्य करता था। उसे जंगल में शिकार करने का बहुत शौक था। एक दिन शिकार करते-करते वह थक गया और आराम करने के लिए एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। वहां उसने देखा कि बहुत से लोग भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे।
राजा को अपने अभिमान के कारण न तो भगवान को प्रणाम किया, न वह कथा में शामिल हुआ और न ही उसने प्रसाद लिया। प्रसाद देने पर भी उसने खाने से मना कर दिया और अपने नगर लौट आया।
नगर में आकर राजा ने देखा कि दूसरे राज्य के राजा ने उसके राज्य पर हमला कर दिया है। उसका पूरा राज्य तहस-नहस हो गया था और सैनिक भाग रहे थे। यह हालत देखकर राजा तुरंत समझ गया कि यह सब भगवान सत्यनारायण और उनके प्रसाद का निरादर करने के कारण हुआ है।
अपनी गलती का एहसास होने पर राजा तुरंत उसी जंगल में वापस गया जहां लोग भगवान सत्यनारायण की कथा कर रहे थे। वहां पहुंचकर राजा ने अपनी भूल के लिए माफी मांगी और प्रसाद ग्रहण किया। भगवान सत्यनारायण ने राजा को पश्चाताप करते देख क्षमा कर दिया।
जिसके फलस्वरूप भगवान के आशीर्वाद से उसके राज्य में सब कुछ पहले जैसा हो गया। भगवान सत्यनारायण की कृपा से राजा ने लंबे समय तक राज्य संभाला और अंत में स्वर्गलोक को गमन किया।
श्रावण पूर्णिमा व्रत का महत्व
मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा की कथा को पढ़ने या सुनने मात्र से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है।
- श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।
- इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सुख, शांति, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- श्रावण पूर्णिमा पर दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। इस दिन गाय को चारा खिलाना, चींटियों और मछलियों को दाना खिलाना शुभ माना जाता है, जिससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इस दिन तर्पण भी किया जाता है, जिससे घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
- इसी दिन रक्षाबंधन का पावन पर्व भी मनाया जाता है, जो भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है।
- कुछ क्षेत्रों में इसे कजरी पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, जहां महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
Found a Mistake or Error? Report it Now