मुंबई, जिसे ‘सपनों का शहर’ कहा जाता है, अपनी तेज रफ्तार के लिए जानी जाती है। लेकिन इस भागती-दौड़ती जिंदगी में एक जगह ऐसी है जहाँ आकर पूरा शहर सिर झुकाता है और शांति पाता है – वह है प्रभादेवी स्थित श्री सिद्धिविनायक मंदिर।
चाहे बॉलीवुड के सुपरस्टार हों, बड़े उद्योगपति हों, या आम आदमी, हर कोई यहाँ ‘बप्पा’ के सामने अपनी अर्जी लगाने आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर में मौजूद गणपति को ‘नवसाचा गणपति‘ क्यों कहा जाता है? और उनकी सूंड दाईं ओर क्यों झुकी है? आइए जानते हैं इस मंदिर के अनसुने रहस्य और दर्शन का सही तरीका।
श्री सिद्धिविनायक मंदिर का इतिहास
आज हम जिस भव्य इमारत को देखते हैं, उसकी शुरुआत बहुत विनम्र थी। इस मंदिर का निर्माण 19 नवंबर 1801 को हुआ था। इसका निर्माण लक्ष्मण विथु पाटिल ने करवाया था, लेकिन इसके लिए धन एक कृषक महिला देउबाई पाटिल ने दिया था।
रोचक तथ्य – देउबाई निसंतान थीं। उन्होंने मंदिर इसलिए बनवाया ताकि “जिन महिलाओं को संतान नहीं है, वे यहाँ आकर गणपति से प्रार्थना करें और उनकी गोद भर जाए।” यहीं से इस मंदिर की महिमा शुरू हुई।
‘नवसाचा गणपति’ का अर्थ और महत्व
मराठी भाषा में ‘नवस’ (Navas) का अर्थ होता है – मन्नत या प्रतिज्ञा।
सिद्धिविनायक को ‘नवसाचा गणपति’ (Navasacha Ganpati) इसलिए कहा जाता है क्योंकि माना जाता है कि यहाँ मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है।
भक्त यहाँ एक नारियल, मोदक या किसी विशेष सेवा का संकल्प लेते हैं (जिसे ‘नवस’ करना कहते हैं)। जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वे वापस आकर अपना संकल्प पूरा करते हैं। देउबाई की उस मूल प्रार्थना के कारण ही इसे “इच्छापूर्ति करने वाले गणेश” के रूप में दुनिया भर में ख्याति मिली है।
सिद्धिविनायक मंदिर मूर्ति का रहस्य – दाईं ओर मुड़ी सूंड का मतलब?
सिद्धिविनायक की मूर्ति सामान्य गणपति मूर्तियों से बहुत अलग और विशेष है।
- दाईं ओर सूंड – आमतौर पर गणेश जी की सूंड बाईं ओर होती है। लेकिन यहाँ सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है। शास्त्रों के अनुसार, दाईं सूंड वाले गणेश जी को ‘सिद्धिविनायक’ कहा जाता है। ये बहुत जागृत माने जाते हैं, लेकिन इनका विधि-विधान बहुत सख्त होता है।
- तीसरी आँख – भगवान शिव की तरह, यहाँ गणपति के मस्तक पर तीसरी आँख भी है, जो बुराई के नाश का प्रतीक है।
- रिद्धि-सिद्धि – मूर्ति के दोनों ओर धन और ऐश्वर्य की देवियाँ – रिद्धि और सिद्धि विराजमान हैं, जो यह दर्शाती हैं कि जहाँ गणेश हैं, वहाँ सफलता और संपन्नता स्वयं चली आती है।
सिद्धिविनायक मंदिर की वास्तुकला – प्राचीनता और आधुनिकता का संगम
पुराना मंदिर बहुत छोटा था, लेकिन 1990 के दशक में इसे एक भव्य स्वरूप दिया गया।
- सोने का कलश – मंदिर के शिखर पर लगा 12 फीट का कलश और उसके ऊपर का गुंबद सोने से मढ़ा हुआ है।
- अष्टभुजाकार संरचना – मुख्य गर्भगृह के ऊपर की इमारत अष्टभुजाकार (Octagonal) है, ताकि भक्त मंदिर के किसी भी कोने से गणेश जी के शिखर को देख सकें।
- लकड़ी के दरवाजे – गर्भगृह के लकड़ी के दरवाजों पर अष्टविनायक (गणेश जी के आठ रूप) की आकृतियाँ बहुत बारीकी से उकेरी गई हैं।
सिद्धिविनायक मंदिर दर्शन का सही तरीका और समय
सिद्धिविनायक मंदिर में दर्शन करना एक सुखद अनुभव हो सकता है यदि आप सही योजना के साथ जाएं।
सिद्धिविनायक मंदिर दर्शन के प्रकार
- मुख दर्शन – इसमें आप थोड़ी दूरी से मूर्ति के दर्शन करते हैं। यह लाइन थोड़ी जल्दी चलती है।
- चरण स्पर्श – गर्भगृह के अंदर जाने का मौका विशेष बुकिंग या कम भीड़ वाले दिनों में ही मिलता है।
सिद्धिविनायक मंदिर दर्शन के लिए टिप्स
- भीड़ से बचने के लिए, ‘Siddhivinayak Temple App’ के माध्यम से अपना स्लॉट बुक करें। इससे आप घंटों लंबी लाइन से बच सकते हैं।
- मंगलवार भगवान गणेश का दिन है। इस दिन यहाँ पैर रखने की जगह नहीं होती। यदि आप शांति से दर्शन करना चाहते हैं, तो बुधवार या गुरुवार दोपहर का समय चुनें।
- मंदिर परिसर में एक विशाल चांदी का मूषक (चूहा) है। ऐसी मान्यता है कि यदि आप मूषक के कान में अपनी इच्छा फुसफुसाते हैं, तो वह सीधा गणपति तक पहुँचती है। लेकिन ध्यान रहे, दूसरे कान को हाथ से ढक लें ताकि बात बाहर न निकले!
सिद्धिविनायक मंदिर का समय
- बुधवार से सोमवार – सुबह 5:30 बजे से रात 9:50 बजे तक।
- मंगलवार – सुबह 3:15 बजे से रात 12:00 बजे तक (विशेष आरती और भीड़ के कारण समय बदलता है)।
सिद्धिविनायक मंदिर का प्रसाद और आसपास का माहौल
दर्शन के बाद मंदिर के बाहर की गलियों का माहौल बहुत ही भक्तिमय होता है। इसे ‘फूल गली’ कहते हैं।
- यहाँ का मोदक और नारियल की बर्फी बहुत प्रसिद्ध है।
- मंदिर ट्रस्ट द्वारा दिया जाने वाला ‘बूंदी का लड्डू’ प्रसाद के रूप में अवश्य लें।
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