मुंबई, यानी मायानगरी, जो अपनी तेज़ रफ़्तार और कभी न थमने वाले सपनों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यह शहर कभी रुकता नहीं। लेकिन, अगर आपको इस महानगरी की असली धड़कन, इसका गहरा विश्वास और इसकी आस्था महसूस करनी हो, तो आपकी यात्रा प्रभादेवी स्थित श्री सिद्धिविनायक मंदिर (Shree Siddhivinayak Temple) पर आकर ठहर जाएगी।
यहाँ गूँजता “गणपति बप्पा मोरया” का जयघोष महज़ एक नारा नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों का अडिग विश्वास है। यह वो स्थान है, जहाँ बड़ी-बड़ी हस्तियों से लेकर आम आदमी तक, हर कोई अपना सिर झुकाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पूरे भारत में भगवान गणेश के हज़ारों पवित्र धाम हैं, पर मुंबई के सिद्धिविनायक (Siddhivinayak) की महिमा और शक्ति बेजोड़ है। उन्हें प्यार से ‘नवसाचा गणपति’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है – मनोकामनाएँ पूरी करने वाले गणेश।
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस दिव्य मूर्ति और इस प्राचीन मंदिर के पीछे कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य छिपे हैं, जो इसे दुनिया के बाकी सभी गणेश मंदिरों से न केवल अलग, बल्कि चमत्कारी भी बनाते हैं? आइए, आज हम आपको सिद्धिविनायक मंदिर के उन 5 बड़े, अद्भुत रहस्यों से रूबरू कराते हैं, जिन्हें हर भक्त को अवश्य जानना चाहिए। यह जानकारी आपके विश्वास को और भी गहरा कर देगी।
दायीं ओर मुड़ी हुई सूंड का रहस्य (दक्षिणमार्गी बप्पा)
ज्यादातर मंदिरों में या हमारे घरों में जो गणेश मूर्तियाँ होती हैं, उनकी सूंड बाईं ओर (Left side) मुड़ी होती है। इसे ‘वाममुखी’ गणेश कहा जाता है, जो शांत स्वरूप माने जाते हैं। लेकिन, सिद्धिविनायक मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ बप्पा की सूंड दायीं ओर (Right side) मुड़ी हुई है।
- क्यों है यह ख़ास? शास्त्रों के अनुसार, दायीं ओर मुड़ी सूंड वाले गणेश जी को ‘सिद्धिविनायक’ कहा जाता है। यह दिशा सूर्य की मानी जाती है, इसलिए ये प्रतिमा बहुत ही तेजस्वी और जाग्रत मानी जाती है।
- कठिन नियम – मान्यता है कि दायीं सूंड वाले गणपति बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को ‘सिद्धि’ (सफलता) प्रदान करते हैं, लेकिन इनके पूजा-पाठ के नियम बहुत कड़े होते हैं। अगर नियमों में चूक हो, तो वे जल्दी रुष्ट भी हो सकते हैं। यही कारण है कि यहाँ विधि-विधान का बहुत सख्ती से पालन होता है।
एक ही पत्थर से बनी है अद्भुत प्रतिमा (एकाश्म मूर्ति)
सिद्धिविनायक की मूर्ति कोई सामान्य मूर्ति नहीं है जिसे मिट्टी या सीमेंट से जोड़ा गया हो। यह मूर्ति ‘काले पत्थर’ (Black Stone) के एक ही शिलाखंड को तराशकर बनाई गई है।
- यह प्रतिमा लगभग ढाई फ़ीट ऊंची और दो फ़ीट चौड़ी है।
- सबसे अनोखी बात यह है कि भगवान गणेश यहाँ पालथी मारकर (कमल के फूल की तरह) नहीं बैठे हैं, बल्कि उनके पैर मुड़े हुए हैं और वे एक राजसी मुद्रा में विराजमान हैं।
बप्पा का ‘त्रिनेत्र’ स्वरूप (तीसरी आँख का रहस्य)
हम अक्सर भगवान शिव को ही ‘त्रिनेत्रधारी’ (तीसरी आँख वाले) के रूप में जानते हैं। लेकिन सिद्धिविनायक की मूर्ति को यदि आप गौर से देखें (या तस्वीरों में देखें), तो आपको बप्पा के मस्तक पर भी तीसरी आँख दिखाई देगी।
- यह स्वरूप बहुत ही दुर्लभ है। शिव जी के पुत्र होने के नाते, यह तीसरी आँख उनकी आंतरिक शक्ति और बुराई के विनाश का प्रतीक है।
- यही कारण है कि सिद्धिविनायक को ‘विघ्नहर्ता’ के साथ-साथ दुष्टों और संकटों का नाश करने वाला उग्र देवता भी माना जाता है। यहाँ आने वाले भक्तों को महसूस होता है कि कोई अलौकिक शक्ति उनकी रक्षा कर रही है।
सिद्धि और रिद्धि का साथ (सफलता और समृद्धि का संगम)
आमतौर पर गणेश जी की मूर्तियों में वे अकेले लड्डू खाते हुए दिखाए जाते हैं। लेकिन सिद्धिविनायक मंदिर में बप्पा अकेले नहीं हैं।
- मूर्ति के दोनों ओर माता रिद्धि और माता सिद्धि की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं।
- इसका अर्थ – ‘रिद्धि’ का अर्थ है समृद्धि (Wealth/Prosperity) और ‘सिद्धि’ का अर्थ है आध्यात्मिक शक्ति या सफलता (Success/Spiritual Power)।
- जो भक्त यहाँ आता है, उसे सिर्फ़ विघ्नों से मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि उसे जीवन में धन और सफलता का आशीर्वाद भी एक साथ प्राप्त होता है। इसी पूर्णता के कारण इस धाम का महत्व इतना अधिक है।
एक निस्संतान महिला की मन्नत और मंदिर का निर्माण
इस भव्य मंदिर की नींव एक बहुत ही भावुक कहानी पर टिकी है। आज जहाँ सोने का छत्र है, वहां कभी एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था। इसका निर्माण 19 नवंबर 1801 को लक्ष्मण विथु और देउबाई पाटिल ने करवाया था।
- असली रहस्य – देउबाई पाटिल एक अमीर महिला थीं, लेकिन वे निस्संतान थीं। उनके मन में यह विचार आया कि “मैं तो माँ नहीं बन सकी, लेकिन इस मंदिर में आने वाली किसी भी महिला की गोद सूनी न रहे।”
- इसी पवित्र संकल्प और प्रार्थना के साथ उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया।
- कहा जाता है कि देउबाई की वह निस्वार्थ प्रार्थना आज भी यहाँ गूंजती है। इसीलिए माना जाता है कि जो भी दम्पति यहाँ संतान प्राप्ति की कामना लेकर आता है, बप्पा उसकी झोली कभी खाली नहीं रखते।
क्यों खास है सिद्धिविनायक की ‘आरती’?
सिद्धिविनायक मंदिर की आरती का अनुभव रोंगटे खड़े कर देने वाला होता है। यहाँ की सुबह की काकड़ आरती और शाम की आरती के समय पूरा वातावरण ढोल, ताशे और मंत्रोच्चारण से गूंज उठता है।
रोचक तथ्य – मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे चांदी के बने हैं, जिन पर अष्टविनायक (गणेश जी के 8 रूप) की आकृतियां उकेरी गई हैं। वहीं, गर्भगृह की छत पर सोने की परत चढ़ी हुई है, जिसे भक्तों ने श्रद्धापूर्वक दान किया है।
सिद्धिविनायक दर्शन के लिए कुछ काम की बातें
अगर आप बप्पा के दर्शन का प्लान बना रहे हैं, तो ये बातें आपके काम आएँगी:
- मंगलवार को यहाँ सबसे ज़्यादा भीड़ होती है (लाखों की संख्या में)। अगर आप शांति से दर्शन करना चाहते हैं, तो बुधवार या सप्ताह के अन्य दिनों में दोपहर के समय जाएँ।
- जिस महीने की चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, उसे ‘अंगारक चतुर्थी’ कहते हैं। इस दिन यहाँ दर्शन का महत्व 100 गुना बढ़ जाता है।
- मंदिर प्रशासन ने हाल ही में शालीन कपड़ों को लेकर आग्रह किया है। दर्शन के लिए जाते समय पारंपरिक या शालीन वस्त्र पहनना उचित है।
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