जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर, श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, का चालीसा भक्तों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पाठ है। इस चालीसा का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह चालीसा भगवान सुपार्श्वनाथ के जीवन, तपस्या और गुणों का गुणगान करती है, जिससे भक्तों को उनसे प्रेरणा मिलती है।
अगर आप श्री सुपार्श्वनाथ चालीसा को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो आप इसे पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं। यह बहुत सुविधाजनक है क्योंकि आप इसे कहीं भी और कभी भी पढ़ सकते हैं। पीडीएफ फाइल में चालीसा का पूरा पाठ होता है, जिसे आप प्रिंट भी करवा सकते हैं।
|| श्री सुपार्श्वनाथ चालीसा (Suparshwnaath Chalisa PDF) ||
लोक शिखर के वासी हैं प्रभु,
तीर्थंकर सुपार्श्व जिननाथ ।
नयन द्वार को खोल खड़े हैं,
आओ! विराजो! हे जगनाथ ।।
सुन्दर नगरी वाराणसी स्थित,
राज्य करें राजा सुप्रतिष्टित ।
पृथ्वीसेना उनकी रानी,
देखे स्वप्न सोलह अभिरामी ।।
तीर्थंकर सूत गर्भ में आये,
सुरगण आकर मोद मनाये ।
शुक्ल ज्येष्ठ द्वादशी शुभ दिन,
जन्मे अहमिन्द्र योग में श्रीजिन ।।
जन्मोत्सव की ख़ुशी असीमित,
पूरी वाराणसी हुई सुशोभित ।
बढे सुपार्श्वजिन चन्द्र समान,
मुख पर बसे मंद मुस्कान ।।
समय प्रवाह रहा गतिशील,
कन्याएं परनाई सुशील ।
लोक प्रिय शासन कहलाता,
पर दुष्टों का दिल दहलाता ।।
नित प्रति सुन्दर भोग भोगते,
फिर भी कर्म बंध नहीं होते।
तन्मय नहीं होते भोगो में,
दृष्टि रहे अंतर योगों में ।।
एक दिन हुआ प्रबल वैराग्य,
राज पाठ छोड़ा मोह त्याग ।
दृढ निश्चय किया तप करने का,
करें देव अनुमोदन प्रभु का ।।
राज पाठ निज सूत को देकर,
गए सहेतुक वन में जिनवर ।
ध्यान में लीन हुए तपधारी,
तप कल्याणक करे सुर भारी ।।
हुए एकाग्र श्री भगवान,
तभी हुआ मनः पर्याय ज्ञान ।
शुद्धाहार लिया जिनवर ने,
सोमखेट भूपति के घर में ।।
वन में जाकर हुए ध्यानस्थ,
नौ वर्षो तक रहे छद्मस्थ ।
दो दिन का उपवास धार कर,
तरु शिरीष तल बैठे जाकर ।।
स्थिर हुए पर रहे सक्रिय,
कर्मशत्रु चतु: किये निष्क्रिय ।
क्षपक श्रेढ़ी हुए आरूढ़,
ज्ञान केवली पाया गूढ़ ।।
सुरपति ने ज्ञानोत्सव कीना,
धनपति ने समोशरण रचिना ।
विराजे अधरे सुपार्श्वस्वामी,
दिव्यध्वनि खिरती अभिरामी ।।
यदि चाहो अक्षय सुख पाना,
कर्माश्रव तज संवर करना ।
अविपाक निर्झरा को करके,
शिवसुख पाओ उद्धम करके ।।
चतु: दर्शन ज्ञान अष्ट बताये,
तेरह विधि चारित्र सुनाये ।
ब्रह्माभ्यंतर तप की महिमा,
तप से मिलती गुण गरिमा ।।
सब देशो में हुआ विहार,
भव्यो को किया भव से पार ।
एक महीना उम्र रही जब,
शैल सम्मेद पे किया उग्र तप।।
फाल्गुन शुक्ल सप्तमी आई,
मुक्ति महल पहुचे जिनराई ।
निर्वाणोत्सव को सुर आये,
कूट प्रभास की महिमा गाये ।।
स्वस्तिक चिन्ह सहित जिनराज,
पार करे भव सिंधु जहाज ।
जो भी प्रभु का ध्यान लगाते,
उनके सब संकट कट जाते।।
चालीसा सुपार्श्व स्वामी का,
मान हरे क्रोधी कामी का ।
जिनमन्दिर में आकर पढ़ना,
प्रभु का मन से नाम सुमरना ।।
अरुणा को हैं दृढ विश्वास,
पूरण होवे सब की आस ।।
|| श्री सुपार्श्वनाथ चालीसा पाठ की विधि (Shri Suparshvanath Chalisa Vidhi) ||
चालीसा का पाठ सही विधि से करने पर उसका पूरा फल मिलता है। यहाँ कुछ सरल चरण दिए गए हैं जिनका पालन करके आप इस चालीसा का पाठ कर सकते हैं:
- सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ जगह चुनें।
- भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। उनके सामने एक दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं।
- पाठ शुरू करने से पहले मन में भगवान सुपार्श्वनाथ का ध्यान करें और अपनी मनोकामना बताएं।
- शांत मन से चालीसा का पाठ करें। आप इसे एक बार, तीन बार, सात बार या ग्यारह बार पढ़ सकते हैं।
- पाठ के बाद भगवान की आरती करें और उनसे अपनी भूलों के लिए क्षमा मांगें।
|| श्री सुपार्श्वनाथ चालीसा के लाभ (Shri Suparshvanath Chalisa Laabh) ||
श्री सुपार्श्वनाथ चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्तों को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं:
- इस चालीसा के पाठ से मन को शांति मिलती है और जीवन से दुख-तकलीफें दूर होती हैं।
- यह पाठ आपके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे नकारात्मकता दूर होती है।
- चालीसा का पाठ करने से आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है और मोक्ष की दिशा में प्रगति होती है।
- सच्चे मन से पाठ करने पर भगवान सुपार्श्वनाथ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
- माना जाता है कि इस चालीसा के पाठ से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
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