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आमलकी एकादशी 2024 कब है, आंवला एकादशी शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

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फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है। आमलकी, अर्थात आंवला, को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। आमलकी एकादशी की कथा और महिमा को बताते हुए भगवान श्री विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनके लिए फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के पुष्य नक्षत्र में आने वाली एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है।

आमलकी एकादशी 2024 का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2024 में फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 मार्च 12 बजकर 21 मिनट पर दोपहर शुरुआत होगी और अगले दिन, यानि 21 मार्च, 2 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदयातिथि के अनुसार, 20 मार्च को आमलकी एकादशी का आचरण किया जाएगा।

आमलकी एकादशी के दिन आंवला पूजन का विशेष महत्व है। पौराणिक जानकारी के अनुसार, विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया, उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया और उसके हर अंग में ईश्वर का स्थान बताया गया है।

आमलकी एकादशी व्रत की पूजा विधि

  • आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन, व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
  • आमलकी एकादशी के दिन, सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा, और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता और मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो, इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।
  • तत्पश्चात
    मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये
    इस मंत्र को पढ़कर व्रत का संकल्प लें।
  • तपश्चात, षोडशोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
  • भगवान की पूजा के पश्चात, पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें।
  • सबसे पहले, वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
  • पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
  • इस कलश में देवताओं, तीर्थों, और सागर को आमंत्रित करें।
  • कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें।
  • इसके ऊपर पंच पल्लव रखें, फिर दीप जलाकर रखें।
  • कलश पर श्रीखंड और चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
  • अंत में, कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें।
  • रात्रि में भगवत कथा और भजन कीर्तन के साथ प्रभु का स्मरण करें।
  • द्वादशी के दिन, सुबह ब्राह्मण को भोजन करवाएं, दक्षिणा दें, साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें।
  • इन क्रियाओं के पश्चात, परायण करके अन्न-जल ग्रहण करें।

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