|| त्रिपुरी पूर्णिमा व्रत कथा PDF (Tripuri Purnima Vrat Katha) ||
त्रिपुरी पूर्णिमा, जिसे कार्तिक पूर्णिमा या देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसके कारण उन्हें ‘त्रिपुरारी’ कहा जाने लगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नाम का एक अत्यंत बलशाली राक्षस था। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने उसका वध कर दिया। अपने पिता की मृत्यु से दुखी होकर, तारकासुर के तीन पुत्रों – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली – ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तीनों भाइयों ने अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने कहा कि ऐसा संभव नहीं है। तब उन्होंने यह वरदान मांगा कि उन्हें ऐसे तीन नगर (पुर) प्राप्त हों, जो तीनों लोक में कहीं भी विचरण कर सकें। ये नगर तब ही नष्ट हों जब वे एक साथ एक सीध में आ जाएं, और कोई एक देवता ही एक ही बाण से उनका वध कर सके।
ब्रह्माजी ने उन्हें यह वरदान दे दिया। ब्रह्माजी के आदेश पर, मयदानव ने उनके लिए तीन अद्भुत नगरों का निर्माण किया:
- तारकक्ष के लिए सोने का नगर
- कमलाक्ष के लिए चांदी का नगर
- विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर
इन तीनों नगरों को ‘त्रिपुर’ कहा गया। इन तीनों भाइयों ने इन त्रिपुरों में निवास करते हुए तीनों लोकों पर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया। वे देवताओं और ऋषि-मुनियों को परेशान करने लगे। उनके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहायता मांगी।
ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि केवल भगवान शिव ही तीनों पुरों को नष्ट कर सकते हैं। तब सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे त्रिपुरासुरों के वध का आग्रह किया।
भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की। त्रिपुरों को नष्ट करने के लिए भगवान शिव ने एक अद्भुत रथ का निर्माण किया। यह रथ देवताओं और विभिन्न लोकों के तत्वों से बना था। रथ का हर हिस्सा किसी न किसी देवता या शक्ति का प्रतिनिधित्व करता था। भगवान शिव स्वयं इस रथ पर सवार हुए और त्रिपुरासुरों के साथ भयंकर युद्ध किया।
जैसे ही तीनों नगर (पुर) एक सीध में आए, भगवान शिव ने अपने दिव्य बाण से उन तीनों का एक साथ संहार कर दिया। इस प्रकार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुरों का वध करके तीनों लोकों को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
यह घटना कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को हुई थी। तभी से भगवान शिव को ‘त्रिपुरारी’ के नाम से जाना जाने लगा और इस पूर्णिमा को ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ कहा जाने लगा। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
त्रिपुरी पूर्णिमा का महत्व
माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान कई यज्ञों के समान फल देता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन को देव दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है, जहां देवतागण भगवान शिव की विजय का उत्सव मनाते हैं और दीप जलाते हैं।
त्रिपुरी पूर्णिमा पूजा विधि
- त्रिपुरी पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें। सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
- भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय जी की पूजा करें। उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- इस दिन दीपदान का विशेष महत्व है। घर में और मंदिरों में दीपक जलाएं।
- शाम के समय चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दें और ‘ॐ सः चंद्रमसे नमः’ मंत्र का जाप करें।
- कई स्थानों पर इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा भी सुनी जाती है।
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें।
- त्रिपुरी पूर्णिमा का व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
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