प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने एक हजार कमल के पुष्पों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। पूजा के दौरान शिवजी ने विष्णु की भक्ति परखने के लिए एक कमल कम कर दिया।
कमल कम देखकर, भगवान विष्णु ने अपने कमल-समान नेत्र को शिवजी को अर्पित करने का निश्चय किया। उनकी इस अद्भुत भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने विष्णु को नेत्र लौटाया और उन्हें सुदर्शन चक्र भेंट किया।
इसी दिन शिवजी ने विष्णुजी को यह आशीर्वाद दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो भी भक्त हरि और हर (विष्णु और शिव) की एक साथ पूजा करेगा, उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होगी। इसलिए इसे ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ कहा जाता है।
|| वैकुण्ठ चतुर्दशी प्रचलित पौराणिक कथा (Vaikuntha Chaturdashi Katha PDF) ||
पौराणिक मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन तथा पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।
विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले: हे विष्णु! आपके समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान किया। शिवजी तथा विष्णुजी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान बैकुंठ धाम में सुनिश्चित करेगा।
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