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वैकुण्ठ एकादशी व्रत – मोक्ष का महाद्वार खोलने वाला पावन दिन, चावल क्यों हैं वर्जित? जानें 7 जरूरी नियम और शुभ मुहूर्त

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सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, और जब बात वैकुण्ठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi) की हो, तो इसका माहात्म्य कई गुना बढ़ जाता है। इसे ‘मोक्षदा एकादशी’ और ‘मुरवैकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के लिए सीधे वैकुण्ठ धाम (Vaikuntha Dham) के द्वार खुल जाते हैं। पौष माह (Paush Month) के शुक्ल पक्ष में आने वाली यह एकादशी वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है।

साल 2025 में वैकुण्ठ एकादशी का व्रत 31 दिसम्बर 2025 (बुधवार) को रखा जाएगा। आइए, इस पावन व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और सबसे जरूरी सवाल – कि इस दिन चावल क्यों नहीं खाते – के बारे में विस्तार से जानते हैं।

वैकुण्ठ एकादशी 2025 – शुभ मुहूर्त (Auspicious Time)

  • वैकुण्ठ एकादशी तिथि आरंभ – 30 दिसम्बर, 2025 को 07:50 ए एम बजे
  • वैकुण्ठ एकादशी तिथि समाप्त – 31 दिसम्बर, 2025 को 05:00 ए एम बजे
  • वैकुण्ठ एकादशी व्रत – 31 दिसम्बर, 2025 (बुधवार)
  • व्रत पारण (Fast Breaking) का समय – 31 दिसम्बर 2025, सुबह 07:14 बजे से 09:18 बजे तक
  • नोट – व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन ही शुभ माना जाता है।

वैकुण्ठ एकादशी पर चावल क्यों नहीं खाते? (Why is Rice Avoided?)

एकादशी व्रत से जुड़ा सबसे प्रमुख नियम है चावल का सेवन न करना। यह नियम वैकुण्ठ एकादशी पर भी सख्ती से लागू होता है। इसके पीछे दो मुख्य कारण बताए गए हैं:

धार्मिक और पौराणिक कारण (Religious and Mythological Reason)

एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपना शरीर त्याग दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश धरती में समाया, वह एकादशी तिथि थी। माना जाता है कि महर्षि मेधा बाद में चावल और जौ (Rice and Barley) के रूप में उत्पन्न हुए। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस के सेवन जैसा माना जाता है, जो घोर पाप है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन सभी पाप अन्न में समाहित हो जाते हैं। जो व्यक्ति इस दिन चावल खाता है, वह पापों का भागी बनता है। कहते हैं कि चावल खाने वाला व्यक्ति अगले जन्म में रेंगने वाली योनि (Worm/Reptile) में जन्म लेता है।

वैज्ञानिक कारण (Scientific Reason)

चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, जल पर चंद्रमा (Moon) का प्रभाव अधिक पड़ता है। एकादशी के दिन चंद्रमा की स्थिति ऐसी होती है कि चावल खाने से शरीर में जल तत्व बढ़ता है, जिससे मन विचलित और चंचल होता है।

व्रत का मूल उद्देश्य मन को शांत रखकर एकाग्रता से भगवान की भक्ति करना होता है। मन के चंचल होने से व्यक्ति व्रत के नियमों का सही से पालन नहीं कर पाता। इसलिए, मन को नियंत्रित और सात्विक बनाए रखने के लिए इस दिन चावल खाना वर्जित (Prohibited) बताया गया है।

वैकुण्ठ एकादशी व्रत के 7 जरूरी नियम (7 Essential Rules of Vaikuntha Ekadashi Fast)

वैकुण्ठ एकादशी का पूर्ण लाभ लेने के लिए इन 7 नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक है:

  1. अन्न का त्याग (Avoid Grains) – एकादशी के दिन चावल, जौ, गेहूं और दालों का सेवन बिल्कुल न करें। फलाहार या सात्विक (Falahar or Sattvik) भोजन जैसे आलू, शकरकंद, साबूदाना, दूध, फल आदि का सेवन किया जा सकता है।
  2. तामसिक भोजन से दूरी – व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की शाम से ही प्याज, लहसुन, मांसाहार, शराब आदि तामसिक चीजों का त्याग कर देना चाहिए।
  3. ब्रह्मचर्य का पालन – एकादशी के दिन शारीरिक और मानसिक रूप से पवित्रता बनाए रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  4. भगवान विष्णु का विशेष पूजन – इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें। मंदिरों में ‘वैकुण्ठ द्वार’ (Vaikuntha Dwar) से दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।
  5. रात्रि जागरण (Night Vigil) – संभव हो तो एकादशी की रात्रि में जागरण करें और भगवान विष्णु के मंत्रों जैसे ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें।
  6. क्रोध और निंदा से बचें – इस दिन किसी की बुराई (Defamation) न करें, किसी पर क्रोध न करें, और झूठ बोलने से बचें। मन को पूरी तरह भक्ति में लीन रखें।
  7. द्वादशी को पारण – व्रत का पारण द्वादशी तिथि के शुभ मुहूर्त में ही करें। पारण से पहले दान-पुण्य अवश्य करें।

वैकुण्ठ एकादशी का महत्व (Significance of Vaikuntha Ekadashi)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वैकुण्ठ एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने ‘मुर’ नामक राक्षस का वध किया था और देवी एकादशी को वरदान दिया था कि जो भी इस दिन व्रत रखेगा, उसे मोक्ष (Moksha) की प्राप्ति होगी।

दक्षिण भारत के मंदिरों, विशेषकर तिरुपति (Tirupati), श्रीरंगम जैसे मंदिरों में इस दिन उत्सव (Utsav) मनाया जाता है और उत्तर दिशा का द्वार खोला जाता है, जिसे ‘वैकुण्ठ द्वार’ कहते हैं। इस द्वार से गुजरने वाले भक्त मानते हैं कि उन्हें सीधे भगवान विष्णु के परमधाम की प्राप्ति होती है।

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