॥ श्री विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र पाठ विधि ॥
- श्री विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र को सही विधि पूर्वक ही करने से लाभ होता है।
- प्रात: काल सबसे पहले स्नान आदि करके शिवलिंग का दूध और जल से अभिषेक करें।
- इसके बाद भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें।
- अंत में शिवलिंग से सामने बैठकर श्री विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र का जाप करें।
॥ श्री विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र से लाभ ॥
- इस विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र को जो साधक श्रद्धा के साथ सुनता या पढ़ता है, उसे इसी जन्म में विद्या, धन, कीर्ति और अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
- साधक को मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है।
॥ श्री विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र एवं अर्थ ॥
गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।
नारायणप्रियमनंगमदा पहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जिनकी जटाएं गंगा जी की लहरों से सुंदर प्रतीत होती है, जिनका बायां भाग हमेशा सार्वभौमिक शक्ति यानी देवी गौरी से सुशोभित है, जो नारायण के प्रिय होने के साथ ही कामदेव के मद का नाश करने वाले हैं, उन वाराणसी के स्वामी अर्थात् काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णु सुरसेवितपादपीठम्।
वामेन विग्रहवरेण कलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जिनका वर्णन वाणी से नहीं हो सकता, जिनके अनेक गुण और अनेक स्वरूप हैं, ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता जिनकी सेवा करते हैं, जिनका बाईं ओर उनकी पत्नी यानी पार्वती के विराजमान होने से सुंदर प्रतीत होता है, मैं उन काशीपति विश्वनाथ को प्रणाम करता हूं।
भूताधिपं भुजगभूषणभूषिताङ्गं,
व्याघ्राजिनाम्बरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।
पाशाङ्कुशाभयवर प्रदशूलपाणिं,
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जो भूतों के अधिपति हैं, जिनका शरीर सर्प रूपी गहनों से विभूषित है और जो बाघ की खाल का वस्त्र पहनते हैं। जिनके हाथों में पाश, अंकुश, अभय, वर और शूल है, उन जटाधारी त्रिनेत्र काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं,
भाक्षणानल-विशोषितपञ्चवाणम्।
नागाधिपा रचितभासुरकर्णपूरं,
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जो चन्द्रमा द्वारा प्रकाशित मुकुट से सुशोभित हैं, जिन्होंने अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया, जिनके कानों में बड़े-बड़े सांपों के कुंडल चमक रहे हैं। उन काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
पञ्चानन्दुरितमत्तमतंगजानां,
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम्।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां,
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जो पाप रूपी मतवाले हाथियों को मारने वाले सिंह है, दैत्य समूह रूपी सांपों का नाश करने वाले गरुड़ हैं और जो मृत्यु, शोक और वृद्धावस्था के दुखों को जलाने वाले दावानल हैं, ऐसे काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीय,
मानन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं,
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जो तेजपूर्ण, सगुण, निर्गुण, अद्वितीय, आनन्दकन्द, अपराजित और अतुलनीय हैं, जो अपने शरीर पर सांपों को धारण करते हैं, जिनका रूप आत्मा में विलीन है, ऐसे आत्मस्वरूप काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं,
वैराग्यशांतिनिलयं गिरिजासहायम्।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं,
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: हे प्रभु! जो लालसा से रहित हैं, अपने भक्तों पर कृपा रखते हैं, जो वैराग्य और शांति के स्थान हैं, पार्वती जी सदा जिनके साथ रहती हैं, जो धीरता और मधुर स्वभाव से सुंदर दिखते हैं और जो कंठ में विष को धारण किए हुए हैं, उन काशीपति विश्वनाथ मैं प्रणाम करता हूं।
आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां,
पापे मतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं,
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥
अर्थ: सब आशाओं को छोड़कर, दूसरों की निंदी त्याग कर और पाप-कर्म से अनुराग हटाकर, चित्त को समाधि में लगाकर, हृदय कमल में प्रकाशमान परमेश्वर काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य,
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं,
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्॥
अर्थ: जो मनुष्य काशीपति शिव के इस आठ श्लोकों के स्तवन का पाठ करता है। वह विद्या, धन और अनंत कीर्ति प्राप्त कर मृत्यु के बाद मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है।
विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
अर्थ: जो शिव के समीप इस बैठ इस विश्वनाथाष्टक का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता और शिव के साथ आनंदित होता है।
॥इति वेदव्यासकृतं विश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम्॥
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