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एकादशी के दिन क्यों नहीं खाया जाता अन्न? जानिए उस रहस्य को जिसे विज्ञान और धर्म दोनों मानते हैं

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एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने में दो बार आती है – शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भक्त अन्न ग्रहण नहीं करते, बल्कि फलाहार या केवल जल पर निर्भर रहते हैं। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

सनातन धर्म में एकादशी का व्रत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर महीने आने वाली दो एकादशियां भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं और इन्हें मोक्षदायिनी माना जाता है। इस दिन भक्तजन अन्न का त्याग कर फलाहार करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अन्न के त्याग के पीछे क्या रहस्य है? क्या यह सिर्फ एक धार्मिक परंपरा है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार भी छिपा है? आइए, आज इस गहन विषय पर विस्तृत चर्चा करते हैं और उस रहस्य को उजागर करते हैं जिसे धर्म और विज्ञान दोनों ही स्वीकार करते हैं।

एकादशी धार्मिक महत्व – अध्यात्मिक उत्थान का मार्ग

धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में एकादशी के व्रत का विस्तृत वर्णन मिलता है। मान्यता है कि इस दिन अन्न का सेवन करने से पाप लगता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ से वंचित रहना पड़ता है।

  • पापों का नाश – पद्म पुराण के अनुसार, एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु के शरीर से एक शक्ति प्रकट हुई थी, जिसे एकादशी देवी कहा गया। इस देवी ने मूर नामक राक्षस का वध किया था। भगवान विष्णु ने एकादशी देवी को वरदान दिया कि जो भी इस दिन अन्न का त्याग करेगा, उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।
  • इंद्रियों पर नियंत्रण – अन्न का त्याग करके भक्त अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करते हैं। यह मन को शांत करने और उसे भौतिक इच्छाओं से दूर करके परमात्मा की ओर मोड़ने में मदद करता है।
  • तपस्या और त्याग – एकादशी का व्रत एक प्रकार की तपस्या है। अन्न का त्याग करके भक्त अपनी श्रद्धा और त्याग की भावना प्रदर्शित करते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
  • ऊर्जा का संरक्षण – धार्मिक दृष्टिकोण से, अन्न पचाने में शरीर की बहुत ऊर्जा खर्च होती है। एकादशी के दिन अन्न का त्याग करके इस ऊर्जा को आध्यात्मिक कार्यों, जैसे ध्यान, जप और पूजा-पाठ में लगाया जाता है।

एकादशी वैज्ञानिक दृष्टिकोण – शरीर और मन के लिए वरदान

आधुनिक विज्ञान भी एकादशी के दिन अन्न के त्याग के पीछे कई तार्किक कारण ढूंढता है, जो हमारे शरीर और मन के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं।

  • पाचन तंत्र को आराम – हमारा पाचन तंत्र लगातार काम करता रहता है। एकादशी के दिन अन्न का त्याग करके उसे आराम मिलता है। यह शरीर को डीटॉक्सिफाई करने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। जब पाचन तंत्र को आराम मिलता है, तो वह बेहतर तरीके से काम कर पाता है और शरीर की अन्य प्रणालियां भी सुचारू रूप से चलती हैं।
  • चंद्रमा का प्रभाव और जल तत्व – वैज्ञानिक मानते हैं कि चंद्रमा का पृथ्वी और उस पर मौजूद जल तत्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। एकादशी तिथि पर चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक होती है, जिससे पृथ्वी पर जल स्तर बढ़ता है। हमारा शरीर भी लगभग 70% जल से बना है। ऐसी स्थिति में, अन्न का सेवन करने से शरीर में जल प्रतिधारण (water retention) बढ़ सकता है और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। अन्न के बजाय फलाहार लेने से इस प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।
  • शारीरिक शुद्धि (Detoxification) – अनाज में कार्बोहाइड्रेट्स और अन्य जटिल पोषक तत्व होते हैं जिन्हें पचाने में अधिक समय लगता है। एकादशी के दिन अन्न का सेवन न करने से शरीर को इन जटिल पदार्थों को पचाने से छुट्टी मिलती है। इससे शरीर अपनी ऊर्जा को कोशिकाओं की मरम्मत, विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में लगा पाता है। यह एक प्राकृतिक डिटॉक्स प्रक्रिया है जो शरीर को अंदर से साफ करती है।
  • मानसिक स्पष्टता और एकाग्रता – हल्का भोजन करने या फलाहार लेने से शरीर पर बोझ कम होता है। जब शरीर हल्का महसूस करता है, तो मन भी अधिक शांत और केंद्रित रहता है। इससे व्यक्ति की सोचने की क्षमता बेहतर होती है और एकाग्रता बढ़ती है। यही कारण है कि एकादशी पर ध्यान और जप करना अधिक फलदायी माना जाता है।
  • आत्म-नियंत्रण का अभ्यास – उपवास, चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिक, आत्म-नियंत्रण का एक बेहतरीन अभ्यास है। यह हमें अपनी भूख और इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सिखाता है। यह मानसिक दृढ़ता को बढ़ाता है और जीवन के अन्य पहलुओं में भी हमें अनुशासित रहने में मदद करता है।

एकादशी पर क्या खाएं और क्या न खाएं?

एकादशी पर अन्न का त्याग किया जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप भूखे रहें। आप फलाहार कर सकते हैं।

क्या खाएं

  • फल (मौसमी फल विशेष रूप से)
  • दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर, छाछ)
  • साबूदाना, सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा (इनसे बनी चीज़ें जैसे साबूदाने की खिचड़ी, सिंघाड़े के आटे की पूड़ी)
  • शकरकंद, आलू
  • मेवे और सूखे मेवे
  • पानी, फलों का रस, नारियल पानी

क्या न खाएं

  • गेहूं, चावल, दालें (सभी प्रकार की दालें)
  • नमक (कुछ लोग सेंधा नमक का उपयोग करते हैं)
  • प्याज, लहसुन
  • मसाले (हल्दी, धनिया, मिर्च आदि का कम उपयोग करें या बिल्कुल न करें)

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