|| गाज माता पूजन ||
- यह पूजन भाद्रपद शुक्ल द्वितीया का होता है ।
- इस दिन कुल देवता का पूजन करते हैं और कच्ची रसोई बनाते हैं ।
- पूजा करके कुल देवता को भोग लगाकर प्रसाद को एक ही कुलगोत्र के व्यक्तियों में वितरित कर दें ।
- कुल देवता का पूजन दोपहर के समय करें।
- इसके लिए घर की सबसे बड़ी पुत्रवती स्त्री दीवार पर गाज बीज का चित्रण करती है चित्र में एक मड़ी बनाकर एक लड़के को उस पर विराजमान करा देते हें । एक लड़का व्रक्ष के नीचे खड़ा चित्रित किया जाता है।
- इस मड़ी पर गाज का गिरना और वृक्ष द्वारा गाज से सुरक्षा दर्शायी जाती है ।
- यह गाज बीज का पूजन है।
|| गाज माता का व्रत ||
पुत्रवती स्त्रियां इस व्रत को भाद्रपद माह में कोई अच्छा दिन तिथि देखकर करती है । पूजा में मिट्टी के भील -भीलनी बनाने चाहिये। एक बच्चा बनाना चाहिये । भील-भीलनी के सिर पर बकरियां रखनी चाहिये एक जल का लोटा, आखे, हाथ में लेकर गाज माता की कथा सुनकर जल-कलश द्वारा भगवान को अध्य दें।
|| गाज माता की कहानी -1 ||
एक राजा और रानी थे। उनके संतान न थी। तब रानी बोली हे गाज माता अगर मेरे गर्भ रह जाए तो मैं तेरे हलवे की कड़ाही कर दूँगी। इसके बाद रानी के गर्भ रह गया । रानी के लड़का हो गया। पर वह कड़ाही करना भूल गई । तब गाज माता ने सोचा कि यह तो मुझे भूल गई और एक दिन रानी का लड़का पालने में सो रहा था तब गरजते हुए बादली आई और पालने सहित लड़के को उठा ले गई |
एक भील – भीलनी जंगल से घर आए तो उन्होंने पालने में एक लड़के को सोते हुए देखा। उनके कोई भी बच्चा नहीं था । इसलिए वह बच्चे को देखकर बहुत खुश हए और पालने लगे । एक धोबी था जो राजा के कपड़े भी धोता था और भील के भी । जब वह राजा के घर आया तो देखा कि वहाँ पर शोर हो रहा था कि गाज माता लड़के को उठाकर ले गई । तब धोबी बोला कि आज एक लड़के को मैंने भील के यहाँ पालने में सोते हुए देखा है । तब राजा बोला कि भील को बुलाकर लाओ । जब भील आया तब राजा ने पूछा कि तेरे घर लड़का कहाँ से आया ?
तो भील बोला में गाज माता का व्रत करता था तो मुझे गाज माता ने बेटा दिया है । तो राजा रानी को याद आया कि हमने माता की हलवे की दो कड़ाही बोली थी जो नहीं करी । इसलिए हमारा बेटा चला गया । तब रानी बोली हे गाज माता मेरा बेटा ला दो मैंने जितनी बोली थी उससे दुगुनी कड़ाही करूंगी । और गाज माता का खूब धूमधाम से उजमन करूंगी ।
तब गाज माता ने उनका लड़का वापिस ला दिया । भील-भीलनी के यहाँ भी बहुत धन-दौलत और लड़का हो गया । तब सारे शहर में राजा ने ढिढोरा पिटवा दिया कि जब भी लड़का हो या शादी हो तो गाज माता का उजमन करे। गाज माता ने जैसे रानी को लड़का दिया व भील-भीलनी को धन-समृद्धि व लड़का दिया वैसा सबको दे ।
|| गाज माता की कहानी – 2 ||
भादवा का महीना आया । अनंत का दिन आया । इन्द्र की परियां गाज माता की पूजा करने आयी । जहां वे पूजा कर रही थी, वहां एक भील-भीलनी आये । उन्होंने पूछा किसकी पूजा कर रहे हों ? परिया बोली गाज माता का व्रत व पूजन कर रहे हैं ।” भील-भीलनी बोले इसको करने से क्या होता है ? परियां बोली यश व लक्ष्मी आती है । ऐसा सुनकर भील-भीलनी भी गाज माता का व्रत करने लगे । तो उनके बहुत धन सम्पति हो गई भीलनी रानी जैसे कपड़े पहनने लग गई ।
एक धोबिन के पास रानी व भीलनी के कपड़े साथ धुलते थे । एक दिन कपडे बदल गये। रानी नहा धोकर कपड़े पहनने लगी । देखे तो कपड़े बदल गये। तुरंत धोबिन को बुलाया और पूछा “मेरे जैसे कपड़े कौन पहनता है ?” मेरे कपडे बदल गये है । धोबन ने कहा एक भिलनी है | तो रानी ने कहा उसे तुरंत बुलाओ। भीलनी को बुलवाया गया और पूछा “तूने चोरी की या डाका डाला जो तू मेरे जैसे कपड़े पहनती है ।” भीलनी बोली मुझ पर तो गाज माता प्रसन्न हुई है । रानी बोली मेरे भी बच्चा नही है में भी ये व्रत करू क्या?
भीलनी बोली व्रत भले ही करो पर भंग नही होना चाहिये । रानी ने व्रत करने शुरू किए । उसके लड़का हो गया बहुत खुशी मनाई गई । वापस गाज माता का व्रत आया तो पड़ोसन को पूछने गई, मैं रोठ कैसे खांऊ, बच्चे का पेट दुखेगा । पड़ोसन कुछ नहीं जानती थी । बोली “कांकरिया कसार व मोगऱ्या मगद खा लेना ।” रोट नहीं खाने से गाज माता रुष्ट हो गई । राते को 12 बजे पलने के साथ बच्चे को अदृश्य कर दिया । दिन उगते ही बच्चा व पालना दोनों की खोज शुरू हो गई पर बच्चा कहीं नहीं मिला । रानी बोली भीलनी ही बतायेगी।
उसे बुलाया और सारी बात बताई । भीलनी बोली रानी व्रत भंग हुआ है । अब अगले व्रत का ध्यान रखना । रानी के फिर एक लड़का हुआ । रानी ने भक्ति भाव से गाज माता का व्रत किया। गाज माता प्रसन्न हुई । और पहले वाला बच्चा व पालना वापस रात को लाकर रख दिया। बच्चे को पाकर सब खुश थे । तब से सभी जने गाज माता का व्रत करने लगे । गाज माता निपुत्रियों को पुत्र देती है और सबको भरा-पूरा रखती है । गाज माता की जय ।
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