॥ आरती ॥
आरति श्रीवृषभानुलली की।
सत-चित-आनन्द कन्द-कली की॥
भयभन्जिनि भव-सागर-तारिणि,
पाप-ताप-कलि-कल्मष-हारिणि,
दिव्यधाम गोलोक-विहारिणि,
जनपालिनि जगजननि भली की॥
आरति श्रीवृषभानुलली की।
अखिल विश्व-आनन्द-विधायिनि,
मंगलमयी सुमंगलदायिनि,
नन्दनन्दन-पदप्रेम प्रदायिनि,
अमिय-राग-रस रंग-रली की॥
आरति श्रीवृषभानुलली की।
नित्यानन्दमयी आह्लादिनि,
आनन्दघन-आनन्द-प्रसाधिनि,
रसमयि, रसमय-मन-उन्मादिनि,
सरस कमलिनी कृष्ण-अली की॥
आरति श्रीवृषभानुलली की।
नित्य निकुन्जेश्वरि राजेश्वरि,
परम प्रेमरूपा परमेश्वरि,
गोपिगणाश्रयि गोपिजनेश्वरि,
विमल विचित्र भाव-अवली की॥
आरति श्रीवृषभानुलली की।
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