सुगंध दशमी व्रत जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा अपने परिवार की सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए मनाया जाता है। इस व्रत का पालन करने से जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।
सुगंध दशमी व्रत कथा (Sugandh Dashmi Vrat Katha & Pooja Vidhi)
व्रत कथा के अनुसार, काशी देश के वाराणसी नगर में राजा भसूपाल राज्य करते थे, जिनकी रानी श्रीमती थीं। एक दिन, वनक्रीड़ा के समय, राजा ने एक मासोपवासी मुनिराज को नगर में आहार ग्रहण करने हेतु जाते देखा। राजा ने रानी से मुनि को आहार देने का आग्रह किया। रानी ने मन में क्रोध और द्वेष भाव रखते हुए कड़वी तूंबडी का आहार मुनिराज को दे दिया।
इससे मुनिराज को पीड़ा हुई और वे भूमि पर गिर पड़े। श्रावकों ने उनकी देखभाल की, लेकिन रानी के इस कृत्य की निंदा हुई। राजा ने रानी को दंडित किया और उसे राज्य से निकाल दिया। दुष्ट कर्मों के प्रभाव से रानी को कोढ़ हो गया और मृत्यु के बाद उसने कई निम्न योनि में जन्म लिए, जैसे भैंस, गर्दभी, शूकर, और अंत में चांडाल की पुत्री के रूप में जन्म लिया।
इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति अपने पाप कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। सुगंध दशमी व्रत के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि हमें सदैव शुभ कर्म करने चाहिए और मुनिराज एवं संतों का सम्मान करना चाहिए। इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।