राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी मंदिर, भगवान श्री कृष्ण के अवतार बाबा श्याम का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर देश के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है और हर साल लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।
महाभारत के अनुसार, बाबा श्याम भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच थे। महाभारत युद्ध में, उन्होंने कौरव सेना को परास्त करने का वचन दिया था। युद्ध के अंत में, बाबा श्याम एकमात्र योद्धा थे जो जीवित बचे थे। भगवान कृष्ण ने बाबा श्याम के बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वे कलयुग में ‘श्याम’ नाम से पूजे जाएंगे।
कहा जाता है कि विक्रम संवत 1027 में, राजा रूपसिंह चौहान को स्वप्न में बाबा श्याम के मंदिर का निर्माण करने का आदेश मिला। उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया और बाबा श्याम का शीश मंदिर में स्थापित किया।
मंदिर में दर्शन का समय:
गर्मियों में
- मंगला आरती :- 4:30 AM
- श्रृंगार आरती :- 8:00 AM
- राज-भोग आरती :- 12:00 PM
- शाम आरती :- 8:30 PM
- रात्रि आरती :- 10:00 PM
शर्दियों में
- मंगला आरती :- 5:30 AM
- श्रृंगार आरती :- 7:00 AM
- राज-भोग आरती :- 12:30 PM
- शाम आरती :- 7:00 PM
- रात्रि आरती :- 09:00 PM
श्री खाटू श्याम की कथा
महाभारत काल में, पांच हज़ार वर्ष पूर्व, भीम पौत्र बर्बरीक नामक महान आत्मा का जन्म हुआ। महीसागर संगम के गुप्त क्षेत्र में उन्होंने नवदुर्गाओं की तपस्या कर दिव्य बल, तीन तीर और धनुष प्राप्त किए। कुछ समय बाद, कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए सेनाएं एकत्रित हो गईं। युद्ध की घोषणा होते ही बर्बरीक ने माता का आशीर्वाद लिया और युद्धभूमि की तरफ प्रस्थान किया। उनका इरादा था कि जो भी पक्ष हारेगा, उसकी सहायता करेंगे।
इस समय भगवान श्री कृष्ण को यह बात पता चली और उन्होंने बर्बरीक को रोका। उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वे कहां जा रहे हैं। बर्बरीक ने कहा कि वह कुरुक्षेत्र जाकर अपना कर्तव्य निर्वाह करेंगे। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उनके ध्येय का परीक्षण करने के लिए ब्राह्मण के रूप में अपना कौशल दिखाया। बर्बरीक ने एक पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया, लेकिन श्री कृष्ण ने उनके पैरों के नीचे एक पत्ता छुपाया रखा था।
बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि उन्हें अपने पैर पर रखने का आदेश दें, क्योंकि उनका पैर पत्ते को चोट पहुँचा सकता था। श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया और बर्बरीक से एक वरदान मांगा। बर्बरीक ने उनसे वचन दिया कि वह जो भी चाहेंगे, उसे पूरा करेंगे।
तब श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और बर्बरीक के प्रति विशेष आदर और शक्ति के साथ बोले। उन्होंने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलयुग में वह उनके नाम से जाना जाएगा और उनकी शक्ति में उनका सहारा होगा। उन्होंने बर्बरीक के मस्तक को अमृत से सींचा और अजर अमर किया। बर्बरीक को युद्ध का निर्णायक भी बनाया। युद्ध के बाद, बर्बरीक श्री कृष्ण के आशीर्वाद के साथ अंतर्ध्यान हो गए।
कलयुग के प्रारंभ होने के साथ ही, भगवान श्री श्याम के वरदान के फलस्वरूप वह खाटू में चमत्कारिक रूप से प्रकट हुए। एक गाय घर लौटते समय, उसके दूध की धाराएं एक स्थान पर निकलती थीं। जब यह विचार राजा भक्त नरेश को मिला, तो वह उस स्थान पर भगवान का मंदिर बनवाने के लिए निश्चित हुआ। जहाँ हर रोज श्री खाटू श्याम चालीसा, आरती का पथ किया जाता है बाद में, चौहान राजपूतों ने उस मंदिर का संरक्षण किया और आज भी वह मंदिर खाटू में मौजूद है, जहां श्री श्याम प्रेमी पूजा के लिए आते हैं।
श्री खाटू श्याम जी मंदिर का इतिहास
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर, भारतीय संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह मंदिर आज लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है और हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप में पूज्य खाटू श्याम जी, अपने पौराणिक महत्व के कारण देशभर से भक्तों को खींचते हैं।
1000 वर्ष से भी पुराना यह मंदिर, भारतीय इतिहास के प्राचीन काल का साक्षी है। माना जाता है कि इसका निर्माण महाभारत काल में हुआ था, जब बर्बरीक नामक योद्धा को खाटू श्याम जी के रूप में पूजा जाने लगा था।
महाराज घटोत्कच और भगवान शिव की पुत्री देवी मोरवी के पुत्र बर्बरीक, अपनी अद्भुत धनुर्धारी प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध थे। महाभारत युद्ध में अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए, उन्होंने तीनों सेनाओं को परास्त कर दिया था।
युद्ध में भाग लेने की अनुमति मांगने पर, उनकी माँ ने उन्हें निर्बल पक्ष का साथ देने की सलाह दी। बर्बरीक ने युद्ध में कौरवों का साथ दिया, लेकिन युद्ध के समापन पर उन्होंने श्रीकृष्ण से युद्ध का असली परिणाम जानने की इच्छा व्यक्त की।
श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि युद्ध में सभी योद्धा वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। यह सुनकर बर्बरीक ने अपना शीश भगवान को अर्पित कर दिया, जिसके बाद उन्हें “शीश दानी” के नाम से जाना जाने लगा।
खाटू श्याम जी का मंदिर, बर्बरीक के शीश की पूजा स्थल है। श्री खाटू श्याम कथा का स्मृति चिन्ह भी है ।यह मंदिर भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है।
यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि कला और स्थापत्य का भी उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर परिसर में भगवान श्रीकृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं।
खाटू श्याम जी का मंदिर, भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
श्री खाटू श्याम बाबा आरती
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
रतन जड़ित सिंहासन,
सिर पर चंवर ढुरे ।
तन केसरिया बागो,
कुण्डल श्रवण पड़े ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
गल पुष्पों की माला,
सिर पार मुकुट धरे ।
खेवत धूप अग्नि पर,
दीपक ज्योति जले ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
मोदक खीर चूरमा,
सुवरण थाल भरे ।
सेवक भोग लगावत,
सेवा नित्य करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
झांझ कटोरा और घडियावल,
शंख मृदंग घुरे ।
भक्त आरती गावे,
जय-जयकार करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
जो ध्यावे फल पावे,
सब दुःख से उबरे ।
सेवक जन निज मुख से,
श्री श्याम-श्याम उचरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
श्री श्याम बिहारी जी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
कहत भक्त-जन,
मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
जय श्री श्याम हरे,
बाबा जी श्री श्याम हरे ।
निज भक्तों के तुमने,
पूरण काज करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
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