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पशुपति व्रत का महत्व, विधि, नियम, कथा, पूजन सामग्री, मंत्र, उद्यापन, और इसके लाभ

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pashupatinath

पशुपति व्रत भगवान शिव, जिन्हें भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित एक विशेष व्रत है। यह व्रत उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है जो जीवन में अनेक कठिनाइयों और परेशानियों से जूझ रहे हैं। जब आप निराश और हताश महसूस कर रहे हों, जब आपको अपनी समस्याओं का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा हो, और जब आप अपनी व्यथा किसी से भी साझा करने में असमर्थ हों, तब पशुपति व्रत PDF आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का द्वार खोल सकता है।

लेकिन यह ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पशुपति व्रत केवल तभी सफल होता है जब आप भगवान शिव पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखते हों। पूर्ण श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत आपको अवश्य ही कष्टों से मुक्ति दिलाएगा और आपके जीवन में सुख-समृद्धि लाएगा।

पशुपति व्रत रखने के नियम

अगर आप पशुपति व्रत का पालन करने की सोच रहे हैं, तो आपको इसके नियमों को जानना चाहिए। यह व्रत पांच सोमवारों तक किया जाता है, लेकिन आप चाहें तो किसी भी सोमवार से इसे आरंभ कर सकते हैं। प्रारंभ में, सुबह के समय मंदिर जाकर भगवान शंकर की पूजा करें और उनका अभिषेक करें।

फिर आने के बाद घर में वही थाली रखें जिसमें आपने पूजा के दौरान प्रसाद रखा था। सुबह के समय फल या मीठा भोजन करें। शाम को, 6 दिए जलाकर ले जाएं, उनमें से 5 दिए भगवान शंकर के सामने जलाएं और श्री पशुपतिनाथ जी की आरती के साथ अपनी कामना करें। इसी के साथ शंकर जी के मंदिर में जाकर मीठे को तीन हिस्सों में बांट दें। इसके बाद 2 हिस्से मंदिर में रखें। एक हिस्सा अपने साथ लेकर वापस आएं।

अब मंदिर से 6 दिए लेकर गए हों, उनमें से 5 दिए भगवान शंकर के सामने जलाकर रखें और पशुपतिनाथ के नाम से अपनी कामना करके 1 दिया वापिस अपनी थाली में रख लें, जब घर में प्रवेश करें तो घर के अंदर प्रवेश करते समय जो 1 दिया लेकर आए हो उसे दरवाजे के बाहर लगा दें और घर के अंदर प्रवेश करें। वहीं शाम के समय भोजन करें, और मंदिर से जो तीन हिस्से लाए हों, उनमें से एक हिस्सा लेकर भोजन करें।

भगवान पशुपति नाथ व्रत कथा PDF

एक बार की बात है, भगवान शिव नेपाल की मनोरम तपोभूमि से आकर्षित होकर कैलाश पर्वत छोड़कर यहाँ आ गये और यहीं विराजमान हो गए। इस क्षेत्र में वे तीन सींग वाले हिरण (चिंकारा) के रूप में विचरण करने लगे। इस कारण इस क्षेत्र को ‘पशुपति क्षेत्र’ या ‘मृगस्थली’ भी कहा जाता है।

भगवान शिव की अनुपस्थिति से चिंतित होकर, ब्रह्मा और विष्णु उनकी खोज में निकल पड़े। वे रमणीय स्थलों में भ्रमण करते हुए, इसी क्षेत्र में पहुंचे। यहाँ उन्होंने एक देदीप्यमान, मोहक तीन सींग वाला हिरण विचरण करते देखा। उन्हें मृग रूपी शिव पर शक हुआ।

योग विद्या के माध्यम से ब्रह्मा जी ने तुरंत पहचान लिया कि यह मृग नहीं, बल्कि भगवान आशुतोष हैं। वे तुरंत उछल पड़े और मृग के सींग को पकड़ने की कोशिश करने लगे। इससे मृग के सींग के 3 टुकड़े हो गए।

उसी सिंह का एक पवित्र टुकड़ा टूटकर यहाँ पर भी गिर गया, जिसके फलस्वरूप महारुद्र जी का जन्म हुआ। वे आगे चलकर पशुपतिनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

भगवान विष्णु ने भगवान शिव की इच्छानुसार, उन्हें मोक्ष प्रदान करने के बाद, नागमती के ऊँचे टीले पर एक लिंग स्थापित किया, जो पशुपति के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

यह पशुपति नाथ व्रत कथा पशुपतिनाथ मंदिर की स्थापना और भगवान शिव के यहाँ विराजमान होने की कहानी बताती है।

पशुपति नाथ व्रत पूजन सामग्री:

  • शिवलिंग
  • गंगाजल
  • दूध
  • दही
  • घी
  • शहद
  • बेल पत्र
  • फल
  • मिठाई
  • धूप
  • दीप
  • घी
  • मीठा भोजन

पशुपति नाथ व्रत मंत्र:

  • ॐ नमः शिवाय
  • ॐ पशुपतिनाथेश्वराय नमः
  • ॐ मृत्युंजय मंत्र
  • नमो नीलकण्ठाय
  • ॐ पार्वतीपतये नमः
  • ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय
  • ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा

पशुपति नाथ व्रत उद्यापन:

व्रत पूर्ण होने के बाद उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और दान-दक्षिणा दी जाती है।

पशुपति नाथ व्रत लाभ:

  • पशुपति व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
  • मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • पापों का नाश होता है।
  • रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

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