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भैया दूज लोक कथा

Bhaiya Dooj Lauk Katha

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|| भैया दूज लोक कथा ||

एक बुढ़िया माई थी, उसके सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी की शादी हो चुकी थी। जब भी उसके बेटों की शादी होती, फेरों के समय एक नाग आता और उसके बेटे को डस लेता था। बेटे की वहीं मृत्यु हो जाती और बहू विधवा हो जाती। इस तरह उसके छह बेटे मर गए। सातवें की शादी होनी बाकी थी। अपने बेटों के मर जाने के दुःख से बूढ़ीमाई रो-रोकर अंधी हो गई थी।

भाई दूज आने वाली थी, तो भाई ने कहा कि मैं बहन से तिलक कराने जाऊँगा। माँ ने कहा ठीक है। उधर, जब बहन को पता चला कि उसका भाई आ रहा है, तो वह खुशी से पागल होकर पड़ोसन के पास गई और पूछने लगी कि जब बहुत प्यारा भाई घर आए तो क्या बनाना चाहिए? पड़ोसन ने उसकी खुशी को देखकर जलभुनकर कह दिया, “दूध से रसोई लीप, घी में चावल पका।” बहन ने वैसा ही किया।

उधर, भाई जब बहन के घर जा रहा था, तो उसे रास्ते में साँप मिला। साँप उसे डसने को हुआ।

भाई बोला: “तुम मुझे क्यों डस रहे हो?”
साँप बोला: “मैं तुम्हारा काल हूँ और मुझे तुम्हें डसना है।”
भाई बोला: “मेरी बहन मेरा इंतजार कर रही है। मैं जब तिलक करवा के वापस लौटूँगा, तब तुम मुझे डस लेना।”
साँप ने कहा: “भला आज तक कोई अपनी मौत के लिए लौटकर आया है, जो तुम आओगे।”
भाई ने कहा: “अगर तुझे यकीन नहीं है तो तू मेरे झोले में बैठ जा। जब मैं अपनी बहन से तिलक करवा लूँ तब तू मुझे डस लेना।” साँप ने वैसा ही किया।

भाई बहन के घर पहुँच गया। दोनों बहुत खुश हुए।
भाई बोला: “बहन, जल्दी से खाना दे, बहुत भूख लगी है।”
बहन क्या करे। न तो दूध की रसोई सूखी, न ही घी में चावल पके।
भाई ने पूछा: “बहन, इतनी देर क्यों लग रही है? तू क्या पका रही है?”
तब बहन ने बताया कि उसने ऐसा-ऐसा किया है।

भाई बोला: “पगली! कहीं घी में भी चावल पके हैं, या दूध से कोई रसोई लीपी है? गोबर से रसोई लीप, दूध में चावल पका।”

बहन ने वैसा ही किया। खाना खा के भाई को बहुत जोर से नींद आने लगी। इतने में बहन के बच्चे आ गए। बोले, “मामा-मामा, हमारे लिए क्या लाए हो?”

भाई बोला: “मैं तो कुछ नहीं लाया।”
बच्चों ने वह झोला ले लिया जिसमें साँप था। जैसे ही उसे खोला, उसमें से हीरे का हार निकला।
बहन ने कहा: “भैया, तूने बताया नहीं कि तू मेरे लिए इतना सुंदर हार लाया है।”
भाई बोला: “बहन, तुझे पसंद है तो तू ले ले, मुझे हार का क्या करना।”

अगले दिन भाई बोला: “अब मुझे जाना है, मेरे लिए खाना रख दे।” बहन ने उसके लिए लड्डू बनाकर एक डिब्बे में रख दिए।

भाई कुछ दूर जाकर थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। उधर, बहन के बच्चों को जब भूख लगी तो माँ से कहा कि खाना दे दो।

माँ ने कहा: “खाना अभी बनने में देर है।” तो बच्चे बोले कि मामा को जो रखा है वही दे दो। तो वह बोली कि लड्डू बनाने के लिए बाजरा पीसा था, वही बचा पड़ा है चक्की में, जाकर खा लो। बच्चों ने देखा कि चक्की में तो साँप की हड्डियाँ पड़ी हैं।

यही बात माँ को आकर बताई तो वह बावली सी होकर भाई के पीछे भागी। रास्ते भर लोगों से पूछती कि किसी ने मेरा गैल बाटोई देखा, किसी ने मेरा बावड़ा सा भाई देखा। तब एक ने बताया कि कोई लेटा तो है पेड़ के नीचे, देख ले वही तो नहीं। भागी-भागी पेड़ के नीचे पहुँची। अपने भाई को नींद से उठाया। “भैया, भैया, कहीं तूने मेरे लड्डू तो नहीं खाए?”

भाई बोला: “ये ले तेरे लड्डू, नहीं खाए मैंने। ले दे के लड्डू ही तो दिए थे, उसके भी पीछे-पीछे आ गई।”
बहन बोली: “नहीं भाई, तू झूठ बोल रहा है, जरूर तूने खाया है। अब तो मैं तेरे साथ चलूँगी।”
भाई बोला: “तू न मान रही है तो चल फिर।”

चलते-चलते बहन को प्यास लगती है, वह भाई को कहती है कि मुझे पानी पीना है।

भाई बोला: “अब मैं यहाँ तेरे लिए पानी कहाँ से लाऊँ, देख! दूर कहीं चील उड़ रही हैं, चली जा वहाँ शायद तुझे पानी मिल जाए।”

तब बहन वहाँ गई, और पानी पीकर जब लौट रही थी तो रास्ते में देखती है कि एक जगह जमीन में 6 शिलाएँ गढ़ी हैं, और एक बिना गढ़े रखी हुई थी। उसने एक बुढ़िया से पूछा कि ये शिलाएँ कैसी हैं।

उस बुढ़िया ने बताया कि: “एक बुढ़िया है। उसके सात बेटे थे। 6 बेटे तो शादी के मंडप में ही मर चुके हैं, तो उनके नाम की ये शिलाएँ जमीन में गढ़ी हैं, अभी सातवें की शादी होनी बाकी है। जब उसकी शादी होगी तो वह भी मंडप में ही मर जाएगा, तब यह सातवीं सिला भी जमीन में गड़ जाएगी।”

यह सुनकर बहन समझ गई ये शिलाएँ किसी और की नहीं बल्कि उसके भाइयों के नाम की हैं। उसने उस बुढ़िया से अपने सातवें भाई को बचाने का उपाय पूछा। बुढ़िया ने उसे बतला दिया कि वह अपने सातवें भाई को कैसे बचा सकती है। सब जानकर वह वहाँ से अपने बाल खुले कर के पागलों की तरह अपने भाई को गालियाँ देती हुई चली।

भाई के पास आकर बोलने लगी: “तू तो जलेगा, कटेगा, मरेगा।”

भाई उसके ऐसे व्यवहार को देखकर चौंक गया पर उसे कुछ समझ नहीं आया। इसी तरह दोनों भाई-बहन माँ के घर पहुँच गए। थोड़े समय के बाद भाई के लिए सगाई आने लगी। उसकी शादी तय हो गई।

जब भाई को सहरा पहनाने लगे तो बहन बोली: “इसको क्यों सहरा बाँधेगा, सहरा तो मैं पहनूँगी। ये तो जलेगा, मरेगा।”

सब लोगों ने परेशान होकर सहरा बहन को दे दिया। बहन ने देखा उसमें कलंगी की जगह साँप का बच्चा था। बहन ने उसे निकाल के फेंक दिया।

अब जब भाई घोड़ी चढ़ने लगा तो बहन फिर बोली: “ये घोड़ी पर क्यों चढ़ेगा, घोड़ी पर तो मैं बैठूँगी, ये तो जलेगा, मरेगा, इसकी लाश को चील कौवे खाएँगे।” सब लोग बहुत परेशान। सब ने उसे घोड़ी पर भी चढ़ने दिया।

अब जब बारात चलने को हुई तब बहन बोली: “ये क्यों दरवाजे से निकलेगा, ये तो पीछे के रास्ते से जाएगा, दरवाजे से तो मैं निकलूंगी।” जब वह दरवाजे के नीचे से जा रही थी तो दरवाजा अचानक गिरने लगा। बहन ने एक ईंट उठाकर अपनी चुनरी में रख ली, दरवाजा वहीं का वहीं रुक गया। सब लोगों को बड़ा अचंभा हुआ।

रास्ते में एक जगह बारात रुकी तो भाई को पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया।

बहन कहने लगी: “ये क्यों छांव में खड़ा होगा, ये तो धूप में खड़ा होगा। छांव में तो मैं खड़ी होऊंगी।”

जैसे ही वह पेड़ के नीचे खड़ी हुई, पेड़ गिरने लगा। बहन ने एक पत्ता तोड़कर अपनी चुनरी में रख लिया, पेड़ वहीं का वहीं रुक गया। अब तो सबको विश्वास हो गया कि ये बावली कोई जादू टोना सीखकर आई है, जो बार-बार अपने भाई की रक्षा कर रही है। ऐसे करते-करते फेरों का समय आ गया।

जब दुल्हन आई तो उसने दुल्हन के कान में कहा: “अब तक तो मैंने तेरे पति को बचा लिया, अब तू ही अपने पति को और साथ ही अपने मरे हुए जेठों को बचा सकती है।”

फेरों के समय एक नाग आया, वह जैसे ही दूल्हे को डसने को हुआ, दुल्हन ने उसे एक लोटे में भरकर ऊपर से प्लेट से बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद नागिन लहर-लहर करती आई।

नागिन बोली: “तू मेरा पति छोड़।”
दुल्हन बोली: “पहले तू मेरा पति छोड़।”
नागिन ने कहा: “ठीक है मैंने तेरा पति छोड़ा।”
दुल्हन: “ऐसे नहीं, पहले तीन बार बोल।”
नागिन ने तीन बार बोला, फिर बोली: “अब मेरे पति को छोड़।”
दुल्हन बोली: “एक मेरे पति से क्या होगा, हंसने-बोलने के लिए जेठ भी तो होना चाहिए, एक जेठ भी छोड़।”
नागिन ने जेठ के भी प्राण दिए।
फिर दुल्हन ने कहा: “एक जेठ से लड़ाई हो गई तो एक और जेठ। वह विदेश चला गया तो तीसरा जेठ भी छोड़।” इस तरह एक-एक करके दुल्हन ने अपने 6 जेठ जीवित करा लिए।

उधर रो-रोकर बुढ़िया का बुरा हाल था कि अब तो मेरा सातवां बेटा भी बाकी बेटों की तरह मर जाएगा। गाँव वालों ने उसे बताया कि उसके सात बेटे और बहुएँ आ रही हैं।

तो बुढ़िया बोली: “गर यह बात सच हो तो मेरी आँखों की रोशनी वापस आ जाए और मेरे सीने से दूध की धार बहने लगे।” ऐसा ही हुआ। अपने सारे बहू-बेटों को देखकर वह बहुत खुश हुई।
बोली: “यह सब तो मेरी बावली का किया है। कहाँ है मेरी बेटी?”

सब बहन को ढूँढने लगे। देखा तो वह भूसे की कोठरी में सो रही थी। जब उसे पता चला कि उसका भाई सही सलामत है तो वह अपने घर को चली। उसके पीछे-पीछे सारी लक्ष्मी भी जाने लगी।

बुढ़िया ने कहा: “बेटी, पीछे मुड़ के देख! तू सारी लक्ष्मी ले जाएगी तो तेरे भाई-भाभी क्या खाएँगे।”

तब बहन ने पीछे मुड़कर देखा और कहा: “जो माँ ने अपने हाथों से दिया वह मेरे साथ चल, बाकी का भाई-भाभी के पास रहे।” इस तरह एक बहन ने अपने भाई की रक्षा की।

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