॥ दोहा ॥
चैत्र सुदी वैसाख सुदी, जेष्ठ सुदी को जान।
आसाढ़ श्रावण सुदी, चौदस को पहचान॥
भादुड़ा आसौज की, और कार्तिक की सुदी।
सुदी मार्गशीर्ष और पौष की देती सबको बुद्धि ॥
फाल्गुन सुदी चतुर्दशी पूजे सब नरनार।
अंजनी माता आपका कारज देसी सार॥
॥ चौपाई ॥
रिमझिम रिमझिम मेहा बर्षे।
मानो चन्दन फुहार दर्से ॥
इन्दर गाजे पवन पुरवायी।
सांची माता अंजनी आयी॥
देख मात को हनुमत हर्षे ।
चरण कमल में मस्तक स्पर्से ॥
चौकी चाँदी की सरकाई।
जिस पर बैठी अंजनी माई।
हाथ पसार गोंद बैठाया।
पुत्र प्रेम पय पान कराया॥
मस्तक पर मेला निज हाथ ।
भला करे राम रघुनाथ ॥
सिंहासन पर सालग्राम हैं।
कृष्ण चन्द्र लक्ष्मी जी बाम हैं॥
दर्शन करने इसका. आई।
आसन चौकी चाँदी पाई॥
माता कहे सुनो हनुमाना।
जो मन भावे माँगो वरदाना ॥
बोले हनुमान सुनो मेरी माई।
देवो वरदान सदा सुखदाई॥
सालासर नगरी के अन्दर।
बने मात का सुन्दर मन्दिर ॥
वचन दिया माता ने अपना।
बारह वर्ष का साँचा सपना॥
सुहाग भाग आनन्द की दाता।
सुमरो श्रीहनुमंत की माता॥
साँझ सवेरे ध्यान लगाओ।
मन इच्छा माँगो सो पाओ॥
हरो मात सब संकट दूषण।
आन चढ़ाऊँ सुवरण भूषण ॥
चीर बढ़ा अंजनी माता का।
है प्रताप अन धन दाता का॥
लगे दुहाई माता के चीर की।
रक्षा करे बालक के शरीर की॥
अंजनी माता रक्षा करेगी।
आप ताप संकट को हरेगी॥
जय जय अंजनी मात भवानी ।
जय कपि केशरी की पटरानी॥
जय जय गौतम ऋषि कुमारी |
जय जय मात जाऊँ बलिहारी॥
देखो माता पुत्र खिलावे।
अंगुली से घी चीनी चटावे ॥
केशरी राजा गिरा उचारे।
आओ मेरे प्राण पियारे॥
मीठी मीठी धरी मिठाई।
खड़ी पुकारे अंजना माई॥
करो कलेवा मेरे लाला।
पीवो अमृत बजरंग बाला ॥
पाटी लेकर पढ़बा जावो।
सूर्य देव से विद्या पाओ॥
अवधपति ने यज्ञ किया था।
अग्नि देव ने खीर दिया था॥
कौशल्या के जन्मे राम।
भरत कैकेयी के सुख धाम॥
लक्ष्मण और शत्रुध्न वीरा।
नित खेलें सरयू के तीरा॥
हनुमान की अंजनी माई।
कौशल्या माता मन भाई॥
कौशल्या के हनुमत प्यारा।
होय राम से कभी न न्यारा ॥
शंकर-सुत और पवन कुमारा।
बजरंगी है नाम तुम्हारा ॥
करि मात की कोख उजागर।
बल बुद्धि विद्या गुणसागर॥
ब्रह्म वंश जो सेवा करते।
ज्ञान भक्ति से हृदय भरते॥
मात अंजनी नाम अमर है।
क्षत्रिय ध्यावे जीत समर है॥
जपे सेठ अरु साहूकारा।
अन्न धन से सब भरे भंडारा॥
चारों वर्ण माता को ध्यावें।
मात कृपा से वे सुख पावें॥
अंजनी माता का चालीसा।
मनसा पूरण विश्वा बीसा ॥
॥ दोहा ॥
राजस्थान की भूमि में सालासर है ग्राम।
जहाँ प्रगटी मातेश्वरी, जग में जाहिर नाम॥
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