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अटला तड्डी व्रत की सम्पूर्ण पूजा विधि – करवा चौथ से पहले का खास उपवास, क्या है मान्यता और महत्व? (Atla Taddi Vrat)

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हर साल जब उत्तर भारत में करवा चौथ (Karwa Chauth) की धूम होती है, ठीक उससे पहले आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) और तेलंगाना (Telangana) में एक और महत्वपूर्ण व्रत मनाया जाता है, जिसे ‘अटला तड्डी’ (Atla Taddi) या ‘अटला ताड़े’ कहते हैं। यह पर्व विवाहित महिलाओं के लिए उतना ही खास है जितना उत्तर भारतीयों के लिए करवा चौथ। यह पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाने वाला एक कठोर उपवास (strict fast) है। आइए, इस खास त्योहार की तिथि, पूजा विधि, पौराणिक मान्यता और महत्व को विस्तार से जानते हैं।

अटला तड्डी व्रत कब मनाया जाता है? (When is Atla Taddi Vrat Celebrated?)

अटला तड्डी का पर्व हिंदू पंचांग (Hindu Calendar) के अनुसार, आश्विन (Ashwin) मास की पूर्णिमा (Purnima) के तीसरे दिन यानी कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि (Tritiya Tithi) को मनाया जाता है। यह आमतौर पर अक्टूबर (October) महीने में आता है और करवा चौथ से कुछ दिन पहले होता है।

नाम का अर्थ: ‘अटला तड्डी’ नाम दो तेलुगु शब्दों (Telugu words) से मिलकर बना है:

  • ‘अटलु’ (Atlu) – जिसका अर्थ है ‘पेनकेक्स’ (एक प्रकार का व्यंजन, डोसा)।
  • ‘ताड्डे’ (Tadde) – जिसका अर्थ है ‘तीसरा दिन’।

इस दिन ‘अटलु’ यानी डोसा बनाकर माता गौरी (Goddess Gauri) को भोग लगाना और प्रसाद के रूप में वितरित करना एक प्रमुख रस्म है।

अटला तड्डी व्रत की सम्पूर्ण और सरल पूजा विधि (Complete and Simple Atla Taddi Puja Method)

इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं और रात को चंद्रोदय (Moonrise) के बाद चंद्रमा की पूजा करके व्रत खोलती हैं।

व्रत का संकल्प और तैयारी (Vrat Sankalp and Preparation)

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठना – महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त (Brahma Muhurta) में उठकर स्नान (bath) करती हैं।
  • सरगी/बाया (Sargi/Baya) – उत्तर भारत की तरह ही, अटला तड्डी से एक दिन पहले, सास अपनी बहू को ‘अटला’ यानी डोसा और अन्य पकवान, फल, मिठाई (sweets) और पूजा सामग्री देती हैं। बहू सूर्योदय से पहले इसे खाकर निर्जला व्रत (Nirjala Vrat – without water) का संकल्प लेती है।
  • पूजा स्थल – घर के पूजा स्थल को साफ करके, एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।

माता गौरी की पूजा (Goddess Gauri Worship)

  • स्थापना – चौकी पर माता गौरी और भगवान शिव (Lord Shiva) की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • कलश स्थापना – जल से भरा कलश (pot) स्थापित करें और उस पर नारियल (coconut) रखें।
  • श्रृंगार – माता गौरी को सोलह श्रृंगार (Solaah Shringar) की सामग्री, जैसे – मेहंदी (Mehendi), चूड़ियाँ (bangles), सिंदूर, बिंदी, आदि अर्पित करें।
  • पुष्प और धूप – उन्हें पीले या लाल रंग के फूल, धूप (incense) और दीप अर्पित करें।

‘अटलु’ का भोग और वितरण (Offering and Distribution of ‘Atlu’)

  • विशेष भोग – इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ‘अटलु’ यानी डोसा है। महिलाएं 11, 21 या उससे अधिक संख्या में ‘अटलु’ (डोसा) बनाकर माता गौरी को भोग लगाती हैं।
  • नैवेद्य (Naivedya) – इसके साथ-साथ विशेष रूप से तैयार किए गए चावल के आटे के पकवान, फल (fruits), मिठाई और गुड़ (jaggery) का भोग लगाया जाता है।
  • प्रसाद वितरण – भोग लगे हुए ‘अटलु’ और प्रसाद को 10 या 11 सुहागिन महिलाओं (married women) में ‘वायन’ के रूप में वितरित किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से वैवाहिक सुख में वृद्धि होती है।

कथा श्रवण (Listening to the Story)

  • शाम के समय सभी महिलाएं एक साथ इकट्ठा होकर अटला तड्डी व्रत की कथा (Vrat Katha) सुनती हैं।

चंद्र दर्शन और पारण (Moon Sighting and Breaking the Fast)

  • चंद्रोदय की प्रतीक्षा – रात में चंद्रोदय (Moonrise) होने पर महिलाएं चंद्रमा के दर्शन करती हैं।
  • चंद्र पूजा – छलनी (sieve) से या सीधे चंद्रमा को देखती हैं और उन्हें अर्घ्य (Arghya – offering water) देती हैं।
  • पति की पूजा – चंद्रमा की पूजा के बाद, पति के पैरों को छूकर आशीर्वाद लेती हैं और उनसे जल ग्रहण करके अपना व्रत पूर्ण करती हैं। व्रत खोलने के बाद सबसे पहले ‘अटलु’ (डोसा) या कोई मीठा पकवान खाया जाता है।

अटला तड्डी व्रत की मान्यता और महत्व (Beliefs and Significance of Atla Taddi Vrat)

अटला तड्डी व्रत केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि सुहागिनों के अटूट प्रेम, त्याग और समर्पण (dedication) का प्रतीक है।

पौराणिक मान्यता (Mythological Belief)

एक कथा के अनुसार, यह व्रत स्वयं देवी गौरी (Goddess Gauri) ने सभी युवा और अविवाहित कन्याओं को एक उपयुक्त दूल्हे (suitable groom) को प्राप्त करने के लिए करने का सुझाव दिया था। विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र और उनके सुखी जीवन के लिए करती हैं।

मंगल ग्रह और अटलु का संबंध (Connection between Mars and Atlu)

एक वैज्ञानिक और ज्योतिषीय (Astrological) मान्यता के अनुसार, नौ ग्रहों (Nine Planets) में से मंगल ग्रह (Mars) को ‘अटलु’ (डोसा) बहुत पसंद है।

  • कुज दोष निवारण – माना जाता है कि ‘अटलु’ का नैवेद्य लगाने से मंगल ग्रह से संबंधित ‘कुज दोष’ (Kuja Dosha) दूर होता है।
  • गर्भधारण में सहायक – यह भी मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से गर्भधारण (conception) से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं हट जाती हैं।

सांस्कृतिक महत्व (Cultural Significance)

  • बंधन की मजबूती – यह त्यौहार पति-पत्नी के बीच के पवित्र बंधन (sacred bond) को और अधिक मजबूत करता है, जिसमें पत्नी अपने प्यार और भक्ति (devotion) से पति की रक्षा करती है।
  • पारंपरिक खेल – इस दिन महिलाएं समूहों में इकट्ठा होती हैं, पारंपरिक खेल (traditional games) खेलती हैं और लोकगीत (folk songs) गाती हैं, जिससे सामाजिक सद्भाव (social harmony) बढ़ता है।
  • पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा – यह व्रत नई पीढ़ी को अपनी आध्यात्मिक (spiritual) और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का एक अवसर देता है।

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