राधा जी को भगवान कृष्ण की प्रियतमा और गोपियों की रानी माना जाता है। उनका जीवन रहस्यों और चमत्कारों से भरा हुआ है। राधा जी के गुप्त रहस्य और रोचक कथाओं की विशेषता उनके अनंत भक्तों के दिलों में आज भी अजेय है। उनके साथ जुड़ी गाथाएं और अन्य कथाएं हमें ध्यान और आध्यात्मिकता की अद्वितीयता को समझने का अवसर प्रदान करती हैं।
श्री राधा को श्री कृष्ण की प्राणल्हादनी शक्ति माना जाता है। श्री नारायण भट्ट, जो ब्रज के मानस पिता और बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर राधा जी का प्राकट्य करने वाले थे, ने राधा को लाडो, लड़ैती, लाडली कहकर पुकारा। वे दक्षिण भारत से आए थे और राधा रानी की उपासना अपनी बेटी के रूप में करते थे। इसीलिए, बरसाना के मंदिर को ब्रजवासियों द्वारा लाडली जी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां हर दिन सुबह दोपहर शाम श्री राधा जी आरती की जाती है
नारायण चरितामृत के अनुसार, भट्ट जी ने 1602 में बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर राधा जी का प्राकट्य करवाया और तत्कालीन राजाओं से मंदिर की स्थापना करवाई। उन्होंने माध्य संप्रदाय के अनुसार पूजा-अर्चना की संहिता बनाई। भक्ति में राधा जी को बेटी समझकर लाड करते हुए लाडो कहकर पुकारते थे।
राधा जी से जुड़े गुप्त रहस्य और विशेष रोचक कथाएं
कहा जाता है कि दक्षिण से प्रस्थान करने के बाद नारायण भट्ट जी को गोदावरी के परिक्रमा के दौरान स्वयं ठाकुर जी ने प्रकट होकर विलुप्त ब्रज की स्थापना करने का आदेश दिया। भट्ट जी ने पूछा कि मैं कैसे जान पाऊंगा कि ब्रज का यह कौन सा स्थल है। ठाकुर जी ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा और इतना कहकर ठाकुर लाडलेय के विग्रह के रूप में भट्ट जी के साथ ब्रज आए।
ब्रज आने पर सबसे पहले, भट्ट जी ने सात साल राधाकुंड में साधना की और उसके बाद बरसाना के निकट ऊंचागांव को अपना स्थायी स्थान बनाया। यहाँ उन्होंने दाऊजी का प्रकाट्य कर मंदिर की स्थापना की। भट्ट जी के वंशज आज भी ऊंचागांव में ब्रजाचार्य पीठ पर निवास करते हैं।
काशी के विद्वानों ने श्री नारायण भट्ट को ब्रजाचार्य की उपाधि से विभूषित किया। राधारानी का प्राकट्य करने के अलावा, ब्रज के विलुप्त कृष्णकालीन लीला स्थलों की खोज करके उनकी स्थापना, ब्रज के ग्वाल-बालों के माध्यम से रासलीलानुकरण और ब्रज यात्रा की शुरुआत करने का श्रेय भी उन्हें जाता है।
राधा जी का नाम और जन्म
राधा जी का नाम “रति” और “धा” शब्दों से मिलकर बना है। “रति” का अर्थ है “प्रेम” और “धा” का अर्थ है “धारण करना”। इसलिए, राधा जी को “प्रेम धारणी” कहा जाता है। राधा जी का जन्म वृषभानु और कृष्णा नामक एक गोप दंपति के घर हुआ था। पद्म पुराण के अनुसार, राधा जी वृषभानु नामक वैश्य गोप की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। राधा जी का जन्म बरसाना में हुआ था, जो उनके पिता का निवास स्थान था। कुछ विद्वानों का मानना है कि राधा जी का जन्म यमुना के पास रावल ग्राम में हुआ था, और बाद में उनके पिता बरसाना में आकर बस गए थे।
पुराणों के अनुसार, श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था, और इसी तिथि को शुक्ल पक्ष में देवी राधा का जन्म भी हुआ था। बरसाना में राधाष्टमी का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बहुत लोग इस दिन श्री राधा अष्टमी व्रत कथा का श्रावण सुनते हैंराधाष्टमी का पर्व जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
राधा जी और कृष्ण जी का मिलन
राधा जी और कृष्ण जी का मिलन वृंदावन में हुआ था। जब कृष्ण जी गायों को चराने के लिए जाते थे, तब राधा जी और अन्य गोपियां उनसे मिलने जंगल में आती थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के अध्याय 48 और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के अनुसार, नंदबाबा एक बार श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले थे। उसी दौरान, राधा और उनके पिता भी वहां पहुंचे थे। यह दोनों का पहला मिलन था। उस समय दोनों की उम्र बहुत छोटी थी।
यह स्थान सांकेतिक तीर्थ स्थान के नाम से जाना जाता है। यह स्थान संभवतः नंदगांव और बरसाने के बीच में है। सांकेतिक शब्द का अर्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान। इस विषय पर ब्रह्मवैवर्त पुराण में बहुत बड़ी कथा मिलती है।
राधा रानी का मंदिर: बरसाना की लाड़ली
बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है। बरसाना में राधा को लाड़ली कहा जाता है, और यह मंदिर उनकी भक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
यह मंदिर मध्यकालीन काल का है और लाल और पीले पत्थर से बना है। इसकी शिल्पकला बहुत सुंदर है और इसमें कई मूर्तियां और चित्र हैं जो राधा और कृष्ण की लीलाओं को दर्शाते हैं। मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह ने 1675 में करवाया था।
यह मंदिर वर्ष भर भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। विशेष रूप से, राधाष्टमी और लट्ठमार होली के त्यौहारों के दौरान यहां बहुत भीड़ होती है।
राधा जी का प्रेम:
राधा जी का प्रेम कृष्ण जी के लिए अत्यंत गहरा और समर्पित था। उनका प्रेम केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित नहीं था, बल्कि यह आध्यात्मिक प्रेम भी था।
राधा जी का त्याग:
राधा जी ने कृष्ण जी के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। उन्होंने अपने परिवार, समाज और यहां तक कि अपनी प्रतिष्ठा भी कृष्ण जी के लिए त्याग दी।
राधा जी का महत्व:
राधा जी को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्हें कृष्ण जी की शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। कुछ हर दिन श्री राधा चालीसा पाठ का श्रवण करते हैं
राधा जी की पूजा:
राधा जी की पूजा भारत में कई मंदिरों में की जाती है। उनके सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में वृंदावन, मथुरा और बरसाना में स्थित मंदिर शामिल हैं।
राधा जी की विशेषताएं:
राधा जी को अक्सर एक सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसके हाथों में कमल का फूल होता है। उन्हें अक्सर नीले या हरे रंग के वस्त्र पहने हुए दिखाया जाता है।
राधा के पति: क्या सचमुच श्रीकृष्ण की मामी थीं?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के अध्याय 49 के श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार, राधा का विवाह रायाण नामक व्यक्ति से हुआ था, जो श्रीकृष्ण की माता यशोदा के भाई थे। इस आधार पर, कुछ लोग यह मानते हैं कि राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं। रायाण को रापाण या अयनघोष भी कहा जाता था।
राधा जी का गोस्वामी तुलसीदास से संबंध:
यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास राधा जी के अवतार थे। उन्होंने अपने महाकाव्य “रामचरितमानस” में राधा जी की भक्ति का महिमामंडन किया है।
राधा जी का संदेश:
राधा जी का संदेश प्रेम, भक्ति और त्याग का संदेश है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम सभी बाधाओं को पार कर सकता है
राधा का देहांत: एक मार्मिक कथा
राधा, वृषभानु की पुत्री, कृष्ण की प्रेमिका और हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी थीं। राधा का जीवन प्रेम और त्याग की कथाओं से भरा हुआ है।
कहा जाता है कि राधा वृंदावन में एक महल में रहती थीं। वहां से वे कृष्ण के दर्शन करती थीं। एक दिन, उदास होकर राधा ने महल से दूर जाने का निर्णय लिया। वे एक जंगल के गांव में रहने लगीं। समय के साथ राधा बूढ़ी और अकेली हो गईं। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी।
अंतिम समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने प्रकट हुए। उन्होंने राधा से कुछ भी मांगने को कहा, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के बार-बार आग्रह करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते हुए सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और मधुर धुन बजाने लगे। वे दिन-रात बांसुरी बजाते रहे। बांसुरी की मधुर धुन सुनते-सुनते राधा ने अपनी आत्मा त्याग दी।
राधा का देहांत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। यह प्रेम और त्याग की शक्ति का प्रतीक है। राधा की कथा हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम सभी बाधाओं को पार कर जाता है।
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