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बुध प्रदोष व्रत कथा

Budha Pradosh Vrat Katha Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| बुध प्रदोष व्रत कथा ||

बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत करने से सर्व कामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। शंकर शिव जी की आराधना धूप, बेल पत्र आदि से करनी चाहिए। बुध प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ।

विवाह के 2 दिनों बाद उसकी पत्‍नी मायके चली गई। कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्‍नी को लेने उसके यहां गया। बुधवार को जब वह पत्‍नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्‍न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता।

लेकिन वह नहीं माना और पत्‍नी के साथ बैल गाड़ी में चल पड़ा। विवश होकर सास ससुर ने अपने जमाई और पुत्री को भारी मन से विदा किया। नगर के बाहर पहुंचने पर पत्‍नी को प्यास लगी। पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा।

पत्‍नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा, तब उसने देखा कि उसकी पत्‍नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है। उसको क्रोध आ गया।

वह निकट पहुंचा तो उसके आश्‍चर्य का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी। पत्‍नी भी सोच में पड़ गई। दोनों पुरुष झगड़ने लगे। धीरे धीरे वहां कॉफी भीड़ एकत्रित हो गई और सिपाही भी आ गए।

हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्‍चर्य में पड़ गए। उन्होंने स्त्री से पूछा- उसका पति कौन है? वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- हे भगवान! हमारी रक्षा करें।

मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्‍नी को विदा करा लिया। मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा। जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया।

पति-पत्‍नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति-पत्‍नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत रखने लगे। अत: बुध त्रयोदशी व्रत हर मनुष्य को करना चाहिए।

|| बुध प्रदोष पूजा विधि ||

  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • घर या मंदिर में भगवान शिव का मंदिर स्थापित करें।
  • यदि घर में पूजा कर रहे हैं, तो चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर उस पर शिव, पार्वती और गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
  • पूजा के समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
  • सबसे पहले माता पार्वती और भगवान गणेश को तिलक लगाकर पूजा करें।
  • भगवान शिव को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) से स्नान करवाएं।
  • शिवलिंग पर जलधारा अर्पित करें, ध्यान रहे कि जलधारा अखंडित होनी चाहिए।
  • भस्म, धतूरा, और भांग अर्पित करें।
  • भगवान शिव को सात्विक भोग अर्पित करें।
  • धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
  • शिव मंत्रों का जाप करें, जैसे कि “ॐ नमः शिवाय”, “महादेवाय नमः”, या “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे”।
  • प्रदोष काल में (शाम 6:30 बजे से 8:30 बजे तक) विशेष पूजा करें।
  • आरती करें और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करें।

|| व्रत के नियम ||

  • प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है।
  • इस दिन व्रती को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।
  • पूरे दिन निराहार रहना चाहिए, केवल फलाहार का सेवन करें।
  • गुस्सा, क्रोध, और लोभ से बचना चाहिए।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • सूर्यास्त से एक घंटा पहले स्नान करके भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
  • कुशा के आसन का प्रयोग करें।
  • इस दिन काले वस्त्र न पहनें।
  • मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन न करें।
  • बेवजह क्रोध न करें और वाणी पर संयम रखें।

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