|| चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा (Chaitra Purnima Vrat Katha PDF) ||
प्राचीन काल में एक नगर में एक वैश्य रहता था। वह बहुत ही धार्मिक और सत्यवादी था। उसकी पत्नी भी पतिव्रता और सुशील थी। वैश्य और उसकी पत्नी दोनों ही भगवान विष्णु के परम भक्त थे और हर पूर्णिमा को व्रत रखते थे।
एक बार, वैश्य ने अपनी पत्नी से कहा कि वह सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजन करना चाहता है। उसकी पत्नी ने सहमति दी और दोनों ने विधि-विधान से सत्यनारायण भगवान का व्रत रखा और उनकी पूजा की।
व्रत के प्रभाव से, वैश्य के घर में धन-धान्य की वृद्धि होने लगी और उसका व्यापार भी खूब चलने लगा। वैश्य और उसकी पत्नी दोनों ही बहुत खुश थे और हर पूर्णिमा को श्रद्धापूर्वक व्रत रखते थे।
एक दिन, वैश्य की पत्नी गर्भवती हुई और उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। कन्या के जन्म से वैश्य और उसकी पत्नी की खुशी और भी बढ़ गई। उन्होंने कन्या का नाम कलावती रखा।
कलावती धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और वह भी अपनी माता-पिता की तरह धार्मिक और सुशील थी। एक दिन, कलावती ने अपनी मां से पूछा कि वह हर पूर्णिमा को व्रत क्यों रखती हैं। उसकी मां ने उसे सत्यनारायण भगवान के व्रत की महिमा बताई।
कलावती ने भी अपनी मां की बात सुनकर सत्यनारायण भगवान का व्रत रखने का संकल्प लिया। जब कलावती बड़ी हुई, तो उसका विवाह एक धनी और सुखी युवक के साथ हुआ।
एक दिन, कलावती अपने पति के साथ नाव में बैठकर कहीं जा रही थी। रास्ते में, उनकी नाव समुद्र में डूब गई और वे दोनों ही डूबने लगे। कलावती ने सत्यनारायण भगवान का स्मरण किया और उनसे अपनी रक्षा करने की प्रार्थना की।
सत्यनारायण भगवान ने उनकी प्रार्थना सुनी और उनकी नाव को बचा लिया। कलावती और उसका पति सकुशल किनारे पर आ गए। उन्होंने सत्यनारायण भगवान का धन्यवाद किया और हर पूर्णिमा को व्रत रखने का संकल्प लिया।
तब से, कलावती और उसका पति हर पूर्णिमा को श्रद्धापूर्वक व्रत रखते थे और सत्यनारायण भगवान की पूजा करते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, सत्यनारायण भगवान ने उन्हें सभी सुख-समृद्धि प्रदान की और अंत में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
यह कथा चैत्र पूर्णिमा व्रत की महिमा को दर्शाती है। इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए, हर किसी को श्रद्धा और भक्ति के साथ चैत्र पूर्णिमा का व्रत अवश्य रखना चाहिए।
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