चंपा षष्ठी की पौराणिक कथा PDF हिन्दी
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|| चंपा षष्ठी की पौराणिक कथा ||
चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव के कार्तिकेय (मुरुगन) स्वरूप को समर्पित है। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और दक्षिण भारत के कुछ भागों में मनाया जाता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह पर्व आता है। इसे भगवान शिव और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और कार्तिकेय के भक्त व्रत रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
चंपा षष्ठी की कथा का संबंध भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय और एक असुर त्रिपुरासुर से जुड़ा है। त्रिपुरासुर नामक असुर बहुत बलशाली और अत्याचारी था। उसने कठोर तपस्या करके भगवान शिव से अमरता का वरदान मांगा। भगवान शिव ने कहा कि अमरता का वरदान संभव नहीं है, लेकिन उन्होंने उसे यह वरदान दिया कि वह केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही मारा जा सकता है। इस वरदान के कारण त्रिपुरासुर अत्यंत अहंकारी और अत्याचारी हो गया।
त्रिपुरासुर ने अपने आतंक से तीनों लोकों को परेशान कर दिया। उसने देवताओं और ऋषि-मुनियों को अपने राज्य में कैद कर लिया। पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ने लगे। सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास गए और त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की।
त्रिपुरासुर के वध के लिए भगवान शिव ने अपनी शक्ति से भगवान कार्तिकेय को उत्पन्न किया। भगवान कार्तिकेय को युद्ध कौशल और सभी दिव्यास्त्रों का ज्ञान दिया गया। उन्होंने अपनी सेना के साथ त्रिपुरासुर के तीनों नगरों (त्रिपुर) पर आक्रमण किया।
त्रिपुरासुर के नगर स्वर्ण, रजत और लोह से बने हुए थे और वे आकाश में विचरण करते थे। भगवान कार्तिकेय ने अपनी दिव्य शक्ति और रणनीति से त्रिपुरासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त किया। यह युद्ध मार्गशीर्ष मास की षष्ठी तिथि को संपन्न हुआ, इसलिए इस दिन को चंपा षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
चंपा षष्ठी का महत्त्व
- चंपा षष्ठी धर्म की शक्ति और अधर्म के विनाश का प्रतीक है।
- इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के परिवार की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
- यह पर्व भक्ति, तप और ध्यान के महत्व को दर्शाता है।
चंपा षष्ठी की पूजा विधि
- श्रद्धालु प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं।
- भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
- व्रतधारी भगवान कार्तिकेय की कथा सुनते हैं और आरती करते हैं।
- फल, फूल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाया जाता है।
- चंपा षष्ठी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना विशेष फलदायक माना जाता है।
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