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श्री गोपाष्टमी व्रत कथा एवं पूजा विधि

Gopashtami Vrat Katha Pooja Vidhi

Shri KrishnaVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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श्री गोपाष्टमी व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व गौ माता की पूजा और सेवा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने 6 वर्ष की आयु में पहली बार गौ चारण (गायों को चराना) शुरू किया था। इस दिन गाय और उनके बछड़े को स्नान कराकर, सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है।

श्रद्धालु गाय को तिलक लगाकर, फूलों की माला पहनाकर उनकी पूजा करते हैं और गुड़-चारा खिलाते हैं। गौ परिक्रमा करने और गोधूलि बेला में पूजा करने का विशेष महत्व है। गोपाष्टमी के दिन गौ माता की सेवा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कई धार्मिक वेबसाइट पर इससे संबंधित PDF सामग्री (व्रत कथा और पूजा विधि) उपलब्ध है।

|| गोपाष्टमी पूजन विधि ||

  • इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है।
  • इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करते है, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है।
  • गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के थापे लगाए जाते हैं, गायों को सजाया जाता है |
  • प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा की जाती है और आरती उतरी जाती है।
  • पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है।

|| गोपाष्टमी का महत्व ||

गौ और ग्वालों की पूजा को समर्पित गोपाष्टमी आज मनाई जा रही है। हमारे हिन्दू धर्म तथा शास्त्रों में गाय को सभी प्राणियों की माता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गाय की देह में समस्त देवी-देवता वास करते है। माना जाता है कि जो व्यक्ति सुबह स्नान कर गौ माता को स्पर्श करता है, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।

गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है उस जगह से सभी पाप खत्म हो जाते हैं। गाय को चारा खिलाने पर बहुत पुण्य मिलता है। यह पुण्य हवन या यज्ञ करने के समान होता है। जिस घर में सभी सदस्यों के भोजन करने से पहले गाय के लिए खाना निकाला जाता है, उस परिवार में कभी भी अन्न-धन की कमी नहीं होती है।

|| गोपाष्टमी व्रत कथा (Gopashtami Vrat Katha Pooja Vidhi PDF) ||

प्राचीन काल में एक बार बाल गोपाल (भगवान कृष्ण) जब 6 साल के थे तो मां यशोदा से कहने लगे कि मां अब मैं बड़ा हो गया हूं और अब मैं बछड़े चराने नहीं जाऊंगा। मैं गौ माता के साथ जाऊंगा। इस पर यशोदा ने बात नन्द बाबा पर टालते हुए कथा कि अच्छा ठीक है लेकिन एक बार बाबा से पूछ तो लो।

इसपर भगवान कृष्ण जाकर नंद बाबा से कहने लगे कि अब मैं बछड़े नहीं बल्कि गाय चराने जाया करूंगा। नंद बाबा ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन बाल गोपाल के हठ के आगे उनकी एक न चली। फिर नंद बाबा ने कृष्ण से कहा कि ठीक है तो पहले जाकर पंडित जी को बुला लाओ ताकि उनसे गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त का पता लगाया जा सके।

ये सुनकर बाल गोपाल दौड़ते हुए पंडित जी के पास पहुंचे और एक सांस में उनसे कह डाला कि- पंडित जी, आपको नंद बाबा ने गौ चारण का मुहूर्त देखने के लिए बुलाया है। आप आज ही शुभ मुहूर्त बताना तो मैं आपको खूब ढेर सारा मक्खन दूंगा। पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और पंचांग देखकर उसी दिन को गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त बता दिया और साथ ही यह भी कह दिया कि आज के बाद से एक साल तक गौ चारण के लिए कोई भी मुहूर्त शुभ नहीं है।

नंद बाबा ने पंडित जी की बात पर विचार करते हुए बाल गोपाल को गौ चारण की आज्ञा दे दी। भगवान दिन उसी दिन से गाय चराने जाने लगे। जिस दिन से बाल गोपाल ने गौ चारण आरंभ किया था उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। भागवान द्वारा उस दिन गाय चराना आरंभ करने की वजह से इसे गोपाष्टमी कहा गया।

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