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केवल 41 दिनों के मंडला पूजा उत्सव में आने वाली गुरुवायुर एकादशी! इस दिन क्या करें और क्या नहीं?

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केरल की धरती पर स्थित “भूलोक वैकुंठ” (पृथ्वी पर स्वर्ग) कहे जाने वाले गुरुवायुर श्री कृष्ण मंदिर (Guruvayur Sree Krishna Temple) में एक अत्यंत विशेष पर्व मनाया जाता है – गुरुवायुर एकादशी! यह एकादशी केवल एक धार्मिक तिथि मात्र नहीं, बल्कि यह 41 दिनों तक चलने वाले प्रसिद्ध मंडला पूजा उत्सव (Mandala Pooja Festival) के बीच में आती है, जो इसके महत्व को कई गुना बढ़ा देती है। वृश्चिक (Vrishchik) मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी पर भगवान गुरुवायुरप्पन (श्री कृष्ण) की विशेष पूजा-अर्चना होती है। आइए, इस पावन अवसर के महत्व, रीति-रिवाजों और इस दिन हमें क्या करना चाहिए और किन बातों से बचना चाहिए, इस पर विस्तार से जानते हैं।

गुरुवायुर एकादशी का महत्व – मंडला काल की दिव्यता

मलयालम कैलेंडर के अनुसार, वृश्चिक (Vrishchik) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। गुरुवायुर एकादशी को मोक्षदा एकादशी के समकक्ष भी माना जाता है, जो भक्तों को मोक्ष (Salvation) प्रदान करने वाली मानी जाती है।

  • मंडला पूजा से जुड़ाव (Connection with Mandala Pooja) – यह एकादशी 41 दिनों के मंडलकाल के दौरान आती है, जो मंदिर में होने वाले कठोर अनुष्ठानों और पूजाओं का समय होता है। इस काल में एकादशी का महत्व और भी अधिक हो जाता है, क्योंकि इसे भगवान का सबसे प्रिय दिन माना जाता है।
  • विलक्षण ‘एकादशी विलक्कू’ (Unique ‘Ekadashi Vilakku’) – इस दिन गुरुवायुर मंदिर को विशेष रूप से दीपों से सजाया जाता है। रात में भव्य दीपदान किया जाता है, जिसे ‘एकादशी विलक्कू’ कहा जाता है। इस दौरान, हाथी (Elephant) जुलूस और पारंपरिक कलाओं का प्रदर्शन होता है। इस विलक्कू के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश होता है।
  • हाथियों का सम्मान (Respect for Elephants) – गुरुवायुर मंदिर में हाथियों का एक विशेष स्थान है। इस दिन, हाथियों का एक भव्य जुलूस (Grand Procession) निकाला जाता है, जो मंदिर की परंपरा का एक अभिन्न अंग है।

गुरुवायुर एकादशी के दिन क्या करें? (Dos on Guruvayur Ekadashi)

इस पावन दिन पर भगवान श्री कृष्ण और भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इन कार्यों को अवश्य करें:

  • व्रत और उपवास (Vrat and Fasting) – सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें। यह व्रत निर्जला (बिना पानी) या फलाहार (केवल फल) के साथ किया जा सकता है। एकादशी का व्रत द्वादशी तिथि पर शुभ मुहूर्त में ही खोला जाता है।
  • भगवान की पूजा (Worship of Lord) – घर के पूजा स्थल पर भगवान विष्णु या श्री कृष्ण की मूर्ति/तस्वीर स्थापित करें। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराएं। चंदन, रोली, फूल, तुलसी दल (Tulsi leaves) और नैवेद्य अर्पित करें।
  • तुलसी की पूजा (Tulsi Worship) – इस दिन तुलसी के पौधे की विशेष पूजा करें। शाम को तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है।
  • मंत्र जप और ध्यान (Mantra Chanting and Meditation) – ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या श्री कृष्ण के अन्य मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करें। दिन भर ध्यान (Meditation) करें और मन को सांसारिक विचारों से दूर रखें।
  • पारायण (Parayanam) – ‘श्रीमद्भागवत पुराण’ या ‘नारायणीयम’ का पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है। मंदिर में होने वाले विशेष पाठ में भाग लें।
  • दान-पुण्य (Charity) – अपनी क्षमता अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें। इस दिन किया गया दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है।
  • जागरण (Jagran) – रात में जागरण करें और भगवान की भक्ति में भजन-कीर्तन करें।

गुरुवायुर एकादशी के दिन क्या नहीं करें? (Don’ts on Guruvayur Ekadashi)

एकादशी के दिन कुछ कार्य वर्जित माने जाते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है:

  • अनाज का सेवन नहीं (Avoid Grains) – एकादशी पर चावल, दाल, गेहूं और किसी भी प्रकार के अनाज (Grains) का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन सात्विक फलाहार ही करना चाहिए।
  • क्रोध और अपशब्द (Anger and Abuses) – किसी पर क्रोध करने, अपशब्द बोलने या किसी को बुरा-भला कहने से बचें। मन को शांत और शुद्ध रखें।
  • तामसिक भोजन (Tamasic Food) – लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा और अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें।
  • शारीरिक संबंध (Physical Relationship) – एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और शारीरिक संबंध बनाने से बचना चाहिए।
  • दूसरे के घर भोजन (Food in Others Home) – एकादशी का व्रत रखने वाले को इस दिन दूसरे के घर भोजन नहीं करना चाहिए।
  • पारण में देरी (Delay in Parana) – द्वादशी तिथि पर शुभ मुहूर्त में ही व्रत का पारण करें। पारण में देरी करना वर्जित माना जाता है।

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